होम / SC : निचली अदालतों और हाई कोर्ट के स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते : सुप्रीम कोर्ट

SC : निचली अदालतों और हाई कोर्ट के स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते : सुप्रीम कोर्ट

BY: • LAST UPDATED : February 29, 2024

India News (इंडिया न्यूज), SC, नई दिल्ली : देश की शीर्ष सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक और दीवानी मामलों में दिए अपने पहले के फैसले को पलट दिया है। जी हां, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर विचार करते हुए आज कहा कि अब किसी दीवानी यानी सिविल और आपराधिक मामलों में हाईकोर्ट की तरफ से लगाई गई अतंरिम रोक का आदेश 6 महीने में खुद खत्म हो नहीं होगा।

2018 का था फैसला

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों- जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, आरएफ नरीमन और नवीन सिन्हा (सभी रिटायर) की पीठ ने 28 मार्च, 2018 को एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी पी लिमिटेड के निदेशक बनाम सीबीआई मामले में पिछला फैसला सुनाया था। उन्होंने तब कहा था कि अगर हाईकोर्ट में आगे सुनवाई नहीं होती तो किसी मामले में लगा अतंरिम स्टे 6 महीने बाद ऑटोमैटिक तौर पर खत्म हो जाएगा, जब तक कि उसे हाईकोर्ट द्वारा बढ़ाया न जाए। इससे पहले कोर्ट ने 13 दिसंबर, 2023 को 2018 के फैसले के खिलाफ संदर्भ में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

5 जजों की पीठ के पुनर्विचार करने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने आज अपने 2018 के फैसले पर फिर से सुनवाई करने का फैसला किया। पीठ ने कहा कि चूंकि पिछला फैसला तीन जजों की पीठ से पारित किया गया था, इसलिए मामले पर पांच जजों की पीठ के पुनर्विचार करने की जरूरत है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि मामले को जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा। पीठ ने कहा, इसमें कोई दो राय नहीं है कि अनिश्चित प्रकृति के स्टे के कारण सिविल या आपराधिक मुकदमों की कार्यवाही गैर-जरूरी रूप से लंबी हो जाएगी।

कठिनाइयां पैदा कर रहे 2018 के निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि 2018 के निर्देश बहुत सारी कठिनाइयां पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वास्तव में वे निर्देश कानूनी तौर पर बाध्य नहीं थे। उन्होंने पूछा, सवाल यह है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए हाईकोर्ट की धारा 226 के तहत शक्ति को इस तरह से कम किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उनके तर्क पर सहमति जताई।

फैसले के लिए तय नहीं करनी चाहिए समय-सीमा

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, संवैधानिक अदालतों को मामलों का फैसला करने के लिए कोई समय-सीमा नहीं तय करनी चाहिए, क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालतों को ही पता होते हैं और ऐसे आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं।

यह भी पढ़ें : 1993 Serial Blast Case : अब्दुल करीम उर्फ टुंडा हुआ बरी

यह भी पढ़ें : Farmers Protest LIVE Updates : दिल्ली कूच को लेकर फैसला आज, खनौरी बॉर्डर पर लाया गया किसान शुभकरण का शव

यह भी पढ़ें : Nafe Singh Rathi Murder Case : गैंगस्टर कपिल सांगवान ने ली राठी की हत्या की जिम्मेदारी

Tags: