इशिका ठाकुर, India News (इंडिया न्यूज़), Wheat Yellow Rust, चंडीगढ़ : अबकी बार किसानों के खेतों में गेहूं की फसल काफी अच्छी लहरा रही है, जिसके चलते कृषि विशेषज्ञ काे भी अनुमान है कि अबकी बार पूरे भारत में गेहूं की बंपर पैदावार होगी, अब तक का गेहूं उत्पादन का देश का रिकॉर्ड टूटेगा। लेकिन किसानों के खेतों में अब कई स्थानों पर गेहूं की फसल में पीले रतवा का प्रकोप देखने को आ रहा है, जिससे किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आती है।
अगर समय रहते इसका प्रबंध न किया जाए तो यह गेहूं के उत्पादन पर काफी प्रभाव डालता है। कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि रतवा 3 प्रकार का होता है-पीला, काला और भूरा। उत्तरी भारत के पंजाब और हरियाणा राज्य में पीले रतवा का प्रकोप देखने को ज्यादा मिलता है। आईए जानते हैं कि पीला रतवा होता क्या है और इसका प्रकोप गेहूं की फसल को कैसे प्रभावित करता है और किसान इसको कैसे नियंत्रित कर सकते हैं।
गेहूं एवं जो अनुसंधान संस्थान करनाल के डायरेक्टर डॉक्टर ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है कि पीला रतवा गेहूं में लगने वाला एक मुख्य रोग है, जिससे गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ता है। गेहूं के फसलों पर उनकी पौधों पर पीले रंग का पाउडर लगा होता है। पहले यहां खेत के एक हिस्से को अपना शिकार बनाता है। उसके बाद धीरे-धीरे यह पूरे खेत में फैल जाता है और फसल का रंग पीला पड़ जाता है। यह एक प्रकार का पाउडर होता है, जब किसान अपने खेत में से निकलते हैं तो वह उसके कपड़ों पर लग जाता है। यह इसकी मुख्य पहचान है। इस गेहूं के पौधों पर पीले रंग की धारियां भी बन जाती हैँ। अगर कोई किसान भाई खेत में इस प्रकार के लक्षण देखता है तो तुरंत वह कृषि विशेषज्ञों से मिलकर इसका उपचार करें।
कृषि विशेषज्ञ ने जानकारी देते हुए बताया कि जिस खेत में हम फसल के उस बीज को लगाते हैं, जिसमें पहले ही पीले रतवा का प्रकोप था। उस फसल में इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है या फिर जिस खेत में ज्यादा नमी होती है उस खेत में भी इसका प्रकोप देखने को मिलता है। वहीं किसान कई बार पैदावार ज्यादा निकालने के लिए खेत में ज्यादा यूरिया डाल देते हैं। उस खेत में नमी बनी रहती है और उसमें भी इसका प्रकोप देखने को मिलता है।
अगर समय रहते इसका प्रबंध न किया जाए तो धीरे-धीरे पूरे खेत में इसका प्रभाव फैल जाता है, जिसके चलते पैदावार में काफी गिरावट आती है। यह एक प्रकार का फंगीसाइड होता है जो पौधों को अपने प्रकोप से सूखा देता है। पौधे का जो रस होता है उसको यह चूस लेता है और पौधा सूख जाता है। जिसके चलते उत्पादन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
पिछले काफी समय से इसका प्रभाव देखने को मिला है, जिसके चलते गेहूं संस्थान के वैज्ञानिक इसके ऊपर काम कर रहे हैं और अब गेहूं संस्थान ऐसे नए बीज तैयार कर रहे हैं जिसमें इसका प्रभाव कम होता है, ताकि किसानों को नुकसान होने से बचाया जा सके। मौजूदा समय में जो भी बीज संस्थान तैयार करते हैं, जिसके चलते इन बीजो में इस बीमारी से लड़ने की क्षमता होती है, जिसके चलते गेहूं पर इसका प्रभाव कम देखने को मिलता है।
कुछ ऐसी गेहूं की किस्म चयनित की गई हैं, जिनमें इसका प्रकोप ज्यादा होता है। अगर उसके बावजूद किसान अपने खेत में इस बीमारी को देखते हैं तो उसके लिए किस 200 मिलीलीटर प्रॉपिकॉनाजोल नामक दवाई 200 लीटर पानी में मिलाकर अपने खेत में स्प्रे करें, ऐसा करने से वह इस पर नियंत्रित कर सकते हैं और एक अच्छी पैदावार ले सकते हैं।
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