देश में जब भी कारगिल युद्ध का जिक्र होता है उन शहीदों का भी जिक्र बड़े गर्व के साथ होता है जिन्होंने इस लड़ाई में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। शहीद सैनिकों में से एक हैं गांव सोफ़्ता के रहने वाले जाकिर हुसैन जिनकी शहादत के किस्से बड़े गर्व से उनके गांव में सुनाए जाते हैं।
26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी। इस युद्ध में सेना के 26 अधिकारियों, 21 जेसीओ और 452 सैनिकों ने अपनी शहादत देकर भारत को विजय दिलाई थी। युद्ध में 66 अधिकारी, 60 जेसीओ और 1085 सैनिक घायल हो गए थे। हम ऐसे वीरों के जज़्बे को सलाम करते हैं, जिन्होंने देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। पृथला के गांव सोफता के रहने वाले शहीद जाकिर हुसैन के परिवार के लोगो ने बताया कि पूरे परिवार में केवल जाकिर हुसैन को हीे फौज में जाने का शौक था। 1988 में जाकिर सेना में भर्ती हुई थी।
जाकिर हुसैन लांस नायक थे। उन्हें ग्रेनेडियर्स में शामिल किया गया था। 3 जुलाई 1999 को जब कारगिल युद्ध में लड़ाई करने का ऑर्डर आया तो उस समय शाम हो चुकी थी। 22 फौजियों की टीम पहाड़ी पर जब दुश्मन से 1 किमी की दूरी पर पहुंची तो फायरिंग शुरू हो गई। इसी दौरान जाकिर हुसैन ने सटीक निशाना लगाते हुए एक पाकिस्तानी सिपाही की एक आंख में गोली मार दी। गोली मारने के बाद जैसे ही वह चट्टान की ओट से बाहर निकले, दुश्मन की एक गोली सीधे उनके माथे में लगी और उन्हें वहीं पर दम तोड़ दिया। उनके बेटों को आज भी अपने अब्बू पर गर्व है। उनकी सबसे छोटा बेटा नवाज शरीफ ने तो उनका चेहरा भी नहीं देखा था।
जाकिर हुसैन की पत्नी रजिया बेगम ने बताया कि 1982 में उनकी शादी हुई और 1988 में वह सेना में भर्ती हो गए और 1999 में वह शहीद हो गई उन्होंने बताया कि उनके शहीद होने के एक हफ्ते बाद उनको सूचना दी गई। आज भी उनकी कमी परिवार को महसूस होती है लेकिन उनकी शहादत पर परिवार को भी गर्व है उन्होंने कहा कि वह अपने छोटे बेटे को आर्मी में भेजना चाहती हैं और उसके लिए उसका सबसे छोटा बेटा तैयारी कर रहा है। शहीद जाकिर हुसैन के बेटे अब्दुल ने बताया कि जिस समय उनके पिताजी शहीद हुए उनकी उम्र 9 साल के करीब थी और आज भी उन्हें वह समय याद है जब उनके पिताजी को घर लाया गया था उन्होंने कहा कि वह अपने बच्चों को अपने पिताजी की वीरता के बारे में बताते हैं और उन का छोटा भाई नवाज शरीफ आर्मी के लिए तैयारी कर रहा है।