इशिका ठाकुर, India news (इंडिया न्यूज़), Bu Ali Shah Qalandar Dargah, पानीपत: इतिहास के पन्नों पर दर्ज तीन युद्धों की गवाह बनी पानीपत की धरती के गर्भ में कई ऐसे किस्से भी समाए हुए हैं, जिनसे लोग आज भी अनजान हैं, ऐसा ही एक किस्सा है बु अली शाह कलंदर की दरगाह का। पानीपत के कलंदर बाजार के बीच में बनी बु अली शाह कलंदर की दरगाह देश के साथ-साथ विदेश के लोगों के लिए भी आस्था का प्रतीक है।
पूरी दुनिया में तीन जगहों पर यह दरगाह है। पहली पानीपत में, दूसरी पाकिस्तान में और तीसरी इराक के बसरा में। चूंकि बसरा की दरगाह महिला सूफी की है, इस्लाम में हजरत अली को मानने वाले हर व्यक्ति का सपना होता है कि इन दरगाह पर जाकर मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।
बु-अली शाह कलंदर के जन्म की मान्यता
1190 ई. में कलंदर शाह का जन्म हुआ था और 122 साल की उम्र में 1312 ई. में उनका इंतकाल हो गया। कलंदर शाह का जन्म पानीपत में ही हुआ था। उनका नाम शरफुदीन था। उनके माता-पिता इराक के रहने वाले थे, इनकी तालीम पानीपत से ही हुई और करीब साढे़ 700 साल पहले दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट में एक जज के तौर पर भी रहे। कलंदर शाह के पिता शेख फखरुद्दीन अपने समय के महान संत और विद्वान थे। इनकी मां हाफिजा जमाल भी धार्मिक प्रवृत्ति की थीं।
बु अली शाह की दरगाह करीब 700 साल पुरानी
कलंदर शाह के जन्मस्थान को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म तुर्की में हुआ, जबकि कई लोग अजरबैजान बताते हैं। ज्यादातर लोगों के मुताबिक पानीपत ही उनकी जन्मस्थली है। कलंदर शाह की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पानीपत में हुई। कुछ दिन बाद वे दिल्ली चले गए और कुतुबमीनार के पास रहने लगे। उनके ज्ञान को देखते हुए किसी संत के कहने पर उन्होंने खुदा की इबादत शुरू की।
लगातार 36 साल की तपस्या के बाद उन्हें अली की बु प्राप्त हुई थी। तभी के उनका नाम शरफुदीन बु अली शाह कलंदर हो गया। कहा जाता है कि मरने से पूर्व उन्होंने कहा था कि उन्हें मरणोपरांत पानीपत की धरती में ही दफनाया जाए। लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि बु अली शाह की दरगाह करीब 700 साल पुरानी दरगाह है।
मान्यता अजमेर शरीफ व हजरत निजामुद्दीन के समान
लोगों के दिलों में बु अली शाह की दरगाह की मान्यता अजमेर शरीफ व हजरत निजामुद्दीन के समान है। यहां बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने आते हैं और दरगाह के बगल में एक ताला लगा जाते हैं और ताला लगाने के साथ-साथ लोग एक संदेश की तरह अपने मन की मुराद एक कागज पर लिखकर दरगाह से चले जाते हैं और जब लोगों द्वारा मांगी गई मन की मुराद पूरी हो जाती है तो वह फिर बु अली शाह की दरगाह पर आते हैं और अपनी हैसियत के अनुसार गरीबों को खाना खिलाते और दान-पुण्य करते हैं।
यहां बड़ी तादाद में रोज लोग आते हैं, लेकिन बृहस्पतिवार को अकीदतमंदों की भारी भीड़ उमड़ती है। सालाना उर्स मुबारक पर यहां खास जलसा होता है। उर्स के मौके पर खास तौर पर दुनियाभर से बु अली शाह के अनुयायी आते हैं। इस दरगाह के मुख्य दरवाजे की दाहिनी तरफ प्रसिद्ध उर्दू शायर ख्वाजा अल्ताफ हुसैन हाली पानीपत की कब्र भी मौजूद है।
दरगाह के पत्थरों की भी विशेष मान्यता
ऐसी भी मान्यता है कि पानीपत स्थित बु अली शाह की दरगाह पर लगाए गए पत्थर जिन्नातों द्वारा लगाए गए हैं जो नायाब पत्थर आज भी यहां मौजूद हैं। यहां लगाए गए पत्थर न केवल मौसम बताने वाले पत्थर हैं बल्कि सोने की जांच करने वाले कसौटी पत्थर और जहर मोहरा नाम के पत्थर भी हैं। जहर मोहरा पत्थर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई विषैला सांप या कोई भी विषैला जीव इंसान को काट ले तो यह पत्थर सारा जहर इंसान के जिस्म से चूस लेते हैं।
बु अली शाह कलंदर की दरगाह पर बड़ी संख्या में अपनी मुराद मांगने वाले लोगों के कारण पानीपत के कलंदर बाजार में पूरा साल रौनक लगी रहती है, जिसके कारण यहां मौजूद दुकानदारों का कारोबार भी बेहतर तरीके से चलता रहता है। बु अली शाह कलंदर की दरगाह पर सड़क तथा रेलमार्ग से पहुंचना बेहद आसान है।