Kartik Sharma in Rajya Sabha : सांसद कार्तिक शर्मा ने राज्यसभा में प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी वसूली का उठाया मुद्दा

इंडिया न्यूज, New Delhi (Kartik Sharma in Rajya Sabha): युवा सांसद कार्तिक शर्मा (Kartik Sharma) निरंतर शिक्षा और स्वास्थ्य समेत कई गंभीर मामलों को निरंतर सदन में उठा रहे हैं। इसी कड़ी में 9 फरवरी को कार्तिक शर्मा ने सदन में प्राइवेट अस्पतालों द्वारा मरीजों व उनके परिजनों से मनमानी वसूली का मुद्दा उठाया। राज्यसभा में उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है।

संविधान के अनुच्छेद 21 को अगर डायरेक्टिव प्रिंसिपल के अनुच्छेद 39 (e), अनुच्छेद 41 और अनुच्छेद 43 के साथ जोड़कर देखा जाए तो राइट टू हेल्थ एंड मेडिकल केयर नागरिकों का फंडामेंटल राइट है। लेकिन इसके बावजूद प्राइवेट अस्पताल मनमानी करने से बाज नहीं आते। इसके चलते मरीजों के अधिकारों का हनन होता है। यहां तक कि जब कई बार मरीज की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वो भुगतान नहीं कर पाते तो संबंधित प्राइवेट अस्पतालों द्वारा शव तक उनके परिजनों को नहीं दिया जाता और उनको बंधक बना लिया जाता है।

कार्तिक शर्मा ने उदाहरण देते हुए बताया कि नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश में कुशीनगर के एक निजी अस्पताल ने महिला के प्रसव के बाद उसके परिजनों द्वारा अस्पताल का बिल के भुगतान न करने पर उस महिला को बंधक बना लिया गया था। पुलिस के हस्तक्षेप के बाद अस्पताल प्रशासन से उस महिला को मुक्त करवाया जा सका था।

Kartik Sharma in Rajya Sabha

शवों को भी बंधक बनाने के कई मामले सामने आए

ऐसे ही अगस्त 2019 में दिल्ली के एक अस्पताल में सर्जरी के बाद बिल न चुकाए जाने पर मरीज को बंधक बना लिया गया। इतना ही नहीं, शवों को भी बंधक बनाने के कई मामले सामने आए हैं, जैसे कि पिछले वर्ष मध्यप्रदेश के शहडोल जिले से एक घटना सामने आई, जहां एक अस्पताल में डॉक्टरों ने शव देने से इनकार कर दिया क्योंकि मृतक के परिजनों के पास बिल चुकाने के पैसे नहीं थे।

कोई अस्पताल मरीज को बंधक नहीं बना सकता

सांसद कार्तिक शर्मा ने आगे बताया कि देश के विभिन्न भागों से ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं, जहां मरीज को बिल न चुकाए जाने पर अस्पताल प्रशासन द्वारा बेड पर बांध दिया जाता है और उनके इलाज में कोताही बरतनी शुरू कर दी जाती है। ऐसे ही मामलों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने 2016 में देवेश सिंह चौहान बनाम स्टेट एंड अदर केसेज में कहा था कि कोई भी अस्पताल किसी भी हालत में मरीज को बंधक नहीं बना सकता, चाहे वो बिल न चुकाने का मामला हो।
इसके साथ-साथ एनएचआरसी द्वारा तैयार किए गए चार्टर ऑफ पेशेंट राइट्स में भी साफ लिखा गया है कि पेशेंट को डिस्चार्ज होने का अधिकार है, उसे किसी भी स्थिति में अस्पताल द्वारा बंधक नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने सदन में आगे बताया कि वर्ष 2017 में गुरुग्राम में डेंगू के चलते एक बच्ची की मौत हुई थी। उसे 15 दिन अस्पताल में रखने का बिल 18 लाख बना दिया गया।

इसी तरह एक ऐसा ही मामला हैदराबाद की महिला का सामने आया है जिसके इलाज का बिल दिल्ली के एक अस्पताल ने एक करोड़ बीस लाख रुपए का बना दिया। मुंबई में तो एक अस्पताल का ओवरचार्जिंग के चलते लाइसेंस ही रद करना पड़ा। साल 2021 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के कई बड़े और नामी अस्पतालों के चार्ज बहुत ज्यादा हैं। ये अस्पताल दवाइयों की कीमत के कई हजार गुना मूल्य मरीज से वसूलते हैं।

प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी रोकी जानी जरूरी

हालांकि अस्पताल द्वारा ओवरचार्ज न किया जाए, इस बारे में सरकार ने कानून बनाया हुआ है कि यदि कोई अस्पताल ऐसा करता है तो उसकी शिकायत की जा सकती है। जांच के बाद यदि शिकायत सही पाई जाती है तो उक्त अस्पताल का लाइसेंस रद किया जा सकता है। परंतु इन सबके बावजूद प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी चल रही है। इसे रोका जाना बहुत आवश्यक है।

उन्होंने सभापति से अनुरोध करते हुए कहा कि उपरोक्त दोनों मुद्दों पर ध्यान दिया जाए और इनसे जुड़े नियमों को सख्ती से लागू करवाया जाए तथा इसके साथ-साथ सरकार से एक अनुरोध ये भी है कि अस्पतालों द्वारा बिल न चुकाए जाने पर बंधक बनाने और इलाज में होने वाली ओवरचार्जिंग को रोकने के लिए आम जनता को भी जागरूक करना चाहिए। इसके लिए सरकार कोई अभियान के माध्यम से आमजन को उनके अस्पतालों में मूलभूत अधिकारों के बारे में अवगत करवाए, ताकि सभी नागरिकों को अस्पतालों की मनमानी से बचाया जा सके।

यह भी पढ़ें : MP Karthik Sharma: सांसद कार्तिक शर्मा ने विश्व के टॉप शिक्षण संस्थानों के रीजनल सेंटर देश में खोलने का मामला उठाया

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Amit Sood

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