Sthaneshwar Temple, Kurukshetra : विशेष धार्मिक महत्व रखता है कुरुक्षेत्र का स्थानेश्वर मंदिर, जानें पूरा इतिहास

इशिका ठाकुर, Haryana (Sthaneshwar Temple, Kurukshetra) : कुरुक्षेत्र विश्वभर में धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है। वैसे तो कुरुक्षेत्र को महाभारत के लिए जाना जाता है। यहां की धरा पर अनेक प्राचीन मंदिर हैं, इनमें से एक मंदिर है स्थानेश्वर मंदिर, जिसे स्थानु के नाम से भी जाना जाता है। स्थाणु शब्द का अर्थ होता है भगवान शिव का वास।

स्थानेश्वर मंदिर एक प्राचीन मंदिर

बता दें कि स्थानेश्वर मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि भगवान शिव की शिवलिंग के रुप में पहली बार पूजा इसी स्थान पर हुई थी और यहां शिवलिंग विश्व में सबसे पहली बार स्थापित किया गया था। इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान ब्रह्मा ने आदिकाल में की थी।

Sthaneshwar Temple, Kurukshetra

महाभारत से पूर्व भगवान कृष्ण ने पांडवों सहित इस शिवलिंग की पूजा की थी व युद्ध में विजय प्राप्ति का वरदान मांगा था। इस मंदिर स्थल पर अनेक ऋषि-मुनियों ने भी तप किया है। कुरुक्षेत्र में लाखों की संख्या में श्रद्धालु कुरुक्षेत्र के तीर्थों के दर्शन करने के लिए आते हैं। यह माना जाता है कि जो तीर्थयात्री कुरुक्षेत्र की 48 कोस की तीर्थ यात्रा पर आते हैं, उनकी यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना अधूरी मानी जाती है।

शिवरात्रि पर लगता है विशेष मेला

आपको यह भी बता दें कि शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशेष मेला लगता है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि शिवरात्रि के अवसर पर जो भक्त यहां पर जल अभिषेक करता है, उसे 1 वर्ष की शिव पूजा के बराबर का फल प्राप्त होता है, इसीलिए यहां पर शिवरात्रि के दिन भारी भीड़ देखने को मिलती है।

Sthaneshwar Temple, Kurukshetra

स्थानेश्वर मंदिर सरस्वती नदी के तट पर स्थापित है

यह स्थानेश्वर मंदिर सरस्वती नदी के तट पर स्थापित है। मंदिर में एक सरोवर भी है। माना जाता है कि इस सरोवर में स्नान करने से कई प्रकार के कुष्ठ रोग सहित कई दोषों से मुक्ति मिलती है। मंदिर एक छत के साथ एक क्षेत्रीय प्रकार की वास्तुकला का अनुसरण करता है और तीर्थयात्रियों और भक्तों द्वारा प्रेम और श्रद्धा के साथ पूजा जाता है। एक कलात्मक गुंबद की तरह की छत वाला मंदिर भारतीय प्रकार की वास्तुकला का अनुसरण करता है।

Sthaneshwar Temple, Kurukshetra

पुजारी रोशनपुरी के अनुसार इस मंदिर पर कालांतर में 24 आक्रमण हुए हैं, जिनमें से 22 आक्रमण मुगलों द्वारा किए गए हैं। मोहम्मद गजनवी ने यहां पर आक्रमण किया और भगवान नटराज की एक बेशकीमती मूर्ति यहां से अपने साथ ले गए। इन सब आक्रमणों के बावजूद भगवान शिव इस नगरी में विराजमान है।

यह भी पढ़ें : Mahashivratri 2023 : जानिए क्यों मनाया जाता है शिवरात्रि का पर्व, पूजा का मुहूर्त, विधि और किस मंत्र का करें उच्चारण

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