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48 kos kurukshetra : जानिए कुरुक्षेत्र 48 कोस का यह है महत्व

• LAST UPDATED : May 28, 2023

इसी धरा पर हुआ था कौरव और पांडवों के बीच धर्म की स्थापना के लिए महाभारत का युद्ध 

इशिका ठाकुर, India News, इंडिया न्यूज, Pipli Zoo Kurukshetra, चंडीगढ़। कुरुक्षेत्र के चारों तरफ 48 कोस की परिक्रमा में इस भूमि का महाभारत काल से विशेष महत्व है। मान्यता है कि यह 48 कोस की भूमि वही भूमि है जिस पर कौरवों और पांडवों के बीच धर्म की स्थापना के लिए महाभारत का युद्ध हुआ था, महाभारत काल से लेकर आज तक भी यह भूमि 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि कहलाती है।

48 कोस इतने जिलों तक फैला, कई पूजा स्थल मौजूद

सरस्वती दृषद्वती आपगा, गंगा-मंदाकिनी, मधुचवा, हिरणवती वासुनदी, कौशिकी एवं वैतरणी आदिनीं नदियों से सिंचित तथा काम्यक अदिति, व्यास, फलकी, सूर्य, शीत तथा मधु नामक सात वनों से आच्छादित इस पावन भूमि पर प्राचीन समय से ही अनेक तीर्थ स्थल विद्यमान थे, जिनका उल्लेख महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में हुआ। वर्तमान में यह भूमि हरियाणा के 5 जिलों कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, जींद और पानीपत तक विस्तृत है तथा मौजूदा समय में भी इस 48 कोस परिक्रमा में बहुत से प्राचीन मंदिर एवं पूजा स्थल मौजूद है।
महाभारत में कुरुक्षेत्र की इस पावन भूमि को समन्तपंचक तथा ब्रह्मा की उत्तर वेदी भी कहा गया है, जिसका विस्तार हर तरफ पांच योजन भूमि में था। इस भूमि के उत्तर में सरस्वती और दक्षिण में दृषद्वती नदी की स्थिति बताई गई है, जिनके प्रमाण अभी भी दिखाई देते हैं। हरियाणा सरकार द्वारा धार्मिक महत्व रखने वाली सरस्वती नदी के उद्गम क्षेत्र को धार्मिक तथा पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए सरस्वती हेरिटेज बोर्ड की स्थापना की गई है, जिसकी ओर से लगातार इस क्षेत्र में विकास के कार्य चलाए जा रहे हैं। महाभारत के अनुसार इसके चार कोनों पर चार यक्ष द्वारपाल के रूप में प्रतिष्ठित थे। इनके नाम महाभारत में तरन्तुक, अरन्तुक, रामहृद एवं मचकुक कहे गये हैं।
वामन पुराण में तरन्तुक नामक यक्ष को रन्तुक अथवा रत्नुक तथा रामहद जो स्थान विशेष का सूचक था उसे कपिल यक्ष कहा गया है। कुरुक्षेत्र भूमि के सर्वेक्षण के उपरान्त इन यक्षों की स्थिति स्पष्ट हुई है। रन्तुक अथवा रत्नुक नामक राक्ष जोकि इस भूमि के उत्तर-पूर्वी सीमा पर स्थित था।

कुरुक्षेत्र सरस्वती के तट पर बीड़ पिपली स्थित

बीड़ पिपली, कुरुक्षेत्र सरस्वती के तट पर स्थित है। इसी प्रकार उत्तर-पश्चिमी सीमा का यक्ष अरन्तुक कैथल-पटियाला की सीमा पर बेहरजख नामक स्थान में स्थित है। कपिल नामक यक्ष जोकि इस भूमि की दक्षिण-पश्चिमी सीमा का यक्ष है, जींद जिले के पोकरी खेड़ी नामक ग्राम के बाहर स्थित है। दक्षिण-पूर्वी सीमा का यक्ष मचकुक पानीपत जिले के सीख नामक ग्राम के बाहर स्थित है। इन्हीं चार यक्षों के बीच की भूमि 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि कहलाती है जिसमें स्थानीय परम्परा तथा तीर्थस्थलों की स्थिति बताई गई  है।
यद्यपि समय बीतने के साथ जलवायुबकी विविधता रखरखाव की उपेक्षा और मध्यकाल में लगातार विदेशी आक्रमणों के कारण कई तीर्थ विलुप्त हो नए तथापि अभी भी इस क्षेत्र में 134 से अधिक तीर्थस्थल श्रद्धा और आस्था लिए हुए आज भी विद्यमान है। इस भूमि के तीयों का दस्तावेजीकरण कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा किया गया है। भारत रत्न गुलजारीलाल नन्दा द्वारा कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के गठन का उद्देश्य इस पावन भूमि स्थित तीर्थो का संरक्षण संवर्धन एवं विकास था गुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के गठन के बाद अनेक तीर्थस्थलों का जीर्णोद्वार एवं विकास किया गया। कुरुक्षेत्र भूमि स्थित तीर्थो में देवताओं को समर्पित देव तीथों, ऋषियों को समर्पित ऋषि तीर्थों के अतिरिक्त श्राद्ध एवं पिण्डदान के लिए नैमित्तिक तीर्थों के अतिरिक्त कई तीर्थ महाभारत के कथा प्रसंगों से भी जुड़े हैं।

यह भी है विशेष महत्व

इन तीर्थस्थलों की पहचान के लिए सरस्वती दृषदती नदियां चार यक्षों तथा तीर्थों के राजस्व अभिलेखों को ध्यान में रखा गया है। शास्त्रीय संदर्भों के साथ-साथ 48 कोस कुरुक्षेत्र भूमि के विषय में स्थानीय मान्यताओं को भी सम्मिलित किया गया है। ग्रामीण परम्पराओं में इस क्षेत्र के मृतकों की राख और अस्थियों का 48 कोस कुरुक्षेत्र की भूमि में स्थित सरस्वती नदी अथवा इसकी सहायक नदियों में प्रवाहित करने की परम्परा का भी सहारा लिया गया है जबकि कुरुक्षेत्र की पवित्र परिक्रमा से बाहर रहने वाले लोग मृतकों की अस्थियाँ और राख हरिद्वार में गंगा नदी में प्रवाहित करते हैं।
      कुरुक्षेत्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को पवित्र सरोवरों ऐतिहासिक स्मारकों एवं मूर्तियों के रूप में संरक्षित किया गया है। अनेक तीर्थस्थलों और पुरातात्विक स्थानों से प्राप्त पुरावशेष इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर पर प्रकाश डालते हैं। कुरुक्षेत्र की पावन धरा का न केवल भारत, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी बहुत अधिक महत्व है।

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