India News (इंडिया न्यूज), Rajasthan Assembly Elections, चंडीगढ़ : हरियाणा के पड़ोसी राज्य राजस्थान में 25 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। इस बात से हर कोई इत्तेफाक रखता है कि राजस्थान के चुनावी नतीजे का असर कहीं न कहीं व्यापक न सही लेकिन आंशिक रूप से ही सही, हरियाणा की राजनीति पर भी जरूर पड़ेगा। इसके अलावा जाट फैक्टर को देखते हुए हरियाणा के जाट दिग्गज भी वहां अपनी-अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार में ताकत लगा रहे हैं।
राजस्थान में भाजपा व कांग्रेस के अलावा सभी पार्टियों की हरियाणा के जाट नेताओं के जरिए वहां के जाट वोटर्स को लुभाने की पूरी कोशिश की जा रही है। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा के सभी दल भी वहां के चुनावों में दमखम इसलिए झोंक रहे हैं, ताकि पॉजिटिव रिजल्ट आने पर वहां के नतीजों को हरियाणा के चुनाव में भुनाया जा सके। इसको लेकर प्रदेश के तमाम राजनीतिक दलों के नेता राजस्थान के चुनावी प्रचार में उतर गए हैं। सभी की कोशिश है कि वहां पर उनकी पार्टी सरकार बनाने में सफल हो। तमाम पार्टियों के सियासी दिग्गज और राजस्थान चुनाव प्रचार में सक्रिय है। सभी पार्टियों ने मुख्य रूप से उन जाट दिग्गजों को वहां प्रचार के लिए उतारा है, जिनका किसी न किसी रूप से राजस्थान की राजनीति से जुड़ाव है या फिर वो वहां प्रभावी हो सकते हैं।
सत्ता में हिस्सेदार जेजेपी के तमाम नेता राजस्थान चुनाव प्रचार में ताकत लगा रहे हैं। पार्टी की जाट बैंक में काफी पैठ है और 2019 में चुनाव में मिली 10 सीट के पीछे सबसे ज्यादा जाट वोट बैंक की ही स्पोर्ट रही। पार्टी यहां से 25 सीट पर ताल ठोक रही है। डिप्टी सीएम और पार्टी नेता दुष्यंत चौटाला तो लंबे समय से राजस्थान में डेरा डाले हुए हैं। हरियाणा की तरह दुष्यंत चौटाला की जेजेपी को राजस्थान में भी चमत्कार की आस है। उनके पिता अजय चौटाला भी चुनाव प्रचार में जुटे हैं। इनके परिवार का राजस्थान से पुराना रिश्ता भी है।
गौरतलब है कि इनके परदादा पूर्व उप प्रधानमंत्री दिवंगत देवीलाल 1989 में सीकर से सांसद रह चुके हैं। सांसद रहते हुए वो लोकसभा अध्यक्ष और केंद्रीय कृषि मंत्री भी बने। इनके पिता और जेजेपी अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला ने राजनीतिक पारी की शुरुआत वहीं से की थी। वो 1990 में दाता रामगढ़ और नोहर सीट से विधायक रह चुके हैं। दुष्यंत के भाई दिग्विजय सिंह चौटाला और पौत्रवधू नैना चौटाला भी लगातार चुनाव प्रचार में दमखम लगा रहे हैं।
राजस्थान में जाटों को लुभाने के लिए हरियाणा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने पार्टी के कई दिग्गज नेताओं को वहां चुनावी रण में प्रचार के लिए उतारा है। भूपेंद्र हुड्डा को राजस्थान में चुनाव प्रचार में शिरकत करनी थी लेकिन किन्हीं कारणों से उनके शेड्यूल में बदलाव किया गया है। अब वो राजस्थान में 21 से 23 नवंबर के बीच प्रचार करेंगे। ये भी किसी से छिपा नहीं है कि हरियाणा में जाटों में हुड्डा की खासी पैठ है और पार्टी हाईकमान को लगता है कि उनमें राजस्थान में जाट वोट बैंक को प्रभावित करने की क्षमता है। ऐसे में कांग्रेस राजस्थान में चाहेगी कि इसका सियासी माइलेज राजस्थान में भी लिया जाए। उनके अलावा पार्टी ने एक और सियासी दिग्गज किरण चौधरी को वहां चुनाव प्रचार के लिए उतारा है। उनको वहां कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी गई थी। वो पिछले महीने से वहां प्रचार में सक्रिय हैं और सोमवार से फिर प्रचार में जा रही हैं।
राजस्थान में भाजपा के पक्ष में अनेक पार्टी नेता मैदान में उतरे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल की भी ड्यूटी भी चुनाव प्रचार में लगाई गई है। उन्होंने राजस्थान के हनुमानगढ़ में भाजपा प्रत्याशी अमित साहू के इस समर्थन में रोड शो निकाला। वहीं पार्टी ने जाट दिग्गज कैप्टन अभिमन्यु को वहां प्रचार के लिए उतारा। पार्टी विधायक महिपाल ढांडा भी शामिल हैं। पुराने समय में राजस्थान के चुनावी रण में उतरी इनेलो वहां चुनाव नहीं लड़ रही, लेकिन पार्टी दिग्गज अभय चौटाला ने वहां दो प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया।
राजस्थान में जाट वोट बैंक सियासी तौर पर खासा हस्तक्षेप है। अनुमानित तौर पर राजस्थान जाट वोट बैंक करीब 12 से 15 फीसदी तक माना जाता है। ऐसा माना जाता रहा है कि जाट वोटर्स तमाम सियासी समीकरणों को दरकिनार कर एक जगह वोटिंग करते हैं। जाट वोटर्स वहां की सियासत तो व्यापक पैमाने पर प्रभावित करते हैं। राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बाहुल है। इसके अलावा झुंझुनूं, सीकर नागौर और जोधपुर एरिया में जाट समाज का अच्छा खासा सियासी प्रभावी है, जिस पर सभी दलों की टकटकी रहती है। साथ ही प्रदेश के भरतपुर, हनुमानगढ़, गंगानगर, बीकानेर, जयपुर, चित्तौड़गढ़, बाड़मेर, टोंक और अजमेर जिलों में भी जाट समाज चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने की कूव्वत रखता है।
बता दें कि राजस्थान में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 142 सीट सामान्य, 33 सीट अनुसूचित जाति और 25 सीट अनुसूचित जनजाति वर्ग की रिजर्व कर रखी हैं। जातीय समीकरणों को देखते हुए टिकट बंटवारे में ओबीसी में सबसे ज्यादा तवज्जो जाटों को दी जाती है और उनको सबसे ज्यादा टिकट दिए जाते हैं।
अनुमानित तौर राजस्थान की विधानसभा में 15 फीसदी से अधिक सीटों पर जाट समाज का कब्जा रहता है। पिछली बार भी 33 विधायक जाट समाज से चुने गए हैं और 5 विधायकों को मंत्री बनाया गया है। इसी तरह लोकसभा की 25 सीटों में से 8 पर जाट काबिज हैं। जबकि पिछले चुनाव में प्रदेश में 31 जाट नेता विधायक चुने गए थे। इन सभी समीकरणों को देखते हुए सभी सियासी दलों की कोशिश है कि हरियाणा के जाट नेताओं के जरिए वहां की 30 से 35 जाट बहुल सीटों पर बढ़त बनाई जाए।
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