इशिका ठाकुर, करनाल:
Anita Kundu Success Story यदि आपकी लग्न सच्ची है और इरादों में मजबूती है तो कोई कठिनाई आपका रास्ता नहीं रोक सकती। ये कहना है माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तीन बार तिरंगा फहराने वाली पहली भारतीय पर्वतारोही अनीता कुंडू (Anita Kundu) का। उन्होंने कहा कि सपने देखना और उन्हें पूरा करना हर एक महिला का हक है। फिर जीवन में भले ही कोई भी कठिनाइयां क्यों ना आए, उन्हें अवश्य पूरा किया जा सकता है।
युवाओं को चाहिए कि वे मां-बेटियों के समान ही सभी महिलाओं का सम्मान करे। हरियाणा पुलिस में सब इंस्पेक्टर पद पर तैनात कुंडू ने महिला कहा (Anita Kundu Redefines Life In An Inspiring Way) कि 2017 में वे दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को तीन बार, दो बार नेपाल की ओर से और फिर चीन की ओर से फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थी।
बचपन से एक पर्वतारोही बनने तक अनीता ने गरीबी और निराशा से भी घिरी रहीं। आज अनीता कुंडू पुरुषों और महिलाओं के लिए समान रूप से प्रेरणा हैं। हरियाणा के हिसार में किसान परिवार में जन्मी अनीता का प्रारंभिक बचपन घोर गरीबी में गुजरा था। 13 साल की उम्र में पिता को खोने के बाद उसे शादी के लिए प्रेशर झेलना पड़ा। वे बताती हैं कि वह घर में सबसे बड़ी थीं। (Anita Kundu Redefines Life In An Inspiring Way) पिता जी चाहते थे कि एक अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज बनूं। जब 12 साल की थी, तब बॉक्सिंग क्लास भी ज्वाइन की।, लेकिन पिता की मौत ने सब बदल दिया।
एक स्थानीय अखाड़े में बॉक्सिंग सीखने से लेकर अनीता कुंडू का जीवन पूरी तरह से उथल-पुथल भरा रहा। अनीता ने शादी करने के विचार को सिरे से खारिज कर दिया और घर की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। मासिक आय का कोई साधन नहीं होने के कारण अनीता और उसकी मां ने दूध बेचना शुरू कर दिया और खेती-बाड़ी में लग गए। किशोरावस्था में उसे और उसके परिवार को आसपास से परेशानी झेलनी पड़ी। (Anita Kundu Redefines Life In An Inspiring Way) वर्षों के संघर्ष के बाद अनीता ने 2008 में सफलता हासिल की।
हरियाणा पुलिस में प्रशिक्षण के दौरान अनीता कुंडू को पहाड़ों की चोटियों छूने की चाह के चलते उसकी रुची इस ओर बढ़ी। उस समय उसके आस-पास के लोगों ने उसे यह कहकर हतोत्साहित किया कि यह खेल महिलाओं के लिए नहीं। बेफिक्र और दृढ़ निश्चयी अनीता कुंडू ने अपने डीजीपी से मदद मांगी, जिन्होंने उन्हें पर्वतारोहण और उन्नत रॉक-क्लाइंबिंग सीखने की अनुमति दी और उन्हें रॉक-क्लाइम्बिंग सीखने के लिए 2009 में, उन्हें भारत-तिब्बत सीमा पुलिस में स्थानांतरित कर दिया। (Anita Kundu Redefines Life In An Inspiring Way) जहां उन्होंने पर्वतारोहण में कई पाठ्यक्रम पूरे किए। जैसे वजन प्रशिक्षण, उच्च ऊंचाई पर दौड़ना, जंगल में जीवित रहने के कौशल से लेकर भोजन या पानी के बिना जीवित रहना आदि। यहां उन्हें सबसे कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ा।
अनीता कुंडू ने एक ऐसे खेल में काम किया, जिसमें यकीनन महिलाओं की तुलना में पुरुषों का अधिक वर्चस्व है और आखिरकार, वह अपनी योग्यता साबित कर सकी। 2009 और 2011 के बीच अनीता ने माउंट सतोपंथ और माउंट कोकस्टेट सहित भारत के कुछ सबसे तकनीकी और चुनौतीपूर्ण शिखरों पर चढ़ाई की। अनीता पहली बार 2013 में नेपाल की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए 6 सदस्यीय टीम के साथ दो महीने के अभियान पर गए थी।
उन्हें एक महिला पर्वतारोही होने के साथ-साथ शाकाहारी होने की सभी बाधाओं का सामना करना पड़ा। ठंड के मौसम के कारण वह दो महीने तक स्नान नहीं कर सकते हैं। उसे सूखे मेवे, सूप और डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर जीवित रहना पड़ा। नेपाल की ओर से सफलतापूर्वक चोटी पर चढ़ने के बाद, अनीता ने पहली बार 2015 में चीन की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास किया। दुर्भाग्य से, भूकंप तब आया जब वह लगभग 22,000 फीट की ऊंचाई पर थी। उसकी टीम के कुछ सदस्य भूकंप से नहीं बच सके, और रेस्क्यू टीम के पहुंचने से पहले ही कई लोग घायल हो गए थे। वह बताती हैं, मेरे साथ रहने वाले लोगों में से कोई भी कभी वापस नहीं गया, लेकिन अनीता 2017 में एक और प्रयास करने के लिए लौट आई और 21 मई 2017 को शिखर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने में सफल रही।
2015 में चीन की ओर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का प्रयास किया। लेकिन भूकंप से यह प्रयास विफल हो गया। हालांकि, उन्होंने 21 मई 2017 को एक और प्रयास किया और इस बार माउंट एवरेस्ट की चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने में सफल रही। अनीता कुंडू कहती हैं कि यदि कोई मानसिक रूप से दृढ़ है तो वह कुछ भी हासिल कर सकता है। अनीता का यह कथन सच साबित हुआ है, अनीता सरासर मेहनत, लगन और दृढ़ संकल्प के कारण ही ऐसा कारनामा कर सकी हैं। इसकी देश भर के लोगो ने प्रयास की सराहना करता है।
अनीता कुंडू को मिले सम्मान और पुरस्कार
अनीता कुंडू उपलब्धि के क्षण
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