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Haryana New CM Nayab Saini : नायब सैनी को सीएम बना भाजपा की गैर जाटों, ओबीसी को साधने की कोशिश

  • हरियाणा में करीब 30% ओबीसी वोटर्स, जाट समुदाय की नाराजगी के चलते भी भाजपा को बड़ा फैसला लेना पड़ा

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Haryana New CM Nayab Saini, चंडीगढ़ : हरियाणा की राजनीति में 12 फरवरी का दिन विराट राजनीतिक बदलावों का गवाह बना है। भाजपा हाईकमान ने बड़ा कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री मनोहर लाल को हटाकर उनकी जगह ओबीसी समुदाय से आने वाले पार्टी प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा के इस कदम को जातीय समीकरणों लिहाज से बड़ा फैसला माना जा रहा है। हरियाणा की राजनीति में जातिय समीकरणों की अहमियत रही है और चुनावों में टिकट वितरण में इसकी अहम भूमिका रहती है। इसी को देखते हुए भाजपा ने यह बड़ा कदम उठाया। पिछले कुछ समय में हरियाणा में अलग-अलग जातियों और समुदायों ने उनकी अनदेखी होने और सरकार में सही प्रतिनिधित्व न मिलने का हवाला देते हुए चुनावों में ज्यादा से ज्यादा टिकटों की मांग की। ओबीसी और अन्य समुदाय समय-समय पर उनकी जाति का सीएम होने की मांग भी उठाते रहे हैं।

इसी कड़ी में पिछले कुछ समय से प्रदेश का ओबीसी समुदाय पिछले कुछ समय से लगातार सत्ताधारी दलों पर समुदाय के लोगों की अनदेखी के आरोप लगा रहा था। गत रोहतक रैली में भी समुदाय के लोगों ने उनकी अनदेखी के आरोप लगाते हुए कहा था कि सरकार में ओबीसी समाज अब तक अपने हक और अधिकारियों से दूर है और उनको सही हक नहीं मिला तो सत्ताधारी और अन्य दलों को समुदाय के लोग वोट नहीं करेंगे। चुनाव से पहले हरियाणा में इस मामले का महत्व सत्ताधारी भाजपा-जजपा और विपक्षी दल कांग्रेस, आप और इनेलो भी अच्छे से समझते हैं और चुनाव से पहले भाजपा द्वारा नायब सिंह सैनी को सीएम बनाने का कदम बड़े मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है।

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जाट समुदाय की तल्खी भी बड़ा कारण रही सैनी की ताजपोशी के पीछे

इस बात से हर कोई इत्तेफाक रखता है कि पिछले कुछ समय से भाजपा और जाट समुदाय में खींचतान जारी है। भाजपा हाईकमान और प्रदेश भाजपा नेतृत्व को भी इस बात का खास इल्म रहा है कि जाट समुदाय भाजपा के निरंतर खिलाफ है और आने वाले चुनाव में पार्टी को इसका बड़ा सियासी नुकसान झेलना पड़ सकता है। चूंकि हरियाणा में जाट वाेटर सबसे ज्यादा है तो भाजपा को इसके विकल्पों पर विचार करना पड़ रहा था। पहलवानों और किसानों के मुद्दे पर जाट समुदाय लगातार भाजपा की खिलाफत में था। ऐसे में जाट समुदाय की नाराजगी के चलते संभावित नुकसान से बचने के लिए भाजपा ने ओबीसी कम का कार्ड खेला है।

25 टिकट मांग रहा था ओबीसी समुदाय

पिछले कुछ समय से ओबीसी समाज और संगठनों के पदाधिकारियों की मांग है कि समुदाय के लोगों को हरियाणा की 90 विधानसभा सीटोें में से कम से कम 25 मिलें। पिछले दिनों रोहतक रैली में भी कहा गया कि हरियाणा में ओबीसी समुदाय का काफी वोट बैंक होने के बावजूद समाज के लोगों को उस लिहाज से टिकट नहीं दी जाती और अबकी बार लोकसभा की 10 में से 3 और विधानसभा की 90 में से कम से कम 25 सीट ओबीसी समुदाय के लोगों को दी जाए, ताकि उनको उनका हक मिल सके। ओबीसी समुदाय के लोगों ने साथ ही कहा था कि अगर टिकट बंटवारे में उनको सही नुमांदगी नहीं मिली तो वो राजनीतिक दलों को वोट नहीं करेंगे

