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First Para Commando: महिला सर्जन मेजर पायल छाबड़ा बनीं देश की पहली पैरा कमांडो, जानिए उनकी सफलता की कहानी

• LAST UPDATED : September 16, 2023

India News (इंडिया न्यूज़) First Para Commando: कैथल जिले के कलायत की बेटी पायल छाबड़ा ने सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं में डॉक्टर रहते हुए प्रशिक्षित पैरा परीक्षा पास कर कमांडो बनने का गौरव हासिल किया है। । खास बात यह है कि पूर्व में कोई भी महिला सर्जन यह उपलब्धि हासिल नहीं कर सकी है। मेजर पायल छाबड़ा देश के केंद्रीय शासित प्रदेश लेह लद्दाख के आर्मी अस्पताल में बतौर विशेषज्ञ सर्जन की भूमिका निभा रही हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया रोल मॉडल

पैरा कमांडो बनने के लिए बेहद कठिन और जटिल प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है। आगरा के एयरफोर्स ट्रेनिंग स्कूल में पैरा कमांडो का प्रशिक्षण होता है। इसके लिए उत्तम स्तर की शारीरिक और मानसिक फिटनेस का होना जरूरी है। हरियाणा प्रदेश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ संदेश के संवाहक और सेना में महिलाओं की भागीदारी के पैरोकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के चिकित्सा सेवाओं (सेना) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल दलजीत सिंह को मेजर पायल छाबड़ा अपना रोल मॉडल मानती है। पायल की इस उपलब्धि पर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष ओपी धनखड़ ने ट्वीट के जरिए उन्हें बधाई दी है।

दौलत नहीं राष्ट्र सेवा चुनी

मेजर पायल शल्य चिकित्सक के तौर पर विश्व में दूसरे सबसे ऊंचे खारदूंगला मोटर बाईपास पर स्थित सेना अस्पताल में भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। आर्मी अस्पताल अंबाला कैंट में 13 जनवरी 2021 को कैप्टन के तौर पर उन्हें पहली नियुक्ति मिली थी। बड़े भाई संजीव छाबड़ा और भाभी डॉ. सलोनी छाबड़ा ने बताया कि डॉ. पायल को पूर्व में देश व विदेश के बहुत से नामी महानगरीय निजी मल्टी स्पेशलिस्ट अस्पतालों ने बड़े आकर्षक पैकेज ऑफर किए, लेकिन राष्ट्र सेवा का संकल्प उनके लिए अहम रहा। डॉ. पायल ने बताया कि माता-पिता ने बेटे की तरह उनकी परवरिश की। एमबीबीएस, एमएस की डिग्री हासिल करने के उपरांत करनाल स्थित राजकीय कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज सर्जरी विभाग में सीनियर रेजिडेंट भी रहीं।

पैरा कमांडो बनने का सफर आसान नहीं

पायल ने बताया कि पैरा कमांडो बनने का सफर आसान नहीं है। हिम्मत और कुछ कर गुजरने का जज्बा इसे स्पेशल बनाती है। प्रशिक्षण की शुरुआत सुबह तीन से चार बजे के बीच हो जाती है। अमूमन 20 से 65 किलोग्राम वेट (पिठू) लेकर 40 किलोमीटर तक दौडऩा और ऐसे अनेक जटिल टास्क को पूरा करना पड़ता है। यही कारण है कि ज्यादातर जवान चुनौतियों के समक्ष हिम्मत हार जाते हैं, लेकिन जिन लोगो के इरादे मजबूत होते हैं वे मुकाम पर पहुंचकर ही दम लेते हैं।

 

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