इंडिया न्यूज, अंबाला:
Agriculture Laws Repealed लगभग एक वर्ष से अधिक समय पहले संसद से पास कराया तीन कृषि कानूनों बिलों के वापस लेने की घोषणा पीएम ने कर दी। इस कानून के बारे में किसान संगठनों का आरोप था कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा, जिससे किसानों को नुकसान होगा। इस नए बिल के मुताबिक, सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर अति-असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण करती।
सरकार का पक्ष था-जमाखोरी पर रोक लगती- नए कानून में उल्लेख था कि इन चीजों और कृषि उत्पाद की जमाखोरी पर कीमतों के आधार पर एक्शन लिया जाएगा। सरकार इसके लिए तब आदेश जारी करेगी, जब सब्जियों और फलों की कीमतें 100 फीसदी से ज्यादा हो जातीं। या फिर खराब न होने वाले खाद्यान्नों की कीमत में 50 फीसदी तक इजाफा होता। किसानों का कहना था कि इस कानून में यह साफ नहीं किया गया था कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता था कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें। तीसरा कारण यह था कि सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है, लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वे सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें।
प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद कृषि कानूनों को वापस लिया जाएगा। कानून बनाने के साथ-साथ कानून वापस लेने का अधिकार संसद को है। संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू होगा और 23 दिसंबर को खत्म होगा। संविधान के अनुच्छेद 245 के तहत संसद को कानून बनाने और इसे वापस लेने का अधिकार है। अगर कोई कानून अपने उद्देश्य की पूर्ति में नाकाम रहता है तो इसे वापस ले लिया जाता है। अमूमन जब नया कानून बनता है तो उस विषय पर पुराने कानून को वापस लिया जाता है। इसके लिए नए कानून में एक खास प्रावधान जोड़ा जाता है।
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