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PU-Assembly And SYL Controversy : हरियाणा के हकों पर दशकों से कुंडली मारे बैठा पंजाब!

  • हरियाणा को विधानसभा और एसवाईएल में आज तक नहीं मिला है हिस्सा, राजधानी चंडीगढ़ पर भी एकतरफा हक जता रहा पंजाब

डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज), PU-Assembly And SYL Controversy, चंडीगढ़ : हरियाणा को अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आए 56 वर्ष से भी अधिक हो चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके पंजाब ने हमेशा हरियाणा के हितों का हनन किया है। साल-1966 में अलग राज्य बने हरियाणा का पंजाब से कई मुद्दों पर कई दशक से विवाद चला आ रहा है। इसी कड़ी में अब पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में हरियाणा द्वारा फिर से हिस्सेदारी मांगने का मामला जमकर सुर्खियां बटोर रहा है।

अन्य मामलों की तरह पीयू चंडीगढ़ के मामले में पंजाब पड़ोसी राज्य हरियाणा के हितों के हनन और दमन में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। पंजाब को हमेशा हरियाणा ने अपना बड़ा भाई माना और कई मुद्दों पर दोनों की सहमति की बानगी भी देखने को मिली है, लेकिन जब भी हरियाणा ने पंजाब के सामने उसके हितों और अलगाव के बाद संसाधनों पर निर्धारित हिस्सा न मिलने की मांग उठाई तो हमेशा की तरह पंजाब का उदासीन रवैया ही सामने आया। करीब आधा दर्जन मुद्दे ऐसे हैं, जिसमें पंजाब द्वारा हरियाणा के हितों की अनदेखी की गई है। हरियाणा विधानसभा, एसवाईएल में हिस्सेदारी न मिलने से लेकर पीयू में हिस्सेदारी समेत कई मामले ऐसे हैं जब हरियाणा के हितों की पंजाब द्वारा अनदेखी की गई है।

विधानसभा में आज तक निर्धारित हिस्सेदारी नहीं मिली

जब हरियाणा साल 1966 में पंजाब से अलग होकर नए राज्य के रूप में सामने आया तो उस वक्त दोनों के बीच विधानसभा इमारत को लेकर एक हिस्सा निर्धारित हुआ। इन दोनों में पंजाब के लिए 60% और हरियाणा के लिए 40% हिस्सा निर्धारित किया गया था, लेकिन कई दशक गुजर जाने के बाद भी हरियाणा को विधानसभा में निर्धारित शेयर नहीं मिला और मामले को लेकर समय-समय हरियाणा अपनी मांग उठाता रहता है। हरियाणा विधानसभा अध्यक्ष भी कई दफा कह चुके हैं कि हरियाणा को महज 27% हिस्सा ही प्राप्त है जबकि निर्धारित 40% हुआ था। हरियाणा के सामने स्थिति इतनी विकट है कि मंत्रियों तक के लिए वहां कार्यालय की जगह नहीं है। जगह कम होने के चलते कई दफा जरूरी काम भी बाधित होते हैं।

राजधानी पर पंजाब का ही हक क्यों, हरियाणा भी बराबर का हकदार

पंजाब में सरकार चाहे कोई भी रही हो लेकिन हरियाणा के हितों की अनदेखी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। ऐसा एकतरफा रवैया दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी और यूटी चंडीगढ़ के मामले में पंजाब का सदैव रहा है। पंजाब का एकतरफा कहना है कि चंडीगढ़ पर पंजाब का हक है। इसकी बानगी इस बात से भी देखने को मिलती है कि जो भी पंजाब का राज्यपाल होता है, वहीं चंडीगढ़ का प्रशासक भी होता है।

