India News (इंडिया न्यूज),Hyper-Technical, नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि पारिवारिक अदालतों से “अति-तकनीकी दृष्टिकोण” अपनाने और जल्दबाजी में एक पक्ष के जिरह के अधिकार को बंद करने की उम्मीद नहीं की जाती है।
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की एकल पीठ ने अभियोजन पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए पति से जिरह करने के अपने अधिकार की बहाली के लिए एक पत्नी के आवेदन को खारिज करते हुए। परिवार अदालत के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहार तमाम ऐसे मामले हैं जहां परिवारों में परस्पर द्वंद चल रहा है और अदालत उन मामलों को जल्द खत्म करना चाहती है फिर भी अदालत से उम्मीद की जाती है कि वह इस तरह के अतिवाद को न अपनाए-तकनीकी दृष्टिकोण और जल्दबाजी में जिरह कराने का तरीका पक्षकारों के अधिकार को बंद कर देता है।
दरअसल, पति-पत्नी के विवाद में फैमिली कोर्ट ने क्रॉस एक्जामिनेशन के लिए पति को समन भेजा, मगर पति उस तारीख को अदातल नहीं पहुंचा। इस पर फैमिली कोर्ट ने एक पक्षीय फैसला पत्नी के पक्ष में सुना दिया। पति ने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका की।
इस याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पति को अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए लेकिन पति उस निर्धारित पर भी अदालत नहीं पहुंचता तो उसे फिर अगली बार मौका नहीं दिया जाएगा।
यह भी पढ़ें : Parivartan Padyatra Day 80: मनमाने तरीके से काम करने वाली सरकार को जनता सिखाएगी करारा सबक: अभय सिंह चौटाला