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kartikeya Temple Pehowa : आखिर क्यों हैं कार्तिकेय के इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित

इशिका ठाकुर, India News (इंडिया न्यूज), kartikeya Temple Pehowa, कुरुक्षेत्र : धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा में महाभारत काल के महत्व के साथ लोगों की आस्था के प्रतीक अनेक मंदिर मौजूद हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक है कस्बा पिहोवा में बना भगवान शंकर के जेष्ठ पुत्र कार्तिकेय का मंदिर। इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यहां महिलाओं का प्रवेश पूर्णत: वर्जित है। मान्यता है कि यदि कोई महिला इस मंदिर में भगवान कार्तिकेय के दर्शन कर लेती है तो वह सात जन्मों के लिए विधवा हो जाती है।

भगवान शिव शंकर के पुत्र कार्तिकेय के मंदिर में दर्शन करने से विधवा होने का डर आज भी महिलाओं के दिमाग में विद्यमान है। वहीं यह बता दें कि मंदिर में भगवान कार्तिकेय का तिलक करने के लिए लंबी-लंबी कतारें लगती हैं। इस पवित्र धरा पर आकर भगवान कार्तिकेय को नमन कर पुण्य प्राप्ति की कामना की जाती है।

महाभारत एवं पुराणों में कई वर्णन

बता दें कि पिहोवा तीर्थ नगरी को लेकर महाभारत एवं पुराणों में जहां पृथ्वी तक तीर्थ का विस्तार से वर्णन किया गया है और कार्तिकेय मंदिर को इस तीर्थ की महत्ता को जोड़ा है। तीर्थ महत्व पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि जब भगवान शंकर पुत्र कार्तिकेय को राजतिलक करने का विचार करने लगे तो माता पार्वती छोटे पुत्र गणेश को राजतिलक करवाने के लिए जिद करने लगी तभी ब्रह्मा विष्णु व शंकर जी सहित सभी देवी देवताओं ने इकट्ठा होकर सभा में यह निर्णय लिया कि दोनों भाइयों में से समस्त पृथ्वी का चक्कर लगाकर जो पहले पहुंचेगा, वही पहले राजतिलक का अधिकारी होगा।

भगवान कार्तिकेय अपने प्रिय वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए चल पड़े और जब गणेश जी अपने वाहन चूहे पर बैठकर चक्कर लगाने के लिए जाने लगे तभी माता पार्वती ने गणेश को कहा कि वत्स तुम यहीं पर इकट्ठे हुए समस्त देव गुणों की परिक्रमा कर डालो, क्योंकि त्रिलोकीनाथ यही विधमान है। माता पार्वती के ऐसे समझाने पर गणेश जी ने तीन चक्कर लगाकर भगवान शंकर जी को प्रणाम किया और कहा प्रभु मैंने संपूर्ण जगत की परिक्रमा कर ली है तो भगवान शंकर विस्मित हुए और उन सहित सभी ने गणेश जी को राजतिलक कर दिया। शुभ अशुभ कार्य में पूजा का अधिकार दे दिया। उधर मार्ग में नारद जी ने कार्तिकेय जी को सारा वृत्तांत कह डाला।

कार्तिकेय ने क्रोधित होकर अपनी खाल व मांस उतारकर मां पार्वती के पैराें में रख दिया था

कार्तिकेय जी अति शीघ्र परिक्रमा पूरी करके सभा स्थल पर पहुंचे और माता पार्वती जी से सारा हाल जानकर बोले-हे माता आपने मेरे साथ छल किया है। बड़ा होने के नाते भी राजतिलक मेरा ही अधिकार था। तुम्हारे दूध से यह मेला खाल व मांस बना हुआ है। मैं इसको उतारकर अभी देता हूं।

अत्यंत क्रोधित होकर कार्तिकेय ने अपना खाल व मांस उतारकर माता के चरणों में रख दी और समस्त नारी जाति को श्राप दिया कि मेरे इस स्वरूप के जो स्त्री दर्शन करेगी वह सात जन्म तक विधवा रहेगी, तभी देवताओं ने उसकी शांति के लिए तेल सिंदूर का अभिषेक कराया, तब जाकर उनका क्रोध शांत हुआ। तदोपरांत शंकर जी व अन्य देवताओं ने कार्तिकेय जी को समस्त सेना का सेनापति बना दिया तब कार्तिकेय भगवान पृथक में सरस्वती तट पर पिंडी रूप में स्थित हो गए और कहा कि जो व्यक्ति मेरे शरीर पर तेल का अभिषेक करेगा उसकी मृत्यु के प्राप्त हो गए पितर आदि बैकुंठ प्रतिष्ठित होकर मोक्ष के अधिकारी होंगे।

मंदिर में ज्योत, लेकिन लाइट नहीं…

मंदिर में बोर्ड में महिलाओं के लिए सख्त हिदायत लिखी हुई है कि वे भीतर न झांकें। इसी वजह से मंदिर में ज्योत तो जल रही हैं लेकिन लाइटें नहीं लगाई गई हैं। आज भी महिलाओं को मंदिर के बाहर से ही माथा टेक कार्तिकेय महाराज का आशीर्वाद लेना पड़ता है। मंदिर के पुरोहित का कहना है कि मंदिर में केवल विवाहिताओं के प्रवेश पर ही रोक नहीं है बल्कि नवजात बच्ची तक को गोद में लेकर नहीं जाया जा सकता है।

पूरे भारत में कार्तिकेय के दो ही मंदिर

समस्त भारत में कार्तिकेय भगवान के सिर्फ दो ही मंदिर हैं एक कुरुक्षेत्र के पिहोवा में और दूसरा तमिलनाडु में। बताया जाता है कि तमिलनाडु में स्थित मंदिर भगवान कार्तिकेय की हड्डियां वहां गिरी थी, जिसके बाद उस मंदिर का निर्माण किया गया। मनुष्य के कल्यनार्थ इस अति प्राचीन मंदिर में दिन रात अखंड ज्योति जल रही है। कहा जाता है कि वह भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध की मृत्यु को प्राप्त हुए सभी सगे संबंधी जिसे परीक्षित सरस्वती तट पर कर्म पिंडी दी संपन्न कराकर भगवान कार्तिकेय पर तेल का अभिषेक कराया था तभी से यह प्रथा जारी है तथा चैत्र चौदस पर लाखों तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं। यहां भी महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।

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