India News (इंडिया न्यूज), Prithla Assembly constituency, चंडीगढ़ : कर्नाटक में कांग्रेस को मिली प्रचंड जीत ने हरियाणा में भी राजनीतिक सरगर्मियां तेज कर दी हैं। यह इस जीत का असर ही माना जाएगा कि कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव व छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी सैलजा 25 मई को हुड्डा गुट के गढ़ माने जाने वाले फरीदाबाद के पृथला विधानसभा में जनसभा को संबोधित करने जा रही हैं। इस जनसभा ने पृथला विधानसभा के राजनीति में तूफान लाने का कार्य किया है।
जहां इस रैली को लेकर पक्ष-विपक्ष के अलावा आम जनता की नजर बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर जिलेभर में तरह-तरह के मायने निकालकर भी देखा जा रहा है। राजनीति विशेषज्ञ हरियाणा के जिले फरीदाबाद में इस रैली को सैलजा गुट की मजबूती से जोड़कर देख रहे हैं।
अब अगर 2024 के चुनावी रण के मद्देनजर बात की जाए तो पृथला विधानसभा में कांग्रेस के चार दावेदार नजर आते हैं। इस फेहरिस्त में सबसे पहले आते हैं पृथला के पूर्व विधायक रघुवीर सिंह तेवतिया। इनकी सबसे बड़ी ताकत जाट वोट बैंक है। विधायक रहते हुए इन्होंने जाट समाज के लिए काफी कार्य भी किए थे, लेकिन जाट समाज से इनके जगजाहिर लगाव और बांकी बिरादरियों से दूरी ने इन्हें काफी नुकसान भी पहुंचाया था। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का आशीर्वाद हमेशा से इन्हें विधानसभा की टिकट के रूप में मिला है। लेकिन रघुवीर तेवतिया की बढ़ती उम्र और लगातार पिछले दो विधानसभा चुनावों में मिली हार के कारण इनकी दावेदारी कमजोर दिखाई देती है।
वहीं दूसरी तरफ शारदा राठौर दावेदार हैं। पृथला विधानसभा क्षेत्र में जाट, ब्राह्मण और दलित वोट के साथ राजपूत समाज के वोटर निर्णायक रूप से हार व जीत का फैसला तय करते हैं। इस समाज के समर्थन की बदौलत ही 2014 और 2019 में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा की टिकट पर पृथला विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा प्रमुख नेताओं से आशीर्वाद मांगा था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। 2019 में इन्होंने एक जनसभा के दौरान भाजपा की सदस्यता पृथला से चुनाव लड़ने के लिए ही ली थी। लेकिन हाईकमान के कड़े विरोध और इनकी घटती हुई विश्वसनीयता ने इनकी दावेदारी को खारिज करने का काम किया।
अब हम बात करेंगे सैलजा गुट के राकेश तंवर की। इन्होंने आगामी 25 मई को कुमारी सैलजा के नेतृत्व में एक जनसभा के आयोजन की घोषणा कर पृथला विधानसभा पर अपनी दावेदारी ठोक दी है। धनबल के परिपूर्ण राकेश तंवर को कई वरिष्ठ किसान नेताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त है और पृथला विधानसभा में किसान वोट बैंक की भूमिका सबसे अहम बताई जाती है, लेकिन जमीनी तौर पर इनकी पूर्णत: निष्क्रियता और जनमानस से इनकी दूरी ही इनकी दावेदारी को कमजोर करने का काम कर रही हैं। वहीं अगर राजनीतिक पंडितों की मानें तो इस बार पूर्व मुख्यमंत्री टिकट बटवारे में कोई कौताही नहीं बरतना चहाते, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के अलावा जिले में जाटों के कद्दावर नेता लगातार पृथला विधानसभा से हाथी छाप वाले पूर्व विधायक से संपर्क साधे हुए हैं।
अगर कांग्रेस चुनाव से पूर्व हाथी छाप से जीते हुए ब्राह्मण समाज से ताल्लूक रखने वाले पूर्व विधायक टेकचंद शर्मा को पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ाने का फैसला ले तो यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जिसमें यहां चुनावी आकंडे़ कुछ और ही देखने को मिलेंगे। अब देखना तो यह भी दिलचस्प होगा कि कुमारी सैलजा अन्य विधानसभा में अपने हनुमान के लिए ताकत झोंकती हैं या फिर पृथला में हुड्डा पिता-पुत्र को पटखनी देने के लिए। आखिर में हम कह सकते हैं कि अगर पृथला से कांग्रेस सीट को लाना है तो टिकट बटवारें की बारिकियों पर पूरा ध्यान और ज्ञान लगाना होगा।
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