India News Haryana (इंडिया न्यूज), Abdul Rahman Makki : भारत के एक और मोस्ट वांटेड आतंकी का पाकिस्तान में अंत हो गया है। 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड अब्दुल रहमान मक्की की लाहौर के एक अस्पताल में मौत हुई है। उसे हाफिज अब्दुल रहमान मक्की नाम से भी जाना जाता है। बताया गया है कि मक्की कुछ दिन से बीमार था और हार्ट अटैक आने से उसकी मौत हुई है। उसे हाई शुगर भी थी। इसी वजह से उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। कुख्यात आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का यह दहशतगर्द लाल किले और 26 /11 के मुंबई हमले सहित कई बड़ी वारदातों में संलिप्त रहा है।
अब्दुल रहमान मक्की पिछले वर्ष पाकिस्तान में रहस्यमय ढंग से गायब हो गया था। तब पाकिस्तान की तरफ से बताया गया था कि कुछ अनजान बंदूकधारी उसे जबरन ले गए हैं, लेकिन सच यह था कि संयुक्त राष्ट्र ने उसे 7 आतंकी हमलों का हवाला देते हुए अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था और इसके बाद पाकिस्तान ने उसे छिपा दिया था। यूएन ने जिन सात हमलों में अब्दुल रहमान को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था उनमें 2008 में 26/11 के मुंबई हमले और 2000 में लाल किले पर हुए हमले के अलावा 2018 का गुरेज अटैक, और 2008 का रामपुर हमला भी शामिल था।
अमेरिकी वित्त विभाग ने 2010 में मक्की को स्पेशल डेजिग्नेटेड आतंकियों की लिस्ट में शामिल किया था। रिवॉर्ड फॉर जस्टिस प्रोग्राम के तहत अमेरिका ने मक्की पर 2 मिलियन डॉलर का ईनाम रखा था और उसे सजा दिलाने के लिए लोगों से उसकी जानकारी मांगी थी। जून 2022 में भारत और अमेरिका ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र के नियम 1267 के तहत उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन चीन ने इस पर रोक लगा दी थी। हालांकि बाद में जनवरी 2023 में चीन ने अपनी रोक हटा ली थी। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र कमेटी ने अब्दुल रहमान मक्की को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया था।
अब्दुल रहमान मक्की का जन्म 1954 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के बहावलपुर में हुआ था। वह लंबे समय से हाफिज सईद का करीबी रहा है। अब्दुल रहमान ने लश्कर और जमात-उद-दावा में कई अहम पद संभाले थे। मक्की पॉलिटिकल चीफ और लश्कर के लिए फंड जुटाने जैसी जिम्मेदारी संभालता था। वह लश्कर की गवर्निंग बॉडी शूरा का मेंबर भी था। हाफिज अब्दुल रहमान मक्की को अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद 2019 में पाकिस्तानी पुलिस ने टेरर फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था। अप्रैल 2021 में उसे 9 साल की सजा सुनाई गई थी। हालांकि सबूतों की कमी का हवाला देकर लाहौर हाईकोर्ट ने कुछ महीने बाद उसे रिहा कर दिया था।
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