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Effect of ‘Vocal for Local’ on Rakshabandhan Festival : बाजार से चीनी राखियां गायब, भारतीय राखियों की भारी मांग

India News (इंडिया न्यूज़), Effect of ‘Vocal for Local’ on Rakshabandhan Festival, नई दिल्ली : पिछले कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की त्योहारों पर ‘वोकल फॉर लॉकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की अपील का असर धरातल पर नजर आ रहा है। उत्तर भारत के सबसे बड़े थोक बाजार, सदर बाजार में इस बार रक्षाबंधन के त्यौहार पर चीन निर्मित राखियां नदारद हैं और सिर्फ भारतीय राखियों की ही भरमार है।

इससे दुकानदारों में भी खासा उत्साह है और उन्हें इस बार अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है। सदर बाजार में चीन निर्मित राखियां कम उपलब्ध होने पर दुकानदारों का कहना है कि, “ आए दिन चीन सीमा का अतिक्रमण कर हमारे देश में घुस रहा है। हम क्यों चीन का माल बनाएं? चीन की राखी न हमारा ग्राहक खरीदना चाहता है और न हम बनाना चाहते हैं।

ग्राहक भारतीय राखियों की ही ज्यादा मांग कर रहे

एक अन्य दुकानदार ने कहा,“ अब लोग चीन की राखियां पसंद नहीं करते और इसलिए हम रखते भी नहीं हैं। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि ग्राहक भारतीय राखियों की ही ज्यादा मांग कर रहे हैं। वे चीन की राखी की मांग में कमी का एक प्रमुख कारण उसकी महंगी कीमत और खराब गुणवत्ता को भी बता रहे हैं। दुकानदार संजय यादव ने बताया कि इस बार सदर बाजार में तीन रुपए से लेकर 200 रुपए कीमत तक की भारतीय राखियां उपलब्ध हैं जबकि चीनी राखी की शुरूआती कीमत ही 50 रुपए है और यह टूटती भी जल्दी है।

बाजार में 80 फीसदी भारतीय राखियां ही मिल रही

दिल्ली व्यापार महासंघ के अध्यक्ष देवराज बवेजा ने  बताया, “ बाजार में 80 फीसदी भारतीय राखियां ही मिल रही हैं और राखियों के बाजार में चीन की हिस्सेदारी मुश्किल से 20 फीसदी तक ही रह गई है । यह भी केवल कच्चे माल के तौर पर ही है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि चीन की राखियों की मांग बीते तीन-चार साल के दौरान कम हुई है। इससे पहले चीन से राखियां खूब आती थीं।

राखियों के थोक व्यापारी का भी यही कहना था कि राखियों के लिए कुछ कच्चा माल जरूर चीन से आता है लेकिन उन्हें यहीं तैयार किया जाता है। देशभर के व्यापारियों के राष्ट्रीय सगंठन कान्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रवीण खंडेलवाल ने दावा किया है कि इस बार राखी पर दिल्ली समेत समूचे देश में 10 हजार करोड़ रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल राखियों का सात हजार करोड़ रुपये का व्यापार हुआ था।

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Amit Sood

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