डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Gopal Kanda, चंडीगढ़ : पूर्व गृहमंत्री और सिटिंग एमएलए गोपाल कांडा बहुचर्चित गीतिका आत्महत्या मामले में बरी होने के बाद अब इसके सियासी मायने और समीकरण निकाले जा रहे हैं। सुसाइड केस में नाम आने के बावजूद गोपाल कांडा सियासत से ज्यादा दूर नहीं रहे और राजनीतिक गलियारों में भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहे।
भाजपा हरियाणा में गैर जाट राजनीति करने के लिए जानी जाती है और ऐसे में अब माना जा रहा है कि सत्ताधारी भाजपा को सिरसा में बड़ा नेता मिल गया है। गोपाल कांडा वैश्य बिरादरी से है और उनका इस समुदाय में काफी प्रभाव माना जाता है। ऐसे में भाजपा की कोशिश रहेगी कि वैश्य वर्ग के वोटरों को पार्टी के पाले में लाया जाए। हालांकि कांडा ने पहले से ही भाजपा को समर्थन दे रखा है और ऐसे में अब भाजपा के लिए वह बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
भाजपा के लिए पिछले करीब 3 दशक से सिरसा एक अभेद किला रहा है। पार्टी यहां से आखिरी बार 1996 में चुनाव जीती थी। इसके बाद से पार्टी यहां से एक तरह से राजनीतिक वनवास में है। सिरसा चौटाला परिवार का गढ़ रहा है। पिछले 27 साल से भाजपा यहां जीत के लिए तरस रही है।
कांडा के केस में बरी होने के बाद भाजपा के लिए उम्मीद की का जा रही है कि यहां पार्टी चौटाला परिवार का तिलिस्म तोड़ने में कामयाब हो सकती है। हालांकि ये इतना आसान भी नहीं है, लेकिन भाजपा के लिए आने वाले चुनाव में चीजें पहले की तुलना में आसान नजर आने लगी हैं।
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गोपाल कांडा से अब भाजपा को सिरसा में काफी उम्मीदें हैं। मोदी लहर में भाजपा की उम्मीदवार सुनीता दुग्गल बेशक चुनाव जीतने में सफल रही है, लेकिन भाजपा यहां कभी अपनी पुख्ता मौजूदगी का अहसास नहीं करवा सकी। फिलहाल तक सिरसा और आस पास के इलाकों में विधानसभा चुनाव में यहां जाट राजनीति का ही बोलबाला रहा है। कांडा सिरसा से ही विधायक हैं और यहां अब वो अपनी सक्रियता बढ़ाएंगे। ऐसे में अब चौटाला परिवार के लिए दिक्कत पेश आनी तय हैं। कांडा गैर जाट राजनीति के जरिए खुद को मजबूत करेंगे और सियासत में पैर पसारना चाहेंगे।
कांडा राजनीति में कोई नौसिखिए नहीं हैं। सियासी उठापटक में वो खासे माहिर हैं और माना जाता है कि वो राजनीति आबोहवा व बयार के हिसाब से ही कोई कदम उठाते हैं। साल 2009 में वो करीब आधा दर्जन विधायकों के साथ कांग्रेस में आए थे और कांग्रेस सरकार बनाने में सफल भी रही। बदले में राजनीतिक मोल भाव में उनको प्रदेश के गृह मंत्री की कुर्सी मिली। साथ आए विधायकों को संसदीय सचिव बनवाया। इसके बाद साल 2019 में वो अपनी पार्टी हलोपा से विधायक बनकर आए और राजनीतिक मौसम देखते हुए भाजपा को समर्थन दे दिया। उनके भाई गोविंद कांडा भाजपा में हैं और उन्होंने ऐलनाबाद में पार्टी की टिकट पर चुनाव भी लड़ा।
कांग्रेस सरकार में गोपाल कांडा एक तरह से सत्ता के शीर्ष पर थे। इसी बीच उनका नाम गीतिका सुसाइड केस कांड में आ गया। इसके चलते उनको होम मिनिस्टर की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। फिर साल 2019 में एक मौका ऐसा भी आया जब उनके मिनिस्टर बने जाने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन उस वक्त भाजपा की दिग्गज नेता उमा भारती आड़े आ गई। उन्होंने खुलकर विरोध करते हुए कहा कि ऐसा करना कतई उचित नहीं होगा और उन्होंने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नतीजन कांडा को न तो मंत्री पद मिला और न ही उनको सरकार में शामिल किया गया। चूंकि अब वो केस से बरी हो चुके हैं तो उम्मीद की जा रही है उनका राजनीतिक करियर रफ्तार पकड़ सकता है।
लोकसभा की तैयारियों के मद्देनजर पिछले महीने 18 जून को सिरसा में अमित शाह की रैली का आयोजन किया गया था। रैली को सफल बनाने के लिए कांडा बंधुओं ने पूरा दमखम लगा दिया था। तमाम तरह के संसाधनों का बंदोबस्त किया और भीड़ जुटाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। बावजूद इसके कांडा को स्टेज पर जगह नहीं मिली। इसको लेकर निरंतर चर्चा रही। उनको स्टेज पर जगह नहीं दिए जाने के पीछे यही वजह मानी गई कि गीतिका मामले में कोर्ट का फैसला नहीं आया और उस वक्त तक वो आरोपी हैं। हालांकि कांडा रैली को सफल बनाने के लिए किए गए प्रयास काफी सुर्खियों में रहे। इस बात से भी हर कोई इत्तेफाक रखता है कि वह मुख्यमंत्री मनोहर लाल की गुड बुक्स में हैं।
गोपाल कांडा का पूरा नाम गोपाल गोयल कांडा है। वो सिरसा में सब्जी मंडी में नाप तौल करते थे और माप तौल में तराजू (कांडा) का यूज करते थे। इसके चलते उनका नाम कांडा पड़ गया। उन्होंने रेडियो व टीवी रिपेयरिंग, हवाई चप्पल बेचने की दुकान भी की। फिर कांडा ने शू कैंप की शुरुआत की। काम चल निकला तो फिर जूते बनाने की फैक्ट्री कर ली। इसके बाद रियल एस्टेट में हाथ आजमाया व काफी तरक्की की।
इसके बाद साल 2008 में पिता मुरलीधर लखराम (एमडीएलआर) के नाम से एयरलाइन कंपनी शुरू की। इसी कंपनी में गीतिका शर्मा की एंट्री हुई थी। बाद में यौन उत्पीड़न के आरोप लगे और साल 2012 में गीतिका ने सुसाइड कर लिया। नाम आने के बाद 18 महीने की जेल भी हुई। इससे पहले 2009 में निर्दलीय विधायक बने और फिर होम मिनिस्टर। फिर 2019 में हलोपा से विधायक बने।
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