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Factory Accidents : मुनाफे के खेल में जिंदगी हो रही सस्ती, फैक्टरियों में हादसों में अंग गंवाकर अपंग हो रहे मजदूर

  • आंकड़ों में सामने आया-प्रदेश में ऑटोमोबाइल कंपनियों व फैक्टरियों में हर साल 12 से ज्यादा हादसे हुए

  • सबसे ज्यादा रेवाड़ी, फरीदाबाद और गुरुग्राम में

  • पीड़ितों के परिजन व लेबर यूनियन कर रहे हैं समय पर मुआवजे व आर्थिक सहायता की मांग

India News (इंडिया न्यूज़), Factory Accidents, चंडीगढ़ : देश हर मोर्चे पर निरंतर आगे बढ़ रहा है और इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर निरंतर नए आयाम छू रहा है। इसके अलावा देश ऑटोमोबाइल, स्पेयर पार्ट्स इंडस्ट्री समेत तमाम क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस विकास में योगदान देने वाले लेबर तबके की सुध लेने वाले कम ही लोग हैं। चाहे सरकार कोई भी रही हो या फिर खुद बड़ी-बड़ी कंपनियों के संचालक, फैक्टरियों में काम कर रही लेबर की सुध लेने वाला कोई नहीं है। हर रोज हरियाणा में फैक्टरियों में मजदूर हादसों का शिकार होकर अपनी शारीरिक क्षमता खो रहे हैं और अपंग हो रहे हैं।

जारी विधानसभा सत्र में भी इसको लेकर खुलासा हुआ कि फैक्टरियों में काम करते हुए मजदूर लगातार हादसों का शिकार हो मशीनों की चपेट में आ रहे हैं। मुख्य रूप से गुरुग्राम और रेवाड़ी जिलों में इस तरह की घटनाएं निरंतर रिपोर्ट हो रही हैं। पिछले 9 साल में हर साल औसतन एक दर्जन घटनाएं इस तरह की हो रही हैं। मशीन पर काम करते हुए अपंग होना तो बेहद सामान्य सी बात हो गई है।

सरकार के आधिकारिक डाटे के अनुसार हर साल औसतन करीब एक दर्जन लेबर हादसों का शिकार हो रही है, लेकिन वहीं दूसरी ओर लेबर यूनियन का कहना है कि ये आंकड़ा तो कुछ भी नहीं है और हर रोज ऐसी कई घटनाएं ऑटोमोबाइल फैक्टरियों में रही हैं। भारत में एक ओर जहां अनगिनत मजदूरों को हर रोज काम मिलता है, वहीं कितने ही मजदूर अपनी बुनियादी शारीरिक क्षमताओं से हाथ धो रहे हैं।

इन जिलों में हादसों में सबसे ज्यादा लेबर हो रही अपंग

ऑटोमोबाइल व अन्य इंडस्ट्री के काम के मामले में गुरुग्राम अन्य जिलों से आगे है। आंकड़ों में सामने आया है साल 2015 से लेकर अब करीब 9 साल की अवधि में मजदूरों के साथ 114 हादसे हुए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 52 हादसे रेवाड़ी में हुए हैं और 36 हादसे गुरुग्राम में घटित हुए। इस लिहाज से 76 फीसदी हादसे तो इन दोनों ही जिलों में हुए हैं। इसके अलावा गुरुग्राम में 11, सोनीपत में 5, यमुनानगर में 3 और हिसार में 2 मामले रिपोर्ट हुए हैं।

पावर प्रेस की गुणवत्ता को लेकर नहीं होता टेस्ट

जानकारी में सामने आया है कि कंपनियों व फैक्टरियों में लेबर विभाग द्वारा मशीन की चैकिंग नहीं की जाती। पंजाब फैक्ट्रीज एक्ट 1948 रुल के पंजाब फैक्ट्री रुल 1952 के शेड्यूल-6 अनुसार मशीनों के एग्जामिनेशन की जिम्मेदारी संबंधित संचालक की होती है और 12 महीने की अवधि में किसी योग्य व्यक्ति या अथॉरिटी द्वारा एग्जामिनेशन प्रक्रिया को पूरा करना होता है।

