India News (इंडिया न्यूज),Child Sexual Abuse, दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट कहा है कि बाल यौन उत्पीड़न के मामलों में सुनवाई करते समय न्यायाधीशों के पास “संवेदनशील दिल” और “सतर्क दिमाग” दोनों होने चाहिए। अदालत ने कहा, “ बुनियादी ढांचा और सुविधाएं राज्य द्वारा प्रदान की जा सकती हैं, सहानुभूति, सतर्कता और सावधानी न्यायाधीश की व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।” अदालत ने 2008 में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी की याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने यह टिप्पणी की।
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने बाल यौन उत्पीड़न मामलों में न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है। अदालत का कहना है कि एक न्यायाधीश की संवेदनशीलता बाहरी रूप से उत्पन्न नहीं की जा सकती है, लेकिन देश के नागरिकों की सेवा करने के लिए उनके कर्तव्य के हिस्से के रूप में विकसित की जानी चाहिए। ” हाई कोर्ट ने ये टिप्पणी संजीव कुमार नाम के आरोपी की अपील याचिका की सुनवाई के दौरान की। संजीव कुमार को साल 2008 में एक 12 वर्षीय लड़की से बलात्कार का दोषी ठहरा कर सजा सुना दी गई थी।
संजीव कुमार ने निचली अदालत के आदेश खिलाफ अपील दायर की और अब आकर उसका फैसला आया। अदालत ने इस संबंध में पीड़िता द्वारा दिए गए कई विरोधाभासी बयानों का हवाला देते हुए संजीव कुमार की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया।
अदालत ने बचाव पक्ष के विटनेस के तौर पर मकाउंसलर की गोपनीय रिपोर्ट को शामिल करने से इंकार कर दिया, क्योंकि इससे बाल पीड़िता की निजता का उल्लंघन हुआ। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य उचित संदेह से परे और अपराध सिद्ध करने के लिए अपर्याप्त थे। यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यायाधीशों द्वारा संवेदनशील और सतर्क दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
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