प्रवीण वालिया, India News Haryana (इंडिया न्यूज), Haryana Elections : हरियाणा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जबरदस्त हार के बाद हार के कारणों पर लगातार चिंतन किया जा रहा है। हालांकि प्रदेश के बड़े नेताओं द्वारा अपनी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस नेताओं में हार के कारणों को लेकर चिंतन किया जा रहा है, उसके पीछे कांग्रेस के बड़े नेताओं की विफलता सामने आई है।
वहीं कांग्रेस में इस बात को लेकर चर्चा है कि जिस तरह से टिकटों का गलत लोगों को वितरण किया गया है, उससे कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। चुनावों से पहले पूरे प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी को लेकर माहौल था, लेकिन जिस तरह के चुनाव परिणाम आए उसने कांग्रेस के बड़े नेताओं की नींद उड़ाकर रख दी। करनाल संसदीय क्षेत्र की बात करें तो यहां कांग्रेस का जिस तरह से सफाया हुआ है, उसने कांग्रेस के बड़े नेताओं की लोकप्रियता की पोल खोलकर रख दी है।
बताया जा रहा है कि जिस तरह से कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं को कांग्रेस के प्रदेश स्तरीय नेताओं ने गुमराह किया, उससे वह भी अंधेरे में रहे। कांग्रेस के टिकट वितरण में करनाल संसदीय क्षेत्र से पिछड़े वर्ग खास तौर पर रोड़ समुदाय की उपेक्षा की गई। कांग्रेस ने रोड़ समुदाय के केवल एक ही व्यक्ति को पुंडरी से टिकट दी। भाजपा ने हरियाणा में दो लोगों को टिकट दी। दोनों ही चुनाव जीते।
भाजपा ने रोड़ समुदाय का सम्मान किया। घरौंडा से हरिवंदर कल्याण को टिकट दिया। जबकि पूंडरी से सतपाल जांबा को टिकट दिया। इससे पहले रोड़ समुदाय के हिम्मत सिंह को हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमेटी का चेयरमैन बना दिया। इसके अलावा रोड़ समुदाय के वेदपाल एडवोकेट को प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया। इसके कारण प्रदेशभर में रोड़ समुदाय ने भाजपा का साथ दिया। इसके कारण करनाल लोकसभा क्षेत्र में नौ सीटों पर भाजपा ने जीत का परचम लहराया।
कांग्रेस ने दलितों, पिछड़ो वैश्य और ब्राह्मणों की उपेक्षा की। इसके अलावा भाजपा ने जिस तरह से पार्टी में विद्रोह को दबाने में कामयाबी हासिल की। इसके विपरीत कांग्रेस के बड़े नेता अहंकार में चूर रहे। कांग्रेस में जिन प्रत्याशियों को टिकिट मिली, वह संगठन के बड़े नेताओं को साथ में लेकर नहीं चल पाए। भाजपा ने जिस तरह से केवल जीतने की क्षमता वालों को चुनाव में उतारा, जबकि कांग्रेस में कुछ नेताओं ने अपने व्यक्तिगत हितों के रहते हारने वालों को टिकिट दी।
चर्चा तो यहां तक है कि कांग्रेस प्रभारियों के पर्यवेक्षकों ने अपनी भूमिका सही ढंग से नहीं निभाई। भाजपा ने पिछड़े वर्ग के नायाब सिंह सैनी को सीएम बनाकर पिछड़े वर्ग को अपनी तरफ कर लिया। ब्राह्मण वर्ग से मोहन लाल को प्रदेशाध्यक्ष बनाया। कांग्रेस सोशल इंजीनियरिंग में विफल रही।
कांग्रेस के नेता अभी भी हार से सबक सीखने को तैयार नहीं हैं। अभी भी संगठन हारे हुए प्यादों से हार का कारण पूछ रहा है। कोई अपनी गलती क्यों बताएगा। बेहतर होता कि कांग्रेस जमीन से जुड़े नेताओं से हार के कारण पूछती। कांग्रेस के कुछ नेताओं की गलती की सजा जमीन से जुडे वर्कर भुगत रहे हैं। कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष तक अपनी सीट नहीं बचा सके।
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