डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Tussle in Haryana BJP Leaders, चंडीगढ़ : हरियाणा में अगले साल चुनाव होने वाले हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ हो सकते हैं। हालांकि हरियाणा भाजपा में इसको लेकर नेताओं की राय अलग-अलग है, लेकिन इसको लेकर तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। इसी बीच सभी दलों के सामने हरियाणा में असंतुष्ट नेताओं की पार्टी के साथ नाराजगी निरंतर सामने आ रही है।
सत्ताधारी भाजपा के अलावा मुख्य विपक्षी दल और जजपा निरंतर अंदरूनी तौर पर अपनी पार्टी के नेताओं की नाराजगी झेल रहे हैं। हर पार्टी में ऐसे कई नेता हैं जो अपनी ही पार्टी से किसी ने किसी मसले पर नाराज चल रहे हैं। वहीं भाजपा की बात करें तो पार्टी में ऐसे कई दिग्गज हैं जिन्होंने पार्टी लाइन के खिलाफ कई बार जाकर पार्टी को असहज किया है और पार्टी के सीनियर नेता की मानें तो ऐसे नेताओं की लिस्ट को अंदरुनी तौर पर अपडेट भी कर रही है। पार्टी से अंदरुनी तौर पर नाराज चल रहे इन दिग्गजों में कई तो वो हैं जो कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आए थे। पार्टी की एक परिवार से एक ही पद या सीट की पॉलिसी भी दिग्गजों की नाराजगी का कारण बन रही है।
चौधरी बीरेंद्र सिंह लंबे समय से अपनी ही पार्टी से काफी नाराज चल रहे हैं। सार्वजनिक मंच पर भी कई दफा वो पार्टी के खिलाफ बोलकर इसको असहजता वाली स्थिति में ला चुके हैं, लेकिन प्रदेश लीडरशिप और पार्टी हाईकमान ने साफ कर रखा है कि वो किसी भी नेता के किसी तरह के दबाव में नहीं आएगी। सरकार में सहयोगी जजपा के साथ उनकी लंबी राजनीतिक जंग हैं और आने वाले चुनावों को देखते हुए इसके बढ़ने की पूरी संभावना है।
बीच-बीच में बीरेंद्र सिंह संकेत देते रहे हैं कि उनकी सुनवाई न होने पर वो पार्टी लाइन से परे जाकर कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। पिछले दिनों पार्टी प्रभारी बिप्लब देव ने कहा था कि उचाना से उनकी पत्नी भाजपा की टिकट पर चुनाव जीतेंगी। इसके बाद कयासों के नए दौर शुरु हो गए। बीरेंद्र सिंह को लगने लगा कि भाजपा अब जजपा से गठबंधन तोड़ लेगी लेकिन भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं किया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि वो चाहते हैं कि भाजपा को तुरंत प्रभाव से जजपा से किनारा कर लेना चाहिए। इसके विपरित भाजपा की रणनीति में बीरेंद्र सिंह के अनुकूल चीजें फिट नहीं बैठ रही।
कांग्रेस को अलविदा कहने के बाद राव इंद्रजीत ने भाजपा ज्वाइन कर ली थी। उनको भाजपा से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी, लेकिन भाजपा ने उनको साफ तौर पर चादर में पैर रखने के बार-बार संकेत दिए। पिछली बार वो बेटी के लिए भी टिकट चाहते थे, लेकिन भाजपा में एक परिवार एक टिकट या एक पद की पॉलिसी में वो फिट नहीं हो पाए। इसी के चलते उनकी बेटी आरती राव को भाजपा ने टिकट नहीं दिया।
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इसके चलते भी पार्टी से वे काफी नाराज रहे। ऐसा कई दफा हुआ है जब उन्होंने सार्वजनिक मंच पर अपनी ही पार्टी को असहज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गौरतलब है कि पंचकूला स्टेडियम में पार्टी के राज्य स्तरीय कार्यक्रम में उन्होंने काफी कुछ बोला था और इसको लेकर पार्टी हाईकमान तक बात गई थी। पार्टी की तरफ से उनको कई दफा लिमिट में रहने के संकेत दिए गए कि अगर कोई दिक्कत है तो पार्टी के प्लेटफॉर्म पर कहें न कि किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में। रह-रहकर इस बात की चर्चा लगातार उठ रही है कि क्या वो चुनाव से पहले बड़ा फैसला से सकते हैं।
पिछली बार के लोकसभा चुनाव में रोहतक से भाजपा की सीट पर चुनाव जीतने वाले अरविंद शर्मा ने भी कई दफा पार्टी लाइन से जा बयानबाजी की है। उन्होंने अपनी ही पार्टी के दिग्गज और प्रदेश उपाध्यक्ष मनीष ग्रोवर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
जुबानी जंग लंबी चली और पार्टी को इसके चलते कहीं न कहीं परेशानी भी हुई। राज्य नेतृत्व ने भी कई दफा उनको संकेत दिया कि वो पार्टी लाइन में रहकर बयानबाजी करें और अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हालांकि बाद में मामले का पटाक्षेप हो गया था लेकिन कहीं न कहीं उनकी नाराजगी बरकरार रही। पार्टी को भी इस बात का खासा इल्म है कि अरविंद शर्मा के मन में कुछ न कुछ चल रहा है। हालांकि पार्टी उनकी हर गतिविधि पर नजर बनाए हुए हैं।
पार्टी से अंदरुनी तौर पर नाराज चल रहे नेता कई दफा संकेत दे रहे हैं कि वो चुनाव से पहले कोई कदम उठा सकते हैं। मतलब साफ है कि वो पार्टी पर दबाव बनाकर अपनी बात मनवाना चाह रहे हैं। तमाम राजनीतिक हालात को देखते हुए पार्टी भी खुलकर कुछ नहीं कर और कह रही। असंतुष्ट नेताओं की तरफ से बार-बार ये हिंट दिया जा रहा है कि वो चुनाव से पहले कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। साफ मतलब ये कि वो अपने समर्थकों समेत किसी अन्य में जा सकते हैं।
आने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती। इसी के चलते पार्टी ने अनुशासन की लाइन को नजरअंदाज करने वाले नेताओं के खिलाफ फिलहाल तक तो कई ज्यादा सख्ती नहीं दिखाई। महज नसीहत वाले अंदाज में उनको समझाने की कोशिश की लेकिन कईयों को फिर भी ये रास नहीं आया। पिछली दफा भाजपा को हरियाणा के हिस्से सभी 10 सीटें आई। ऐसे में पार्टी पर अब इतिहास दोहराने का भी दबाव है। पड़ोसी राज्य राजस्थान में होने वाले चुनावों को लेकर भी पार्टी निरंतर मंथन कर रही है।