इशिका ठाकुर, Haryana News (National Dairy Research Institute) : दो दशक पहले करनाल के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) में शुरू हुई क्लोन तकनीक सफल साबित हुई है। संस्थान के वैज्ञानिकों की मानें तो यह तकनीक अब पूरी तरह परिपक्व हो चुकी है। क्लोन भैंस गरिमा 2 ने सामान्य प्रसव से स्वस्थ कटड़ी को जन्म देकर यह साबित कर दिया है कि भारत की क्लोन तकनीक पूरी तरह से सफल रही है।
9 अक्टूबर को पैदा हुई इस कटड़ी के जन्म के बाद संस्थान के वैज्ञानिक खुशी से फूले नहीं समा रहे। संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि सामान्य प्रसव के बाद अब क्लोन तकनीक में किसी तरह की कमी की कोई संभावना बाकी नहीं रही।
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार (Dr. Manoj Kumar) ने बताया कि गरिमा 2 देश की पहली जीवित क्लोन भैंस है जिसने अब तक 3 मेल और 4 फीमेल संतान को जन्म दिया है और यह सभी बच्चे पूरी तरह स्वस्थ हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान में दो दशक पहले क्लोनिंग की शुरुआत हुई थी जिसके बाद इस तकनीक की सफलता का सफर आगे बढ़ता गया और आज हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि क्लोन तकनीक भारत में पूरी तरह से सफल रही है। डॉ. मनोज ने कहा कि जो भैंस सबसे अच्छा दूध देती है, हम उसका क्लोन तैयार करते हैं।
संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार (Dr. Manoj Kumar) ने बताया कि जिस पशु का क्लोन तैयार करना होता है, उसके कान से अथवा सेल से छोटा सा टिशू लिया जाता है जिसके बाद इसका प्रयोगशाला में संवर्धन कर लाखों कोशिकाएं बनाई जाती हैं। इसके बाद स्लाटर हाउस से एक पशु का गुणसूत्र निकालकर उसका 7 दिनों तक कल्चर करते हैं, जिसके बाद एक भ्रूण की उत्पत्ति होती है।
हम यह भ्रूण एक सरोगेट भैंस में ट्रांसफर करते हैं। गर्भावस्था के बाद बच्चे का जन्म होता है जो क्लोन होता है। इसका डीएनए पूरी तरह वैसा ही होता है जिसका हमने टिशू लिया था। अच्छी नस्ल के बुल के सीमन से क्लोन भैंस से सामान्य प्रसव के द्वारा बच्चे का जन्म होता है।
अब तक क्लोन भैंस गरिमा 2 से 6 बच्चों का जन्म हो चुका है और यह सातवीं है जो पूरी तरह स्वस्थ है। डॉ. मनोज ने कहा कि क्लोन तकनीक से पैदा हुए पशु और फिर आगे उनके बच्चे भी अच्छा दूध दे रहे हैं। इससे भविष्य में हमारे देश में दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होगी जिससे किसानों की आय भी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि कृत्रिम गभार्धान तकनीक में एक बुल की टेस्टिंग में 10 साल तक लग जाते हैं लेकिन क्लोन तकनीक में हम शुरू से ही पशु की इतिहास के बारे में जानकारी रखते हैं कि वह कैसा होगा।
वहीं संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ. धीर सिंह ने कहा कि मुझे खुशी है कि देश के दूध उत्पादन को बढ़ाने में क्लोन तकनीक एक मील का पत्थर साबित होगी। इस तकनीक से हम एक ही समय में हजारों मेल या फीमेल बच्चे पैदा कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि क्लोन तकनीक से लेकर अब तक की प्रक्रिया पूरी तरह से हमारी उम्मीदों के मुताबिक रही है। क्लोन भैंस गरिमा 2 से पैदा हुए बच्चों में तीन मेल और तीन फीमेल हैं। गरिमा 2 से पैदा हुआ सातवां बच्चा हमारी दो दशक के प्रयोगों और टेस्टिंग की सफलता को साबित करता है।
डॉ. धीर सिंह ने यह भी कहा कि अब भविष्य में हम अच्छी नस्ल के बुल तैयार कर देश में सीमन की कमी को पूरा कर सकते हैं और इसे किसानों को देकर देश में दूध उत्पादन को बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम भविष्य में ऐसी स्वदेशी तकनीक पर भी काम कर रहे हैं जिससे हम पशु से अपनी इच्छानुसार केवल मेल अथवा फीमेल बच्चे ही ले सकते हैं। यह प्रयोग अंतिम चरण में है।
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