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Sanyukta Kisan Morcha: हरियाणा में 22 मार्च को हिसार के माजरा प्याऊ और 31 मार्च को अम्बाला की मोहड़ा मंडी में शहीद शुभकरण सिंह के श्रद्धांजलि समारोह में हजारों-लाखों किसान शामिल होंगे

  • संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के नेताओं ने आरएसएस द्वारा किसान आंदोलन के खिलाफ दिए गए बयान की तीखे शब्दों में आलोचना करी
  • 23 मार्च को सभी मोर्चों पर शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का शहीदी दिवस मनाया जाएगा जिसमें बड़ी संख्या में नौजवान शामिल होंगे
  • हरियाणा में खटकड़ टोल से किसान नेता अनीश खटकड़ को पुलिस ने गिरफ्तार किया

 India News (इंडिया न्यूज़),Sanyukta Kisan Morcha, अंबाला आज संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) व किसान मजदूर मोर्चा के नेताओं जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवन सिंह पंधेर, जसविंदर लोंगोवाल, अभिमन्यु कोहाड़, मंजीत राय, गुरिंदर सिंह भंगू, गुरामनीत मांगट, इंदरजीत कोठबुढा, होशियार गिल, अंग्रेज खारा, सुखजिंदर सिंह, अवतार सिंह ने चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर के बताया कि हरियाणा के हिसार, सिरसा, अम्बाला, फतेहाबाद, सोनीपत, पानीपत, जींद, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर में, उत्तरप्रदेश व राजस्थान के अलग-अलग जिलों में 16 मार्च से ही शहीद किसान शुभकरण सिंह की अस्थि कलश यात्रा चल रही है जिसमें किसान बड़ी संख्या में शामिल होकर किसान आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।

22 मार्च को हरियाणा के हिसार में माजरा प्याऊ पर, 27 मार्च को राजस्थान में एवम 31 मार्च को हरियाणा के अम्बाला में मोहड़ा मंडी में श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किये जायेंगे जिसमें लाखों की संख्या में किसान शामिल होंगे। इन श्रद्धांजलि समारोह में संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) एवम किसान मजदूर मोर्चा का शीर्ष नेतृत्व शामिल होगा।

किसान नेताओं ने आरएसएस के महासचिव द्वारा किसान आंदोलन के खिलाफ दिए गए बयान की कड़े शब्दों में आलोचना करी, ज्ञात रहे कि आरएसएस के महासचिव ने आपत्तिजनक बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि किसान आंदोलन के नाम पर अलगाववादी ताकतें अराजकता फैलाने का प्रयास कर रही हैं।

किसान नेताओं ने कहा कि आरएसएस द्वारा दिया गया बयान दिखाता है कि सत्ता में बैठे लोगों में किसान-विरोधी सोच कूट-कूट कर भरी है। किसान नेताओं ने कहा कि इतिहास गवाह है कि जब भी देश की एकता व अखण्डता की रक्षा के लिए कुर्बानी देने की बात आई है तो किसान-मजदूर समाज ने सबसे अधिक कुर्बानी दी हैं, चाहे बात आजादी के आंदोलन की हो, 1962, 1965, 1971 या 1999 के युद्धों की बात हो। दूसरी तरफ आरएसएस ने 52 वर्षों तक अपने मुख्यालय पर देश का तिरंगा झंडा नहीं फहराया।

किसान नेताओं ने कहा कि यदि भाजपा-आरएसएस को इस किसान आंदोलन में अलगाववादी ताकतें दिखती हैं तो फिर केंद्र सरकार ने आंदोलनकारी किसानों से 4 दौर की वार्ता क्यों करी? किसान नेताओं ने कहा कि किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए भाजपा-आरएसएस द्वारा अनेकों हथकंडे अपनाए जा रहे हैं व साजिशें रची जा रही हैं जिनसे देश की जनता को आने वाले समय में सावधान रहने की जरूरत है।

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Amit Sood

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