लेबर यूनियन का दावा हर रोज होते हैं कई हादसे

वहीं आधिकारिक डाटा से परे मामले में दूसरा पहलू भी है। बड़ी कंपनियों में काम कर रही लेबर के साथ होने वाले हादसों को लेकर संबंधित यूनियन का दावा है कि हर रोज इस तरह की छोटी-बड़ी कई घटनाएं हो जाती हैं। गुरुग्राम व रेवाड़ी में आटोमोबाइल संबंधी कई बड़ी कंपनियों में काम करने वाले जो श्रमिक मशीनों के साथ काम करते हैं; उनकी उत्पादन क्षमता मशीनों के बिना काम करने वालों की तुलना में ज्यादा होती है। ये प्रोडक्ट और सर्विस की लागत और कीमत दोनों को कम कर देती है। इन कंपनियों में अधिकतम उत्पाद प्रेस मशीनों के जरिए ही तैयार होते हैं। इन मशीनों पर काम करने वले श्रमिकों के साथ बड़े पैमाने पर हादसे होते हैं। गुरुग्राम के औद्योगिक क्षेत्र में बड़ी-बड़ी कंपनियों के कारखानों में काम करने वाले उन मजदूरों की दुर्दशा आम बात हो गई है।

प्रेस मशीनों पर उंगलियां व हाथ खो देते हैं श्रमिक

जानकारी में ये सामने आया है कि पावर प्रेस मशीनों से घायल होने वाले अधिकांश मजदूर पर्याप्त रूप से पारंगत नहीं होते और काम पर लगने से पहले उनको प्रशिक्षण की जरूरत होती है। लेकिन ऐसा न होने के चलते वो हादसों का शिकार होते हैं और प्रेस पर काम करते हुए युवा और बूढ़े समान रूप से उंगलियां और हाथ खो देते हैं। ये भी सामने आया है कि कई कारखाने कई मौजूदा नियमों का उल्लंघन भी करते हैं। उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए कंपनियों द्वारा सुरक्षा उपायों को दरकिनार किया जाता है और उन्हें इयरप्लग और हेलमेट जैसे सुरक्षा गियर उपलब्ध नहीं कराए जाते। इसके अलावा श्रमिकों को अक्सर “अंडर मेंटेनेंस” पावर प्रेस मशीनों पर काम करने के लिए कहा जाता है।

मुनाफे के खेल में मजदूरों की जान सस्ती क्यों

फैक्टरियों व कंपनियों में काम कर रहे मजदूरों के साथ होते हादसों के चलते सवाल उठता है कि देश के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और बड़ी कंपनियों के मालिकों के मोटे मुनाफे के इस खेल में एक गरीब मजदूर की जिंदगी इतनी सस्ती क्यों हो जाती है। लेबर यूनियन का कहना है श्रमिकों से कम समय में अधिक से अधिक उत्पादन का दबाव डालकर ज्यादा मुनाफे के लिए श्रमिकों से ओवरटाइम कराया जाता है, जिसमें उनका कोई हिस्सा भी नहीं होता और उल्टा उन्हें कई बार अपने हाथ पैर गंवाकर जीवनभर उसकी कीमत चुकानी पड़ती है। यह स्पष्ट है कि इन मजदूरों के अधिकारों व सुरक्षा को उद्योगपतियों और फैक्टरी के मालिकों के द्वारा असुविधाओं के रूप में देखा जाता है। जिन्हें कारखानों के मालिक लगातार दरकिनार करने की कोशिश करते हैं।

सीआईटीयू महासचिव कामरेड नरेश कुमार ये बोले

फैक्टरियों व इंडस्ट्रियल यूनिट्स में काम करते हुए मजदूरों के साथ हर साल सैंकड़ों हादसे हो रहे हैं। सरकार द्वारा जो मजदूरों के साथ होने वाले हादसों को लेकर जानकारी दी गई है वो सही नहीं है। काम के दौरान मजदूरों को जरूरी सुरक्षा उपकरण मुहैया करवाए जाने की जरूरत है, ताकि उनको जिंदगी से किसी भी तरह का कोई खिलवाड़ न हो। हर साल सैकड़ों मजदूर काम के दौरान हादसे में अपने महत्वपूर्ण अंग गंवा देते हैं। सरकार व फैक्टरी संचालकों को समय पर उचित मुआवजे का भी प्रबंध करना चाहिए।

जनवरी 2015 से 30 नवंबर 2023 तक का डाटा

   जिला                                 दुर्घटनाओं की संख्या
1. रेवाड़ी                                     52
2. शहर                                      36
3. गुरूग्राम                                  16
4. सोनीपत                                  5
5. यमुनानगर                               3
6. हिसार                                    2

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Amit Sood

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