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Politics on SC and OBC Voters : एससी व ओबीसी वोटर्स पर सभी दलों की टकटकी, उठ रहा जातीय जनगणना का मामला

  • जाति आधारित जनगणना का मामला निरंतर चर्चा में

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Politics on SC and OBC Voters, चंडीगढ़ : देश में अगले साल लोकसभा और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इसको लेकर वोट पाने की जुगत में सभी दल अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से चर्चा में हैं। पिछले महीने 5 राज्यों में संपन्न हुई विधानसभा चुनावों में जातीय जनगणना के मुद्दे को लेकर सत्ताधारी भाजपा व मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत कई दल आमने-सामने रहे। हरियाणा में भी समय-समय पर मामले को लेकर दोनों पक्ष अपने रुख को जाहिर करते रहे हैं। मामले को लेकर एक बार फिर हरियाणा विधानसभा में मामले की गूंज सुनाई दी। कांग्रेस विधायकों हरियाणा में जातीय जनगणना का मुद्दा विधानसभा में उठाते हुए कहा  कि सरकार को तुरंत प्रभाव से जातीय जनगणना करवानी चाहिए।

हालांकि मामले को लेकर भाजपा सरकार बार-बार कह चुकी है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। बेशक हरियाणा में जातीय जनगणना नहीं हुई, लेकिन कुछ महीने पहले परिवार पहचान पत्र स्कीम के तहत सामान्य, एससी, बीसी और बैकवर्ड क्लास के परिवारों के आंकड़े जरूर सामने आए हैं। गौरतलब है कि देश में जाति आधारित जनगणना की मांग दशकों पुरानी है। विपक्ष के अनुसार इसका उद्देश्य अलग-अलग जातियों की संख्या के आधार पर उन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण देना और जरूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ देना मकसद बताया जाता है।

मामले को लेकर भाजपा व कांग्रेस आमने-सामने

जातीय जनगणना के मामले पर केंद्र और राज्यों में सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस समेत कई दलों में काफी विरोधाभास है। कांग्रेस निरंतर मांग कर रही है कि जातीय जनगणना का काम जितना जल्दी हो पूरा किया जाना चाहिए। कांग्रेस कह रही है कि सरकार जान-बूझकर जातीय जनगणना को करवाना नहीं चाहती। कांग्रेस इसको लेकर बड़े मूवमेंट की तैयारी में भी है। कांग्रेस मामले को सदन के अंदर व बाहर दोनों जगह उठा रही है।

वहीं दूसरी तरफ सत्ताधारी भाजपा का कहना है कि ये देश को बांटने जैसा है। जातीय जनगणना के जरिए लोगों में ठीक संदेश नहीं जाएगा। पार्टी लगातार कह रही है कि वो जातीय राजनीति से कोसों दूर है। इसको लेकर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल भी कह चुके हैं कि सबको अच्छे से पता है कि हरियाणा में किस जाति के कितने लोग हैं। वो लगातार कह रहे हैं कि कास्ट बेस्ड पॉलिटिक्स लोगों को बांटने का काम करेगी और यही कांग्रेस का एजेंडा रहा है।

एससी वर्ग के 13.68 लाख परिवार

पीपीपी के आधार पर जातीय आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में एससी वर्ग के कुल 1368365 परिवार हैं। ये कुल परिवारों का 20.71 फीसद है। वहीं बीसी ए वर्ग के परिवारों की बात करें तो इनकी संख्या 1123852 हैं जो कुल परिवारों का 16.52 फीसद बैठता है।

बीसी बी वर्ग की बात करें तो इनकी संख्या 869079 है जो कि कुल जनसंख्या का 12.78 फीसद है। ये भी बता दें कि प्रदेश में 72 लाख परिवारों ने पीपीपी बनवाने के लिए आवेदन किया। इनमें से 68 लाख परिवारों का डाटा वेरीफाई हो चुका है। लगभग 2.5 लाख परिवार ऐसे हैं, जो किसी अन्य राज्य में रह रहे हैं, उनका डाटा अभी वेरीफाई होना है। कुछ परिवारों के डाटा वेरीफाई करने की प्रक्रिया चल रही है।

20 फीसद से ज्यादा एससी, 30 फीसद से ज्यादा बीसी

आने वाले चुनावों में एससी व बीसी वर्ग का आंकड़ा देखते हुए साफ है कि ये दोनो वर्डिग साइडिंग फैक्टर साबित होने वाले हैं। हरियाणा में एससी व बीसी वर्ग की बात करें तो कुल जनसंख्या का ये करीब 51 फीसदी है। पीपीपी के आधार पर प्रदेश की कुल संख्या 2 करोड़ 83 लाख है। इनमें से एससी वर्ग के लोगों की संख्या 5861131 है और कुल का 20.71 प्रतिशत है।

ऐसे में प्रदेश की कुल जनसंख्या का पांचवां हिस्सा एससी वर्ग का है। बीसी ए वर्ग के लोगों की संख्या 4793312 है जो कुल जनसंख्या का 16.93 फीसदी है। इनके अलावा बीसी बी कैटेगरी की संख्या 3797306 है। ये जनसंख्या का 13.41 फीसदी है। बता दें कि पिछले दिनों आईएएस और मुख्यमंत्री प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी उमाशंकर ने परिवार पहचान पत्र के बारे में और परिवारों के डाटा को किस प्रकार से एकत्रित किया, अपडेट किया, के बारे में विस्तृत जानकारी साझा की।

वर्षों बाद भी नहीं हुई जातीय जनगणना

बता दें कि साल 1872 में ब्रिटिश शासन के दौरान पहली बार जनगणना हुई थी। इसके बाद 1872 से लेकर 1931 तक जितनी भी दफा जनगणना हुई, इसमें जाति के आंकड़ों को दर्ज किया गया था। इसके बाद आजादी के बाद साल 1951 में पहली बार आजाद भारत में जनगणना को करवाया गया।

इस दौरान केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आंकड़ों को ही शामिल किया गया था, लेकिन 1951 के बाद 1961, 1971, 1981, 1991, 2001 और 2011 के किसी जनगणना में जातीय आंकड़े को शामिल नहीं किया गया। एक तरह से साफ है कि देश आजाद होने के बाद यहां जातीय जनगणना नहीं हुई और इसको लेकर तमाम सियासी दल अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से मामले से इत्तेफाक रखते हैं।

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