India News Haryana (इंडिया न्यूज), Smart India Hackathon : पाइट में बना हरियाणा का नोडल सेंटर, अलग-अलग राज्यों के युवा बना रहे प्रोजेक्ट, 15 को परिणाम स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन (एसआइएच) के सातवें संस्करण में हरियाणा में देश के युवा पानी और मिट्टी की सेहत के लिए काम कर रहे हैं। पानी कैसे स्वच्छ रहे, मिट्टी उर्वरा बनी रहे, इसके लिए युवा समाधान निकाल रहे हैं। हरियाणा के नोडल सेंटर पानीपत इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में युवाओं ने ऐसे मॉडल बनाए हैं, जिससे कुछ मिनट में ही पानी में बैक्टीरिया का पता चल सकेगा। मिट्टी को बेहतर बनाया जा सकेगा। भूजल को बढ़ा सकेंगे।
किसान को फसल एवं बागवानी के लिए सबसे पहले एनपीके चाहिए होता है। यानी नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम। लेकिन किसान को यह पता नहीं होता कि मिट्टी को किसकी कितनी जरूरत है। ग्रीन फ्यूजन इनोवेशन टीम ने तीन टैंक बनाए हैं, इनके नाम हैं एनपीके।
ओडिशा के सीवी रमन ग्लोबल यूनिवर्सिटी से आए युवाओं ने गाय के गोबर, मूत्र, टमाटर, केला, नीम से एनपीके को बनाया गया है। टीम के सदस्यों ने बताया कि उन्होंने ऐसा प्रोजेक्ट बनाया है, जिसके माध्यम से किसान को अपनी मिट्टी की गुणवत्ता का पता चल जाएगा। उसी के अनुसार, वह खुद एनपीके बना सकेगा। बाजार में जिसकी कीमत हजारों में होती है, उसे वे सौ रुपये में बनवाकर दे सकते हैं। जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। भूजल स्तर बेहतर होता है।
पानी को साफ करने के लिए ऐसे मॉडल बनाए हैं, जिनसे किसी तरह का अन्य प्रदूषण नहीं होगा। यहां तक की सोया चंक्स से भी पानी को भी साफ किया जा सकता है। भूजल को बेहतर किया जा सकता है। पुणे के डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस टेक्नोलॉजी कॉलेज से आई टीम ने दूषित पानी को साफ करने के लिए प्राकृतिक समाधान दिया है।
टीम के सदस्यों ने ऐसा प्रोजेक्ट बनाया है, जिसमें पानी को साफ करने के लिए चारकोल की जरूरत नहीं होगी। सोया चंक्स का इस्तेमाल किया जाएगा। सौर ऊर्जा के माध्यम से यूवी लाइट से पानी को अंतिम स्तर तक साफ कर देंगे। पानी में मौजूद सभी हानिकारक बैक्टीरिया खत्म हो जाएगा। सोया चंक्स से बाहर निकले पानी को पिया भी जा सकता है। खेती की जा सकती है। भूजल को बढ़ाया जा सकता है।
कोयंबटूर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्रों ने ऐसा पैन बनाया है, जिससे दो मिनट में पता चल जाता है कि पानी में कौन सा बैक्टीरिया है। यह कितना खतरनाक है। किस स्तर पर पानी जहरीला हो चुका है, यह किट बता देती है। मेघा, मनीषा, स्वाति, इंदु एवं दो छात्रों के साथ बनी इस टीम ने किट के साथ कई प्रयोग किए हैं।
इसके माध्यम से नदी से लेकर ड्रेन की अलग-अलग जगह की स्थिति और बैक्टीरिया का पता लगाया जा रहा है। संबंधित विभाग को अलर्ट किया जाता है, ताकि पानी साफ हो सके। पांच से छह हजार रुपये में यह किट बन जाती है। टीम के सदस्यों का कहना है कि ज्यादा प्रोडक्शन होने पर इसकी लागत पांच से दस गुना तक कम हो सकती है।
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