India News (इंडिया न्यूज), Beant singh murder case, नई दिल्ली : आज सुप्रीम कोर्ट में एक बड़े केस पर फैसला सुनाया जा रहा है। यह केस खालिस्तानी आतंकवादी बलवंत सिंह राजोआना पर है। दरअसल राजोआना को आज कोई सजा नहीं सुनाई जा रही बल्कि वह अपनी सजा कम करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा रहा है।
दरअसल राजोआना को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित कुल 18 लोगों की हत्या का मुख्य दोषी करार देते हुए सजा-ए-मौत सुनाई गई है। राजोआना ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की गुहार लगाई है। उच्चतम न्यायालय ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की 1995 में की गई हत्या के जुर्म में बलवंत सिंह राजोआना को सुनाई गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने से बुधवार को इनकार कर दिया।
बलवंत सिंह राजोआना ने सुप्रीम कोर्ट में सजा कम करने की याचिका डालते हुए यह तर्क दिया है कि उसकी दया याचिका 2012 से लंबित है। केंद्र सरकार उसकी याचिका पर लंबे समय तक फैसला नहीं ले पाई है। वह 27 साल से जेल में है। यह उसके मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है। बलवंत सिंह राजोआना ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि अगर उसकी दया याचिका पर फैसला नहीं होता है, तो विकल्प के रूप में तब तक उसे पैरोल पर छोड़ा जा सकता है।
ज्ञात रहे कि पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह हत्या 31 अगस्त 1995 को उस समय की गई थी जब वे सचिवालय के बाहर अपनी कार में सवार होने को तैयार थे। तभी वहां एक खालिस्तानी मानव बम बनकर पहुंचा और खुद को उड़ा लिया। मुख्यमंत्री की हत्या हो चुकी थी। उनके साथ 16 और लोग भी मारे गए। आपको बता दें कि राजोआना को 1995 में पंजाब के पूर्व सीएम बेअंत सिंह की हत्या के लिए अदालत से दोषी ठहराया गया था। बेअंत सिंह को पंजाब में अलगाववादी ताकतों पर काबू करने के लिए जाना जाता था।
बेअंत सिंह की हत्या को सही ठहराते हुए बलवंत सिंह राजोआना ने 1996 में कोर्ट में कहा था कि जज साहब, बेअंत सिंह खुद को मसीहा समझने लगा था और हजारों मासूमों की जान लेकर खुद को गुरु गोबिंद सिंह और राम जी की तरह मानने लगा था। इसलिए मैंने उसे खत्म करने का फैसला लिया।’ बलवंत ने आगे कहा था कि सिख दंगों में युवा सिखों की हत्या का बदला लेने के लिए उसने ऐसा किया। बेअंत सिंह हत्याकांड में बलवंत सिंह राजोआना को पुलिस ले 1995 में गिरफ्तार किया था। 2007 में सीबीआई की अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई। राजोआना पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/307/120-बी के तहत दंडनीय अपराधों और विस्फोटक पदार्थ कानून की धारा 3 और 4 के तहत मुकदमा चलाया गया।
आपको बता दें कि बलवंत सिंह राजोआना पंजाब के लुधियाना जिले के गांव राजोआना में साधारण परिवार से था। वह बतौर कॉन्सटेबल 1987 में पंजाब पुलिस में भर्ती हुआ था। बेअंत सिंह हत्याकांड से पहले तक वह बलवंत सिंह नाम के साथ जाना जाता था लेकिन जैसे ही उसका नाम बेअंत सिंह हत्याकांड में आया तो वह देश-विदेश में बलवंत सिंह राजोआना के नाम से जाना जाने लगा। बेअंत सिंह हत्याकांड के लिए बलवंत सिंह राजोआना ने पंजाब पुलिस के एक अन्य कर्मचारी दिलावर सिंह ने मानव बम बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। कहा जाता है कि यदि दिलावर उस दिन बेअंत सिंह की हत्या करने से चूक जाता तो फिर यह काम राजोआना को करना था।
31 जुलाई 2007 को कोर्ट ने इस चर्चित मामले में फैसला सुनाया। मास्टरमाइंड जगतारा सिंह और बलवंत सिंह राजोआना को सजा-ए-मौत दी गई जबकि तीन दोषियों गुरमीत, लखविंदर और शमशेर को उम्रकैद मिली। एक दोषी नसीब सिंह को 10 साल की जेल मिली लेकिन जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह राजोआना की फांसी की सजा के खिलाफ कई सिख संगठनों ने देश व विदेश में विरोध करते हुए इसके खिलाफ मांग उठाई। जिसपर इन दोनों की मौत की सजा टलती गई। आज इस मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगी की क्या बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा को उम्र कैद में तबदील किया जा सकता है या फिर नहीं।
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