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Festival Of Idea : तुष्टिकरण की राजनीति पर चर्चा, बद्रीनारायण बोले- बहुसंख्यकों को महत्व न देने से शुरू हुई हिंदुत्व की राजनीति

India News (इंडिया न्यूज़), Festival Of Ideas, दिल्ली: ITV नेटवर्क की तरफ से 24 और 25 अगस्त, 2023 को देश की राजधानी दिल्ली में फेस्टिवल ऑफ आइडियाज (Festival Of Ideas) कॉन्क्लेव का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश के तमाम क्षेत्रों के दिग्गज लोग अपने विचारों को देश की जनता के साथ साझा करेंगे। साथ ही लोगों के सवालों का जवाब भी देंगे।

इसी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार सशीद किदवई और लेखक बद्री नायारण शामिल हुए। संडे गार्जियन अखबार की निदेशक ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने भी इस सत्र में हिस्सा लिया। तुष्टिकरण की राजनीति पर पूछे जाने पर बद्री नारायण ने कहा कि यह  इस पर निर्भर करता है की राजनीतिक प्रक्रिया को कैसे देखते है। एक के लिए यह तुष्टिकरण है तो एक तरफ यह शामिल करने और प्रतिनिधत्व देने का तरीका है। ब्रदीनारायण ने कहा कि किसी भी लोकतंत्र में बहुसंख्यक का आकलन किया जाता है। अल्पसंख्यक भी दिखाई देते है।

महत्व किया दिया जा रहा

ब्रदीनारायण के अनुसार, अगर हम बहुसंख्यक को छोड़कर लोकतंत्र को परिभाषित करते है तो यह गलती होती है। इसकी यह तुष्टिकरण की बात सामने आती है। तब कुछ लोगों को लगता है की हमें महत्व नहीं दिया जा रहा इसलिए राजनीतिक धुव्रीकरण होता है।

तमगा कांग्रेस के साथ जुड़ा था

तुष्टिकरण में कौन-कौन सी चीजें होती है? इसपर ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने कहा कि यह ऐसा है जब मैं इस बारें में सोचती हूं तो दो चीजें मेरे दिमाग में आती है। यह तमगा कांग्रेस के साथ जुड़ा था जैसी राजनीति करती थी। उसे बीजेपी की तरफ से तुष्टिकरण कहा गया। तुष्टिकरण के लिए हमें समझना पड़ेगा की यह काम कैसा करता है। हमें तुष्टिकरण पर समझने के लिए यह समझना जरूरी है की यह कौन कर रहा है, इसका समाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोष क्या है।

वोट की तरफ देखना गलत

बद्रीनारयाण ने कहा कि अगर आप समुदाय को एक वोट की तरफ देखते है ना की वैसा जैसा विकास के लिए जरूरी होता है। तब हम प्रतीकात्मक राजनीति करते है। इस स्थिति में विकास नहीं होता है। जैसी की आजादी के बाद मुस्लिमों के साथ किया गया। पसंमादा मुसलमान कहते है की आज पीएम ने हमारा नाम लिया। क्योंकि प्रीतकात्मकता की राजनीति की वजह से उन्हें कोई पूछने वाला नहीं था।

बहुसंख्यक को समझना जरूरी

एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए जरूरी है की बहुसंख्यक समाज की मानसिक और सामजिक समस्या का ध्यान रखे पर हमारे यहां इसकी उल्टा हुआ। बहुसंख्यकों को 70 साल में भाग नहीं देना इतना आगे बढ़ गया है की एक धारणा बन गया की इसे ही हिंदुत्व कहा गया।

यह भी पढ़ें : Festival Of Ideas : द संडे गार्जियन फाउंडेशन की निदेशक के संबोधन के साथ फेस्टिवल ऑफ आइडियाज का हुआ आगाज

यह भी पढ़ें : Festival Of Ideas : कॉन्क्लेव से जुड़ी हर अपडेट….

Amit Sood

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