इंडिया न्यूज, Odisha News (Draupadi Murmu Struggle Life): देश के नए राष्ट्रपति के चयन को लेकर मतगणना लगातार जारी है जिसको लेकर देशभर की नजरें भी टिकी हुई हैं। बता दें कि द्रौपति मुर्मू और यशवंत सिन्हा में टक्कर है, जिसमें आदिवासी महिला मुर्मू की जीत निश्चित बताई जा रही है। Draupadi Murmu Struggle Life
द्रौपति मुर्मू ओडिशा के गांव पहाड़पुर की रहने वाली हैं। उनके गांव के गेट पर बैनर लगा हुआ है, जिसके दोनों तरफ द्रौपदी मुर्मू की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हुई हैं। जिस पर लिखा हुआ है कि राष्ट्रपति पद की प्रार्थिनी द्रौपदी मुर्मू, पहाड़पुर गांव आपका स्वागत करता है। इतना ही नहीं यहां द्रौपति के पति की एक प्रतिमा पर पर ओडिशा के दो महान कवियों सच्चिदानंद और सरला दास की कविता की पंक्तियां भी लिखी हुई हैं।
द्रौपदी मुर्मू के पति श्याम मुर्मू की प्रतिमा पर उड़िया में एक कविता की चंद लाइनें लिखी हैं, जिसका हिंदी में मतलब है- खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाएंगे, इसलिए सदा अच्छे काम करें।
आपको यह भी जानकारी दे दें कि यहां से करीब 2.5 किलोमीटर अंदर एक स्कूल है जहां पर 42 साल पहले द्रौपदी मुर्मू दुल्हन यहां दुल्हन बनकर आई थीं। उस समय न तो न पक्की छत थी और न ही पक्की दीवारें।
4 साल के भीतर मूर्म के घर में 3 ट्रेजडी हुर्इं। 2010 से 2014 के बीच मूर्म के 2 बेटों और पति की मौत हो गई जिसने उसे इतना झकझौर दिया कि वह डिप्रेशन में चली गई थी। बता दें कि बड़े बेटे की मौत तो रहस्यमयी ढंग से हुई थी।
कुछ करीबियों ने कहा है कि वह अपने दोस्तों के घर पार्टी में गया था लेकिन जब रात को घर आया तो कहा कि वह काफी थका हुआ है, लेकिन सुबह वह मृत पाया गया। उसके दो साल बाद ही छोटे बेटे की मौत सड़क दुघर्टना में हो गई। वहीं पति की मौत के बाद तो मानों सबकुछ ही खत्म हो गया। Draupadi Murmu Struggle Life
इमारत में कभी सन्नाटा न पसरे, इसीलिए द्रौपदी मुर्मू ने इस घर को स्कूल में तबदील कर दिया। इसके भीतर द्रौपदी के दोनों बेटों और पति की प्रतिमा हैं। हर साल द्रौपदी इन लोगों की डेथ एनिवर्सरी पर यहां आती हैं। द्रौपदी ने अगस्त 2016 में अपने घर को स्कूल में तब्दील कर दिया।
इसके भीतर द्रौपदी के दोनों बेटों और पति की प्रतिमा हैं। हर साल द्रौपदी इन लोगों की डेथ एनिवर्सरी पर यहां आती हैं। द्रौपदी के जीवन की पहली ट्रेजडी, जिसका जिक्र गांव में कोई नहीं करता। उनकी पहली संतान की मौत। जो महज 3 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गई।
वहीं मुर्मू का भाभी शाक्यमुनि का कहना है कि जब बड़े बेटे की मौत हुई तो द्रौपदी 6 माह तक डिप्रेशन से उभर नहीं पाई थीं। उन्हें संभालना मुश्किल था। तब उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया, जिससे पहाड़ जैसे दुखों को सहन करने की शक्ति मिली।
वहीं रायरंगपुर में ब्रह्मकुमारी संस्थान की मुखिया सुप्रिया कहती हैं कि जब पर बड़े बेटे की मौत हुई थी तो द्रौपदी बिल्कुल सदमें में थीं। मैंने उन्हें कहा था कि सेंटर पर आएं, आपके मन को शांति अवश्य मिलेगी। फिर वह सेंटर पर आने लगीं।
वक्त की हमेशा वह पाबंध रही हैं। वे जितनी मिलनसार हैं, उतनी ही डाउन टु अर्थ। अहम तो उनसे कोसों दूर हैं। उनके अपने छूटे तो उन्होंने दूसरों को अपना बना लिया।’ वे कहती हैं, ‘द्रौपदी अपने साथ हमेशा एक शिव बाबा की छोटी पुस्तिका रखती हैं। वह प्रतिदिन सुबह साढ़े तीन बजे जाग जाती हैं।
उसी गांव की रहने वाली सुनीता मांझी कहती हैं कि द्रौपदी मुर्मू कितनी भी व्यस्त रहें, लेकिन सुबह की सैर, ध्यान और योग कभी नहीं छोड़ती। हर रोज सुबह 3.30 बजे वह उठती थीं।’ Draupadi Murmu Struggle Life
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