डॉ. रविंद्र मलिक, India News Haryana (इंडिया न्यूज), Jannayak Janta Party : हरियाणा में 25 मई को लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद अब सबकी टकटकी 4 जून को आने वाले नतीजों पर टिकी हुई है। भाजपा और कांग्रेस जहां सभी 10 सीटें जीतने के दावे कर रही हैं तो वहीं इनेलो और जजपा भी लगातार बेहतर प्रदर्शन का दावा कर रहे हैं, लेकिन फिलहाल के राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि इनेलो और जजपा के लिए लोकसभा चुनाव की डगर कठिन है और दोनों को लोकसभा चुनावों के नतीजों से कोई ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
साढ़े चार साल तक सत्ता में भागीदार रही जजपा के लिए मुख्य सत्ताधारी दल भाजपा के दामन छुड़ाने के बाद दिक्कतों में काफी इजाफा हुआ। स्थिति ये रही कि पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवारों खासकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला और उनके परिवार को प्रचार के दौरान कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।
जजपा ने पहली बार 2019 में विधानसभा चुनाव लड़ा था और उचाना, बाढड़ा, टोहाना, बरवाला, नारनौंद, जुलाना, गुहला, उकलाना, नरवाना और शाहबाद 10 विधानसभा सीटें जीते थीं और जजपा ने प्रदेश की राजनीति में ठीक-ठाक उपस्थिति दर्ज करवाई थी लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी के विरोध के बाद काफी कुछ स्पष्ट हो गया।
वहीं दूसरी तरफ जजपा के ज्यादातर विधायक पार्टी हाईकमान और अजय चौटाला परिवार के खिलाफ लामबंद हो रखे हैं। पिछले एक साल में पार्टी के ज्यादातर विधायक किसी ने किसी रूप में विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह बगावती सुर अख्तियार करते नजर आए।
पार्टी के आधे विधायकों ने दुष्यंत पर उनको मंत्री न बनाने और ज्यादातर विभाग अपने ही पास रखने के चलते कड़ी नाराजगी दिखाई। भाजपा द्वारा जजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद पार्टी एक तरह से बुरा दौरा शुरू हो गया। पार्टी के रामकुमार गौतम, देवेंद्र बबली, रामनिवास सुरजाखेड़ा, जोगीराम सिहाग समेत ज्यादातर विधायक खुलकर जजपा के खिलाफ आ गए।
जोगीराम सिहाग ने पार्टी छोड़ हिसार से भाजपा के उम्मीदवार रणजीत सिंह चौटाला का समर्थन किया तो देवेंद्र बबली ने सिरसा से कांग्रेस उम्मीदवार कुमारी सैलजा का समर्थन कर दिया। ईश्वर सिंह सक्रिय राजनीति से सन्यास ले चुके हैं तो रामकरण काला के दोनों बेटे कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं। हालांकि बाद में जजपा ने सुरजाखेड़ा और सिहाग की तो विधानसभा सदस्यता भंग करने के लिए स्पीकर को लेटर भी लिखा।
जिस प्रकार से जजपा को लोकसभा चुनाव में विरोध हो रहा था, उससे इतना जरुर स्पष्ट हो गया था कि पार्टी के लिए आने वाला समय कठिन है और प्रदेश की राजनीति में बने रहने के लिए जजपा को पूरी ताकत लगानी होगी। सबसे अहम रहा जब दुष्यंत चौटाला किसी भी सीट से चुनावी रण में नहीं उतरे।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ऐसा विशेष रणनीति के तहत किया गया है और पार्टी से दुष्यंत की मां जो कि बाढ़ड़ा से विधायक हैं, तो हिसार सीट पर चुनावी रण में उतारा गया। पार्टी के ही एक सीनियर नेता ने बताया कि अगर जजपा चुनाव में नहीं उतरती तो गलत संदेश जाता कि वो भाजपा की मदद करने के लिए ऐसा कर रही है। ऐसे में जजपा को इसका लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का संभावित नुकसान अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनान में उठाना पड़ सकता था।
जजपा का एक तरह से सब कुछ दाव पर लगा है, भाजपा द्वारा झटका दिए जाने के बाद पार्टी लगातार हिचकोले खा रही है और एक के बाद एक झटकों से पार्टी को संभलने का मौका नहीं मिला है।
माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे पार्टी के सकारात्मक या नकारात्मक कैसे भी रहे हों, लेकिन जिन लोकसभा चुनाव में जिन विधानसभा सीटों पर पार्टी का वोट प्रतिशत ज्यादा रहेगा, पार्टी उन सीटों पर ज्यादा फोकस करेगी। पार्टी की कोशिश होगी कि बेशक ज्यादा सीटें न मिलें लेकिन कम से कम कम पिछले विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को पार्टी दोहराए।
गौरतलब है कि साल 2018 में आपसी मतेभेदों और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में चौटाला परिवार बिखर सा गया और इनेलो से अलग होने के बाद अजय चौटाला ने जजपा का गठन किया। अभय चौटाला के भाई अजय चौटाला ने अपने बेटों दुष्यंत और दिग्विजय के अलावा कई अन्य नेताओं के साथ पार्टी को अलविदा कह दिया। इसके बाद हरियाणा में जजपा का गठन हुआ। तब से लेकर अब अजय चौटाला और अभय चौटाला के परिवार में खाई बढ़ी ही है।
जजपा को अभय चौटाला के अलावा पार्टी के विधायकों को भी रोष झेलना पड़ा। पार्टी को भाजपा से झटका मिलने के बाद कांग्रेस के सामने वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि कट्टर विरोधी इनेलो की स्थिति भी कोई ज्यादा खास नहीं है और हरियाणा में न इनेलो का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है और न ही जजपा का। ऐसी स्थिति में लोकसभा चुनाव के नतीजे जजपा के लिए निर्णायक रहने वाले हैं।
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