India News Haryana(इंडिया न्यूज), Punjab Haryana HC: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने तलाक संबंधित मामलों में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जो तलाक और आपराधिक मामलों के बीच स्पष्ट अंतर को रेखांकित करता है। कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि तलाक के मामलों में पति और पत्नी को एक साथ रहने पर मजबूर नहीं किया जा सकता और अदालत को वैवाहिक विवादों को सबूत के रूप में पेश करने का कोई महत्व नहीं है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की पीठ ने कहा कि तलाक की याचिका पर विचार करते समय यह समझना आवश्यक है कि अदालत केवल आरोपों और सबूतों के आधार पर फैसले नहीं ले सकती। यदि कोई पक्ष तलाक की मांग कर रहा है, तो अदालत उसे यथासंभव तर्कसंगत और व्यावहारिक दृष्टिकोण से ही देखेगी। तलाक की प्रक्रिया को गहराई से समझते हुए, कोर्ट ने कहा कि अगर एक पक्ष ने अपने तर्कों को सही ठहराने में असमर्थता व्यक्त की है, तो उसे किसी भी स्थिति में साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वैवाहिक विवादों में, तलाक की याचिका खारिज होने या वैवाहिक अधिकारों के अंतर्गत याचिका को अनुमति मिलने पर भी, इसका कोई निष्पादन नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि, जबकि आपराधिक मामलों में आरोप और सबूत की कसौटी पर फैसले होते हैं, तलाक के मामलों में दोनों पक्षों के बीच आपसी सहमति से ही सुलह की स्थिति बनती है।
इसलिए, कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया कि तलाक के मामलों में केवल कानूनी आधार पर ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक और मानवीय दृष्टिकोण से भी विचार किया जाना चाहिए। यह निर्णय न्याय प्रणाली में तलाक के मामलों के समाधान के तरीके को पुनः परिभाषित करता है, और यह दर्शाता है कि ऐसे मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और वैवाहिक संबंधों की जटिलताओं को समझना आवश्यक है।