India News (इंडिया न्यूज), Prakash Singh Badal, चंडीगढ़ : पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और शिअद सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल का गत दिवस मोहाली के एक अस्पताल में निधन हो गया। यह वयोवृद्ध नेता 95 साल के थे। प्रकाश सिंह बादल ने एक सरपंच के रूप में अपने सियासी करियर की शुरुआत की और पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के साथ-साथ केंद्रीय मंत्री भी बने। उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल और उनकी पुत्रवधु हरसिमरत कौर बादल उनके सियासी विरासत को संभाल रहे हैं। प्रकाश सिंह बादल ने केंद्र में जब भी एनडीए की सरकार बनी तो उसमें अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
शिअद ने कई विधानसभा और लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़े। इसी के चलते बादल परिवार का कोई न कोई सदस्य सांसद बनकर संसद में पहुंचता था और केंद्रीय मंत्री मंडल में अपनी जगह बनाता था। लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसा घटनाक्रम हुआ कि न केवल बादल ने भाजपा के साथ अपने सियासी रिश्ते खत्म किए बल्कि पद्म विभूषण सम्मान तक वापस कर दिया। आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्या था वो कारण जिसके चलते प्रकाश सिंह बादल ने पद्म विभूषण वापस कर दिया।
2015 में मोदी सरकार ने उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। मोदी सरकार के एक कदम का प्रकाश सिंह बादल ने विरोध किया था। दरअसल, मोदी सरकार 2020 में तीन कृषि कानूनों को लेकर आई। अकाली दल ने पंजाब में इन कानूनों का विरोध किया। शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल ने दो दशक से पुराना भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया।
बाद में प्रकाश सिंह बादल ने अपना पद्म विभूषण लौटाने का एलान कर दिया था। इसके बाद बादल परिवार ने देश के किसानों का साथ देते हुए हरसिमरत कौर ने भी केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया और मोदी सरकार पर कृषि कानून वापस लेने के लिए दवाब डाला। हरसिमरत कौर बादल और सुखबीर सिंह बादल ने पिता प्रकाश सिंह बादल की सरपरस्ती में संसद के अंदर और बाहर किसानों की लड़ाई लड़ी और केंद्र सरकार के खिलाफ अपना विरोध प्रकट किया।
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