इंडिया न्यूज, Haryana (7th International Symposium) : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु (President Draupadi Murmu)ने कहा कि गीता सम्पूर्ण जीवन को जीने की संहिता है। श्रीमद् भगवद् गीता जीवन के द्वन्दों से बाहर निकालती है। 21वीं सदी के युग में तनाव, दुविधा, अप्रसन्नता से मुक्ति का रास्ता श्रीमद्भगवद् गीता हमें दिखाती है। इसको अपने व्यवहार में शामिल कर ही स्थिर, सफल व दुविधा रहित जीवन की दिशा में हम आगे बढ़ सकते हैं। वे मंगलवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आडिटोरियम हॉल में श्रीमद्भगवद्गीता के परिप्रेक्ष्य में विश्वशान्ति एवं सद्भाव विषय पर आयोजित 7वीं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्यातिथि बोल रही थी।
इससे पहले भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म, हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल, हरियाणा के शिक्षामंत्री कंवर पाल, गीता के प्रणेता एवं गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज, नेपाल के राजदूत डॉ. शंकर प्रसाद शर्मा, स्वामी गोविन्द गिरी, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने विधिवत रूप से दीप प्रज्ज्चलित कर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ किया। इस मौके पर राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका व जनरल आफ हरियाणा स्टडीज के विशेष अंक की प्रति भेंट की।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता सही अर्थों में एक अंतरराष्ट्रीय पुस्तक है। अनेक भाषाओं में गीता के कई अनुवाद हो चुके हैं। यह भारत वर्ष का सबसे प्रसिद्ध व लोकप्रिय ग्रंथ है। जिस तरह योग पूरे विश्व समुदाय को भारत की सौगात है उसी तरह योगशास्त्र गीता भी पूरी मानवता को भारत माता का आध्यात्मिक उपहार है। कुल मिलाकार गीता पूरी मानवता के लिए एक जीवन संहिता है। आध्यात्मिक दीप स्तंभ है। गीता कायरता को छोडने और वीरता को अपनाने का उपदेश देती है। हरियाणा के वीर जवानों, मेहनती किसानों व संघर्ष करने वाली बेटियों ने गीता के उपदेश को अपने जीवन में ढालकर अपने कर्मक्षेत्र में हरियाणा व पूरे देश का गौरव बढ़ाया है।
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