लेखक अश्विन सांघी कहते हैं, 'संविधान की मूल प्रस्तावना में लेखकों ने 'धर्मनिरपेक्षता' को शामिल करना जरूरी नहीं समझा क्योंकि बहुलवाद हमेशा से प्रचलित रहा है।'#FestivalofIdeas #NewsX #IndiaNews #TheDailyGuardian #SundayGuardian #AishwaryaPanditSharma #IndiaNewsLive@ashwinsanghi… pic.twitter.com/BbNZdy2Lwl
— India News (@NetworkItv) August 25, 2023
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
अश्विन संघी ने कहा कि 1947 के बाद से हम देखने लगे जैसा भारत सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा है। अगर हम रामायण तो देखे 300 तरफ के रामायण है। मैं यह कहना (Festival Of Ideas) चाहता हूं यह कहना आसान है कि यह 300 तरफ तो यह झूठ है। मैं यह कहना चाहता हूं की यह सभी 300 राम के लिए लिखा जो हुए ही नहीं। मैं यह नहीं मान सकता।
हर राज्य में हुए कार्यक्रम
लेखक अभय कुमार ने कहा कि इससे अच्छा (Festival Of Ideas) अपनी सांस्कृतिक दिखाने का क्या उदहारण हो सकता है जब भारत में जी-20 के कार्यक्रम हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में किए जाते है। एक सांस्कृतिक भारत और एक युवा भारत है।
बहुलवाद हमेशा से प्रचलित रहा
अश्विन संघी ने कहा कि हम सभी भारत में सनातन धर्म से आते है। इसे मानने का कोई एक तरीका है। अगर आप भक्ति में मानते है या आप शक्ति में मानते है। अगर आप शिवलिंग में भगवान मानते है या आप उसे पत्थर मानते, दोनों स्थिति में आपका स्वागत है। संविधान की मूल प्रस्तावना में लेखकों ने ‘धर्मनिरपेक्षता’ को शामिल करना जरूरी नहीं समझा क्योंकि बहुलवाद हमेशा से प्रचलित रहा है।
वैक्सीन आपूर्ति व्यावहारिक उदाहरण
वही कवि अभय कुमार ने कहा कि जी-20 का ध्यय वाक्य है वसुधैव कुटुंबकम। वसुधा मतलब होता पृथ्वी। ऐसा विचार दुनिया में कहीं नहीं हो सकता है। जब हमारा संसद बन रहा था तो सेंट्रल हॉल में इसे लिखा गया। कोविड-19 के दौरान, भारत की वैक्सीन आपूर्ति वसुधैव कुटुंबकम का व्यावहारिक उदाहरण है।
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