India News (इंडिया न्यूज), Jalandhar Loksabha by-election, चंडीगढ़/जालंधर : जालंधर लोकसभा उपचुनाव के लिए अब केवल एक सप्ताह का समय बचा है। 10 मई को यहां पर वोटिंग की जाएगी। इस बार जालंधर लोकसभा पर किस पार्टी का कब्जा होगा यह तो 10 मई के बाद ही पता चल पाएगा। फिलहाल तो यहां सभी पार्टियां अपनी जीत की दावेदारी पुख्ता करने पर जोर दे रही हैं।
जहां तक जांलधर लोकसभा सीट की बात है तो यहां पर अल्पसंख्यक मत ही हमेशा जीत और हार तय करता आया है। चुनाव आयोग के अनुसार इस लोकसभा क्षेत्र में 42 प्रतिशत मत दलित समाज के हैं। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जिस तरफ भी दलित भाईचारे का वोट जाएगा जीत उसी की ही तय होगी।
इस लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें चार विधानसभा क्षेत्र आरक्षित हैं। चारों सीटों पर हार-जीत का फैसला रविदासिया वोट बैंक करता है। रविदासिया समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल डेरा सचखंड बल्लां जालंधर में ही है और इसके श्रद्धालुओं की तादाद लाखों में है। रविदासिया समुदाय के निर्णायक वोट ने संतोख सिंह चौधरी को लगातार दो बार सांसद बनाया।
जालंधर लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो इसे हमेशा से कांग्रेस के गढ़ के रूप में देखा जाता रहा है। यहां पर अभी तक कांग्रेस 13 बार चुनाव जीत चुकी है। पिछले लगातार चार लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस की जीत होती रही है। इस बार कांग्रेस उम्मीदवार करमजीत कौर के पति संतोख सिंह लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। इसलिए कांग्रेस को यह उम्मीद है कि इस बार भी उसे जनता की सहानुभूति मिलेगी और वह चुनाव में जीत दर्ज करने में कामयाब रहेगी।
प्रदेश में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के लिए एक बार फिर से यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होने वाला है। विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 92 सीटें जीतकर नया रिकॉर्ड बनाती हुई सत्ता में पहुंची थी। लेकिन प्रदेश में सरकार बनाने के बाद आम आदमी पार्टी को पहला झटका संगरूर लोकसभा उपचुनाव में हार के बाद लगा था। संगरूर लोकसभा सीट भगवंत मान के सीएम बनने के बाद खाली हुई थी।
जबकि इस लोकसभा सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा था। संगरूर लोकसभा चुनाव के बाद जालंधर लोकसभा चुनाव आम आदमी के लिए फिर से कड़ी परीक्षा है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की स्थिति इस चुनाव में काफी मजबूत दिखाई दे रही है। अब देखना यह होगा की क्या आम आदमी पार्टी यहां पर जीत हासिल कर पाती है या नहीं।
इस लोकसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारा है जोकि कभी अकाली पार्टी के नजदीकी रहे हैं। भाजपा ने पूर्व विधायक इंदर इकबाल सिंह अकाली नेता चरणजीत सिंह अटवाल के बेटे हैं। इंदर इकबाल ने 2002 में कूमकलां सीट से विधानसभा चुनाव जीता था। हालांकि वह 2007 और 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में हार गए थे। इंदर इकबाल वाल्मीकि मजहबी सिख परिवार हैं, उनके जरिए बीजेपी ग्रामीण इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी कर रही है।
जालंधर के 954 गांवों में महजबी सिखों का खासा वोट बैंक हैं। भाजपा इन गांवों में जमीनी आधार नहीं बना पाई है लिहाजा इंदर अटवाल के जरिए पार्टी गांवों में जाने का रास्ता खुल गया है। दूसरा, अटवाल पगड़ीधारी सिख हैं जिससे पार्टी को उम्मीद है कि सिख वोट भी उनकी तरफ आ सकता है।
शिअद और बसपा गठबंधन के लिए हालांकि इस लोकसभा उपचुनाव में ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। मुख्य मुकाबला आप और कांग्रेस के बीच में दिखाई दे रहा है। फिर भी यह दोनों मिलकर खासकर शिअद प्रदेश में अपनी खो चुकी पहचान दोबारा पाने की कोशिश में हैं। इस लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल ने डॉ. सुखविंदर सुक्खी को बतौर उम्मीदवार उतारा है। अकाली दल हमेशा पंथक वोट पर आधारित रहा है। 1997 के बाद यह पहली बार होगा कि शिरोमणि अकाली दल का भाजपा से गठबंधन नहीं है और इस बार बसपा से गठबंधन कर वह मैदान में है।
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