डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज), Punjab University Issue, चंडीगढ़ : पिछले कुछ वर्षों से पंजाब यूनिवर्सिटी आर्थिक मोर्चे पर निरंतर हांफ रही है। स्थिति यह है कि स्टाफ की सैलरी देने के लिए भी प्रशासन को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसी कड़ी में हरियाणा सरकार निरंतर कोशिश कर रही है कि राजधानी चंडीगढ़ के नजदीक के हरियाणा के तीनों जिलों के कॉलेजेस को पीयू से एफिलिएशन मिल जाए और यहां के स्टूडेंट्स को यहां की क्वालिटी एजुकेशन का फायदा मिल सके, इसको लेकर गत शुक्रवार को हरियाणा-पंजाब के मुख्यमंत्रियों की पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक के साथ एक संयुक्त बैठक भी हुआ।
बैठक को शुरुआती चरण में तो सकारात्मक माना जा रहा था लेकिन पंजाब के पूर्व में और वर्तमान रुख को देखते हुए कोई खास उम्मीद नहीं है। अब इसी कड़ी में एक और नया मोड़ आ गया है। खुद हरियाणा के टीचर्स और नॉन टीचिंग स्टाफ ने ही हरियाणा के कॉलेजों को पीयू से एफिलिएट करवाने को लेकर कड़ा ऐतराज जता दिया है। मालूम रहे कि शनिवार को ही पीयू सीनेट को बैठक में हरियाणा के कॉलेजों को यहां जोड़ने से असहमति जताई गई।
पूरे मामले पर कुरुक्षेत्र टीचर्स संघ अपनी अलग राय रखता है। संघ का मानना है सरकार की तरफ से पंचकूला और अंबाला के महाविद्यालयों को पीयू से जोड़ना कतई गलत है। केयू पहले ही आर्थिक मोर्चों पर जूझ रही है। कर्मचारियों की सैलरी को लेकर भी दिक्कत आ ही है। अगर हमारे कॉलेज पीयू के अंडर आए तो सारा रेवेन्यू भी पीयू को ही जाएगा। वहीं दूसरी तरफ इसके बदले में हरियाणा सरकार पंजाब विश्वविद्यालय को एडिशनल ग्रांट देगी। अगर हरियाणा सरकार के पास इतना ही ज्यादा पैसा है तो इस पैसे से कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के शिक्षक व गैर शिक्षकों का मासिक वेतन व पेंशन का खर्च 100% हरियाणा सरकार दे।
वहीं शिक्षक संघ के प्रधान डॉ. आनंद ने कहा कि यूजीसी रेगुलेशन 2018 को पूर्ण रूप से लागू किया जाना चाहिए। अगर यहां के कॉलेजों को पीयू से जोड़ा गया तो कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय शिक्षक संघ कोई भी कड़ा कदम उठाने पर मजबूर होगा जिसकी सारी जिम्मेदारी सरकार की होगी
हरियाणा और पंजाब निरंतर चंडीगढ़ पर अपना अपना हक जताते रहे हैं और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। पंजाब को लगता है कि चंडीगढ़ पर बतौर राजधानी मुख्य हक पंजाब का ही है। आम तौर पर पंजाब का गवर्नर ही चंडीगढ़ का प्रशासक होता है। कई साल पहले केरल से केजे अल्फोंस को साल 2016 में केंद्र सरकार ने बतौर चंडीगढ़ प्रशासक बनाने की अनुमति दी थी। उस वक्त अकाली दल और अन्य दलों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए केंद्र को कहा था कि इससे चंडीगढ़ पर पंजाब का दावा कम होगा। इसके बाद उनकी नियुक्ति को केंद्र ने निरस्त कर दिया।
जब हरियाणा पंजाब से अलग हुआ तो उस वक्त दोनों के बीच 60 विधानसभा और सचिवालय के इमारतों में हरियाणा को 40 फीसदीऔर पंजाब को 60 फीसदी हिस्सेदारी निर्धारित हुई। लेकिन हरियाणा को महज 27 हिस्सेदारी ही मिली। जब हरियाणा ने पिछले दिनों चंडीगढ़ में अलग विधानसभा के लिए जमीन मांगी तो पंजाब ने ऐसा ही किया। ऐसे में माना जाता है अगर पीयू से हरियाणा के कॉलेज जोड़े गए तो पंजाब का चंडीगढ़ पर बतौर राजधानी दावा कम होगा।
पंजाब यूनिवर्सिटी से हरियाणा के कॉलेजों को अलग करने का फैसला तत्कालीन दिवंगत सीएम बंसीलाल ने लिया था। इससे पहले हरियाणा के सभी कॉलेज पीयू से जुड़े रहे, लेकिन इसी बीच एक ऐसी घटना घटी कि इससे आहत होकर चौधरी बंसीलाल ने हरियाणा के कॉलेजों को पीयू से अलग करने का फैसला लिया।
