India News (इंडिया न्यूज़), Politics of Haryana, चंडीगढ़ : इन दिनों हरियाणा की राजनीति में काफी हलचल मची हुई है। सत्ताधारी भाजपा और जजपा लगातार चुनावों की तैयारियों में जुटी है। इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि विपक्षी दलों के राष्ट्रीय स्तर पर हुए इंडिया गठबंधन की तर्ज पर कांग्रेस हरियाणा में अन्य विरोधी दलों से गठबंधन करेगी या नहीं। एक समय सत्ता के शीर्ष पर रही इनेलो फिलहाल अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
पार्टी की हरसंभव कोशिश है कि उसका पुराना दौर लौट आए, लेकिन अकेले खुद के बलबूते ये संभव नहीं लग रहा। ऐसे में पार्टी पुराने राजनीतिक वैमनस्य को भूलकर कभी धुर विरोधी रही कांग्रेस व इसके दिग्गज नेता के साथ भी जाने को तैयार है। इसी कड़ी में पार्टी ने 25 दिसंबर को कैथल में होने वाली रैली में कांग्रेस व अन्य दिग्गजों को न्योता दिया है। लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि हुड्डा किसी भी हालत में इसको हिस्सा नहीं बनेंगे। इसके पीछे सियासी कारण है तो हैं ही, साथ में ये खुद हुड्डा के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि हुड्डा और इनेलो में लंबे समय से खींचतान रही है। इनेलो सुप्रीमो ओपी चौटाला और बेटे अभय चौटाला लंबे समय से उनकी खिलाफत में रहे हैं। हुड्डा खेमे का कहना है कि जब खुद हुड्डा मजबूत स्थिति में है तो फिर इनेलो से जुगलबंदी की आवश्यकता क्या है। साथ ही उनके समर्थकों का कहना है कि हुड्डा के पास काफी जनाधार है तो ऐसे में उनको इनेलो की बैसाखियों की जरूरत नहीं है। अगर इनेलो से गठबंधन हुआ तो फिर सीटों के बंटवारे का मामला अलग है जिस पर विवाद होना तय है।
मौजूदा परिदृश्य से साफ है कि फिलहाल तो सीधी टक्कर मुख्य सत्ताधारी दल भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। खुद भाजपा के कई दिग्गज भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। कैबिनेट मिनिस्टर रणजीत सिंह भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि हरियाणा में लोकसभा चुनाव में सीधी टक्कर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। इस लड़ाई में मुख्य रूप से दो ही दल हैं और बाकी धरातल पर कोई प्रतिद्वंदी नजर नहीं आता।
पड़ोसी पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन हरियाणा में पार्टी का खाता भी नहीं खुला। पार्टी के प्रयास यहां फलीभूत नहीं हो पाए। पार्टी कई राज्यों में चुनाव में उतरी है और पार्टी की कोशिश है कि वो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के विकल्प के रूप में खुद को प्रस्तुत करे।
पार्टी की कुछ ऐसी ही चाह हरियाणा में भी है कि वो कांग्रेस की जगह ले ले। लेकिन हरियाणा में ये इतना आसान नहीं है और वर्तमान हालात से साफ है कि पार्टी को लंबा सफर तय करना पड़ेगा। कांग्रेस को भी इसका आभास है कि चाहे ज्यादा न सही, लेकिन थोड़ा बहुत नुकसान कर सकती है। ऐसे में हरियाणा में कांग्रेस लगातार आप से गठबंधन को लेकर परहेज कर रही है।
हरियाणा कांग्रेस में कलह किसी से छिपी नहीं है। पार्टी में फिलहाल दो धड़े हैं। एक गुट को हुड्डा लीड कर रहे हैं तो दूसरे गुट की अगुवाई कभी प्रतिद्वंदी रहे रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुमारी सैलेजा (एसआरके) कर रहे हैं। हालांकि फिलहाल हरियाणा कांग्रेस में हुड्डा की ही ज्यादा पूछ है और एसआरके गुट पार्टी में खुद को मजबूत करने में जुटा है। जहां हुड्डा खुलकर इनेलो के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं हैं तो वहीं मामले को लेकर एसआरके खेमे पर भी सबकी नजर जमी हैं।
कांग्रेस को जिन कारणों के चलते इनेलो से गठबंधन पर ऐतराज है, उनमें एक जातीय समीकरण भी है। हुड्डा जाट समुदाय से हैं और कहीं न कहीं उन पर भी समुदाय विशेष का ठप्पा है, हालांकि उनकी स्वीकार्यता अन्य समुदाय में भी है। इसके अलावा इनेलो के साथ भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है। अगर दोनों के बीच गठबंधन होता है तो वोटर्स के बीच दोनों को लेकर अनचाहा संदेश भी जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस को ओबीसी व अन्य वर्ग के वोटर्स के छिटकने का डर होगा जो कहीं न कहीं उसके एंगल से वाजिब भी है।
इनेलो लगातार अपने पुराने सुनहरी दौर की वापसी के लिए हरकसंभव कोशिश कर रही है और इसी कड़ी में 25 सितंबर को होने वाली रैली को इसके प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। रैली में इनेलो ने सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी के राज्यसभा सदस्य, सीताराम येचुरी, सतपाल मलिक, हनुमान बेनीवाल, जयंत चौधरी, फारूक अब्दुल्ला, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, चौधरी बिरेंद्र सिंह और आरएलडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शेर सिंह राणा को भी न्योता दिया है। पार्टी की कोशिश है कि रैली के जरिए ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाकर वो अपनी ताकत का अहसास करवाए।
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