हरियाणा में करीब 30 फीसद ओबीसी परिवार

पिछले साल सरकार ने पीपीपी आधार पर वर्ग विशेष को लेकर 72 लाख परिवारों में से 68 लाख के आंकड़े जारी किए थे। पिछले साल परिवार पहचान पत्र स्कीम के तहत सामान्य, एससी, बीसी और बैकवर्ड क्लास के परिवारों के आंकड़े जरूर सामने आए हैं। हरियाणा में एससी व बीसी वर्ग की बात करें तो कुल जनसंख्या का ये करीब 51 फीसदी हैं। पीपीपी के आधार पर प्रदेश की कुल संख्या 2 करोड़ 83 लाख है। बीसी ए वर्ग के लोगों की संख्या  4793312 है जो कुल जनसंख्या का 16.93 फीसदी हैं। इनके अलावा बीसी बी कैटेगरी की संख्या 3797306 है । ये जनसंख्या का 13.41 फीसदी है।

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एससी वर्ग के लोगों की संख्या 5861131

इनके अलावा हरियाणा में एससी वर्ग के लोगों की संख्या 5861131 है और कुल का 20.71 प्रतिशत है। ऐसे में प्रदेश की कुल जनसंख्या का पांचवां हिस्सा एससी वर्ग का है। बता दें कि पिछले साल आईएएस और मुख्यमंत्री प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी उमाशंकर ने परिवार पहचान पत्र के बारे में और परिवारों के डाटा को किस प्रकार से एकत्रित किया, अपडेट किया, के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की थी।

जातिगत समीकरणों से भाजपा की कोशिश अब आगे होगी कि एससी व बीसी वर्ग को वोटर्स को साधने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएं। आने वाले चुनावों में एससी व बीसी वर्ग आंकड़ा देखते हुए साफ है कि ये दोनों ही डिसाइडिंग फैक्टर साबित होने वाले हैं। ये भी बता दें कि ये भी बता दें कि प्रदेश में 72 लाख परिवारों ने पीपीपी बनवाने के लिए आवेदन किया। इनमें से 68 लाख परिवारों का डाटा उस समय वेरीफाई हो चुका था। लगभग 2.5 लाख परिवार ऐसे हैं, जो किसी अन्य राज्य में रह रहे हैं।

नायब सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने खेला था ओबीसी कार्ड

पिछले साल भाजपा ने प्रदेश संगठन में विराट बदलाव किया था भाजपा ने जाट समुदाय से आने वाले स्टेट चीफ ओपी धनखड़ को हटाते हुए ओबीसी समुदाय से आने वाले और वर्तमान नायब सैनी को इस पद पर बैठाया था। कुछ मामलों पर ओबीसी समाज की सरकार से नाराजगी के चलते भाजपा को ये कदम उठाना पड़ा। भाजपा को इस बात का अच्छे से इलम है कि जाट समुदाय की भाजपा से कई मामलों पर खासी खींचतान चल रही है, जिसके चलते जाट वोटर्स के भाजपा से खिसकने की संभावना ज्यादा है। ऐसे में भाजपा को ओबीसी वोटर्स के जरिए इस संभावित नुकसान की भरवाई की संंभावना नजर आई और इसी के मद्देनजर नायब सैनी को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी गई।भाजपा इसके जरिए ओबीसी समुदाय को साधने की पूरी कोशिश करेगी।

जातीय जनगणना की मांग भी उठा रहे ओबीसी वर्ग के लोग

उपरोक्त कड़ी में ये भी बता दें कि पिछले कुछ समय से हरियाणा में भी जातीय जनगणना की मांग उठती रही है। नवंबर 2023 में हरियाणा में ओबीसी समाज के नुमाइंदों ने जातीय जनगणना नहीं करवाने को लेकर सरकार को घेरते हुए कहा था कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। इसी कड़ी में गत 17 फरवरी को रोहतक में ओबीसी समाज की गर्जना रैली में भी इसकी मांग उठी। जातीय जनगणना के पहलू के बारे में भी जानना जरुरी है और गौरतलब है कि देश में जाति आधारित जनगणना की मांग दशकों पुरानी है।

विपक्ष के अनुसार इसका उद्देश्य अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण देना और जरूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ देना मकसद बताया जाता है। बता दें कि साल 1872 में ब्रिटिश शासन के दौरान पहली बार जनगणना हुई थी। इसके बाद 1872 से लेकर 1931 तक जितनी भी दफा जनगणना हुई, इसमें जाति के आंकड़ों को दर्ज किया गया था। आजादी के बाद साल 1951 में पहली बार आजाद भारत में जनगणना करवाई गई। इस दौरान केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़ों को ही शामिल किया गया था, लेकिन 1951 के बाद 1961, 1971, 1981, 1991, 2001 और 2011 के किसी जनगणना में जातीय आंकड़ों को शामिल नहीं किया गया। एक तरह से साफ है कि देश आजाद होने के बाद यहां जातीय जनगणना नहीं हुई और इसको लेकर तमाम सियासी दल अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से मामले से इत्तेफाक रखते हैं।

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