आज भिवानी पहुंचे नेस्ट मैन ऑफ इंडिया राकेश खत्री। उन्होंने बताया कि आज आधुनिक समय में हमारे घर अर्बन स्टाईल में बनने लगे है, जिसके चलते घरों मे चिडिय़ां व अन्य पक्षियों के घौसलें बनाने का स्थान नहीं रहता है। जबकि ये पक्षी हमारे पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पुराने घरों में पक्षियों के घौसलों के लिए अनेक स्थान होते थे। ऐसे में अब हमारा दायित्व बनता है कि पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से हमें अपने घरों में घौसलों का निर्माण करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि कांटेदार पेड़-पौधों में कौवे जैसे शिकारी पक्षी चिडिय़ां के अंडों को नहीं फोड़ पाते, जहां चिडिय़ां आसानी से घौसला बना लेती है, ऐसे में बुगन बेल जैसे कांटेदार व फूलदार पौधें भी हमें लगाने चाहिए, जहां प्राकृतिक रूप से चिडिय़ा अपना घौसला बना लेती हैं।
गौरतलब है कि नेस्ट मैन ऑफ इंडिया के नाम से विख्यात राकेश खत्री दो बार लिम्बा बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज करवा चुके हैं। एक बार उन्हें पर्यावरण संरक्षण को लेकर राष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुका है। आईसीएसई बोर्ड की चौथी कक्षा की अंग्रेजी की किताब में उनके जीवन पर एक पाठ भी है।इसके अलावा उन्हे लंदन के हाऊस ऑफ कॉमन में भी पुरूस्कृत किया जा चुका है। स्विजरलैंड की थैबुलस-50 पुस्तक में भी उनकी जीवनी को स्थान मिल चुका है। वे अब तक सवा लाख घौंसले बनाने के साथ ही देश के ढ़ाई लाख बच्चों को घौसला बनाना सिखा चुके हैं। देश के लगभग चार हजार स्कूलों में विजिट कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दे चुके हैं। उन्होंने यह अभियान वर्ष 2008 से शुरू किया था। नारियल के भूसे व बारीक रस्सियों की मदद से घौसले को दस मिनट में बनाया जा सकता है।
स्कूली बच्चों ने उनसे घौसला बनाने की कला सीखने के बाद बताया कि उन्होंने ना केवल आज पक्षियों के घौसला बनाने की कला सीखी है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का पाठ भी सीखा है। जिससे उन्हे यह पता चला है कि पक्षी हमारे पर्यावरण के संरक्षण में बहुत सहायक हैं। पक्षी हमारे पारिस्थितिक तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। पक्षी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली कीटों को खा जाते हैं, जिससे हमारी फसलें आगे बढ़ती हैं।