पंजाब ने अप्रत्यक्ष रूप से साफ कर रखा है और साल 2016 के एक वाक्यात से सब साफ हो जाता है। उस वक्त पूर्व नौकरशाह और भाजपा नेता केजे अल्फोंस को चंडीगढ़ का प्रशासक बनाया गया था। इसको लेकर अकाली दल ने केंद्र सरकार के सामने कड़ी आपत्ति जताई थी कि ऐसा करना गलत होगा। हमेशा ये ही परंपरा रही है कि पंजाब का गर्वनर ही यूटी चंडीगढ़ का प्रशासक होता है। अगर किसी बाहरी व्यक्ति को गवर्नर बनाया गया तो इससे यूटी चंडीगढ़ पर पंजाब का हक कमजोर होगा।

हरियाणा कम जगह की वजह से नई विधानसभा के लिए जगह मांगी तो पंजाब को भी चाहिए

विधानसभा में निर्धारित हिस्सा न मिलने के चलते हरियाणा लगातार केंद्र सरकार के सामने गुहार लगा रहा है कि उसे नई विधानसभा के लिए यूटी चंडीगढ़ के लिए जगह दी जाए। हरियाणा ने कई दफा दलील रखी है कि विधानसभा के ज्यादातर हिस्से पर पंजाब का कब्जा है। ऐसे में विधानसभा के करीब ही नई विधानसभा के लिए हरियाणा को 10 एकड़ जमीन दी जाए लेकिन पंजाब ने इसका विरोध किया।

चूंकि चंडीगढ़ यूटी है तो ये केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है। नई विधानसभा के निर्माण हेतु जमीन को लेकर केंद्र की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया आई। ये देखते हुए इसके बाद पंजाब ने भी कहा कि अब उसको भी चंडीगढ़ में ही नई विधानसभा के लिए जमीन चाहिए। जबकि धरातल पर स्थिति ये है कि पंजाब के पास पहले ही विधानसभा का निर्धारित से ज्यादा हिस्सा है और उसको नई विधानसभा की जरूरत नहीं है।

400 हिंदी भाषी गांव और एसवाईएल के पानी में हिस्से का पानी आज भी लंबित

वहीं आपको यह भी बता दें कि हरियाणा और पंजाब के बीच कई दशक से सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) का मामला लंबित है। सालों पहले सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसकी अनुपालना करने की बजाय तत्कालीन पंजाब सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट की अवहेलना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की कई दफा मामले को लेकर बैठक भी हो चुकी है लेकिन पंजाब निरंतर हरियाणा को उसके हिस्से का पानी देने से इनकार करता रहा है। इसके अलावा पंजाब द्वारा हरियाणा को 400 हिंदी भाषी गांव दिए जाने के मामले पर भी हरियाणा को उसका हक नहीं मिला और आज तक भी ये गांव पंजाब में ही हैं।

पीयू के मामले में भी अपनी चला रहा पंजाब, जानिए क्यों

इसके अतिरिक्त हरियाणा लंबे समय से अपने कई जिलों के कॉलेजों को पंजाबी यूनिवर्सिटी से जोड़ने की मांग करता रहा है और पंजाबी के वीसी इस बात से सहमत रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा तकलीफ इस मामले में पंजाब को है चाहे कारण राजनीतिक हो या कुछ और। पंजाब यूनिवर्सिटी की सिंडिकेट और सीनेट बॉडी में ज्यादातर सदस्य पंजाब के हैं तो उनका झुकाव हमेशा पंजाब की तरफ ही रहा है। वहीं मुख्य मुद्दा कहीं न कहीं से राजनीतिक है।

पंजाब के सभी राजनीतिक दल भी इस बात के खिलाफ रहे हैं कि हरियाणा के कॉलेजों को पीयू के अंडर लाया जाए। उनका मानना है कि अगर पीयू केंद्र हरियाणा के कॉलेज लाए गए तो कहीं न कहीं चंडीगढ़ पर पंजाब का राजधानी के रूप में दावा कमजोर पड़ेगा। इसके अलावा हरियाणा को व्यापक तौर पर पीयू में प्रतिनिधित्व मिलेगा।

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Amit Sood

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