डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Stir in Haryana Politics, चंडीगढ़ : लोकसभा चुनाव से पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने राजद से अपनी राहें जुदा कर ली हैं और एक बार फिर से राजनीतिक पलटी मार दी है। ऐसा ही हरियाणा में भी पिछले कुछ दिनों में नेताओं की अदली-बदली हुई है। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आकार देने के लिए पिछले कुछ दिनों में कई छोटे-बड़े चेहरे सत्ताधारी भाजपा व मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का रुख कर रहे हैं।
इसके चलते हरियाणा की सियासत में हलचल महसूस की जा रही है। पिछले करीब एक महीने में आम आदमी पार्टी को छोड़ 3 दिग्गज निर्मल सिंह, चित्रा सरवारा और अशोक तंवर भाजपा व कांग्रेस का दामन चुके हैं। इसके चलते जहां भाजपा व कांग्रेस मजबूत हुई है वहीं हरियाणा की राजनीति में हिचकोले खा रही आप के लिए ये बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अशोक तंवर के भाजपा और निर्मल सिंह व चित्रा के कांग्रेस में जाने से दोनों पार्टियों में कुछ सीटों पर विराट बदलाव की झलक देखने को मिल सकती है।
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में निर्मल सिंह कांग्रेस से टिकट के तगड़े के दावेदार थे लेकिन कुमारी सैलजा के विरोध के चलते उनको टिकट नहीं मिली और इससे नाराज होकर कांग्रेस को छोड़ते हुए उन्होंने अंबाला शहर की सीट से निर्दलीय ही ताल ठोक डाली थी। बतौर निर्दलीय कैंडिडेट वो जीत तो नहीं सके लेकिन भाजपा को असीम गोयल को कड़ी टक्कर देते हुए करीब 56 हजार वोट लिए।
इसी तरह से उनकी बेटी चित्रा सरवारा को भी कुमारी सैलजा के विरोध के चलते टिकट नहीं मिली। चित्रा ने भी अंबाला कैंट से बतौर निर्दलीय कैंडिडेट दूसरे स्थान पर रहते हुए 44 हजार से ज्यादा वोट हासिल की। ऐसे में अब माना जा रहा है कि दोनों पिता-पुत्री इन दोनों सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। निर्मल सिंह पूर्व सीएम व कांग्रेस दिग्गज भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीब हैं और राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पिछली बार के कांग्रेस प्रत्याशियों की दोनों सीटों पर दुर्गत का हवाला हाईकमान को दे हुड्डा दोनों की टिकट के लिए कड़ी पैरवी करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में पार्टी हुड्डा की धुर विरोधी कुमारी सैलजा के लिए दोनों का कांग्रेस ज्वाइन करना बड़ा झटका माना जा रहा है।
पिछले 4 साल में 3 बार पार्टी बदलने वाले अशोक तंवर के भाजपा में आने के बाद यहां भी सियासी समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। चूंकि वो एससी समुदाय से हैं तो उनके भाजपा में आने के बाद निरंतर लोकसभा चुनाव में उनको आरक्षित सीट सिरसा से उतारे जाने की संभावना है।
इसके पीछे ये हवाला दिया जा रहा है कि सिरसा सीट से भाजपा सांसद की सियासी तबीयत व राजनीतिक स्थिति वहां मजबूत नहीं है। ऐसे में अशोक तंवर की भाजपा में एंट्री से सुनीता दुग्गल खुद को काफी असहज महसूस कर रही हैं। हालांकि भाजपा अशोक तंवर को दूसरी अंबाला सीट से भी उतार सकती हैं, लेकिन इसकी संभावना फिलहाल के राजनीतिक परिदृश्य के लिहाज से कम ही नजर आ रही है। यहां सांसद रहे दिवंगत रतन लाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया समेत कई अन्य एससी समुदाय से आने वाले भाजपा नेता दावेदार हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां दूसरे दलों से नेताओं को आयात कर खुद की स्थिति मजबूत करने में लगी हैं। जिन सीटों पर भाजपा, कांग्रेस, जजपा और इनेलो सीटों पर कमजोर है, उन सीटों पर खुद को मजबूत करने के लिए वो सीटों पर दूसरे दलों से कम और ज्यादा जनाधार वाले नेताओं को अपनी पार्टी में लाने में जुटे हैं। हालांकि जो भी छोटे-बड़े नेता दूसरे दलों में जा रहे हैं, उनको संबंधित पार्टी की तरफ से टिकट या फिर कोई अन्य पोजीशन का आरंभिक वादा नहीं किया जा रहा है। चुनाव नजदीक होने के चलते उम्मीद की जा रही है कि नेताओं की एक दूसरे दल में आवाजाही जारी रहेगी।
भाजपा दिग्गज चौधरी बीरेंद्र सिंह ने पिछले साल जींद रैली में सहयोगी जजपा से गठबंधन न तोड़ने की स्थिति में अपनी ही पार्टी भाजपा पर दबाव बनाने के लिए पार्टी छोड़ने की घोषणा की थी लेकिन फिलहाल तक भाजपा ने गठबंधन तोड़ना तो दूर, बीरेंद्र सिंह तक को कोई खास तवज्जो नहीं दी है। माना जा रहा था कि राजस्थान चुनाव के नतीजे आने के बाद भाजपा गठबंधन पर कोई फैसला ले सकती है। राजस्थान विधानसभा चुनाव में पराजय का दंश झेलने के बाद भी भाजपा ने जजपा के साथ गठबंधन को बना रखा और एक तरह से अब साफ हो गया कि भाजपा व जजपा का गठबंधन चुनाव तक जारी रहेगी।
चूंकि बीरेंद्र सिंह और जजपा दिग्गज दुष्यंत चौटाला हिसार व उचाना सीट पर आमने-सामने हैं। ऐसे में राजनीतिक वजूद को लेकर जजपा से जारी इस लड़ाई में भाजपा के जजपा के साथ गठबंधन तोड़ने की स्थिति में वो पार्टी को अलविदा कर सकते हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अपने पुराने घर कांग्रेस में वापसी में कर सकते हैं। पिछले साल उन्होंने कांग्रेस हाईकमान खासकर सोनिया गांधी की तारीफ भी की थी। इसके चलते भी चर्चा उठी थी कि वो भाजपा से जारी नाराजगी के चलते कांग्रेस में जा सकते हैं।
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