दिसंबर 1973 में पीयू में कोई कार्यक्रम था और इस मौके पर पंजाब के मुख्यमंत्री को मुख्य स्टेज पर बिठाया गया था तो वहीं चौधरी बंसीलाल को सामने वाली कुर्सी पर स्टेज के नीचे बिठाया गया। अपने सख्त स्वभाव के लिए पहचान रखने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री को ये बात गंवारा नहीं हुई। उन्होंने कार्यक्रम को तुरंत छोड़ दिया। इसके बाद तुरंत उच्च अधिकारियों की बैठक बुलाई और पीयू से नाता तोड़ दिया। इसके बाद कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी फुल फ्लेज रूप से अस्तित्व में आई।
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हरियाणा के उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की तरफ से विश्वविद्यालयों के रजिस्ट्रार को एक पत्र लिखा गया है जिसके अनुसार प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों को कहा गया कि वो आर्थिक रूप से सबल बनें। फंड जुटाने के लिए वो सेल्फ फाइनेंस कोर्स शुरू कर सकते हैं और अन्य विकल्प अपनाकर वो सरकारी खजाने पर अपनी निर्भरता को हटाएं।
अनुसंधान, ऑनलाइन पढ़ाई, दूरस्थ शिक्षा विभाग के कोर्स और स्टार्टअप के मोर्चे पर वो खुद को मजबूत करें, ताकि संस्थानों के खजाने में पैसा आए। इसके अलावा स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए इनक्यूबेटर और एक्सीरलेटर को बढ़ावा दें। अब इसको लेकर भी संस्थानों की टीचिंग फैकल्टी को कड़ी आपत्ति है। मामले को लेकर महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी टीचर संघ ने कहा कि ऐसे फैसले राज्य की यूनिवर्सिटी के लिए घातक साबित होंगे और आने वाले समय में सभी यूनिवर्सिटीज में इसका विरोध होगा।
वहीं एमडीयू शिक्षक संघ के प्रधान डॉ. विकास सिवाच ने कहा कि हरियाणा फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेज टीचर्स ऑर्गेनाइजेशन एवं महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ सरकार के सरकारी फंड पर निर्भरता घटाने का पुरजोर विरोध करते हैं और आने वाले दिनों में ही सभी संघों की मीटिंग बुलाई जाएगी, ताकि आगे की कार्रवाई पर सामूहिक निर्णय लिया जा सके। यह एक और घातक प्रहार सरकार की तरफ से विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर भी है।
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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि चंडीगढ़ विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है जिसमें हरियाणा के कॉलेज का भी एफिलिएशन होना चाहिए। केंद्र के साथ मिलकर हरियाणा सरकार पंजाब विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाएगी, ताकि विश्वविद्यालय समृद्ध बने और उसकी आवश्यकताएं भी पूरी हों। युवाओं के भविष्य के लिए पंजाब के कॉलेज भी यदि हरियाणा के साथ जुड़कर काम करना चाहें तो हम उनका स्वागत करते हैं।
उधर केयूके शिक्षक संघ के सचिव डॉ. जितेंद्र खटकड़ ने कहा कि केयू पहले ही कई मोर्चों पर जूझ रही है।अगर हमारे कॉलेज पीयू से जोड़ दिए गए तो हमें दिक्कतें आनी तय हैं। जो भी रेवेन्यू जेनरेट होता है, इनमें अंबाला, पंचकूला और यमुनानगर के कॉलेजों का व्यापक रोल है। ऐसे में अगर इन जिलों के कॉलेज पीयू के अंडर आ गए तो केयू की आर्थिक दिक्कतों में इजाफा होना तय है। ऐसे में सरकार ऐसे फैसले न ले और पीयू को ग्रांट देने की बजाय अपनी यूनिवर्सिटी केयू को ग्रांट दे।
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