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The Resolution Has Been Passed in The Assembly Seven Times Regarding The Capital Issue. राजधानी मामले को लेकर सात बार कर चुका है विधानसभा में प्रस्ताव पारित पंजाब

• LAST UPDATED : April 3, 2022

The Resolution Has Been Passed in The Assembly Seven Times Regarding The Capital Issue. राजधानी मामले को लेकर सात बार कर चुका है विधानसभा में प्रस्ताव पारित पंजाब

पवन शर्मा
चंडीगढ़।

The Resolution Has Been Passed in The Assembly Seven Times Regarding The Capital Issue. : पंजाब विधान सभा में सीएम भगवंत मान द्वारा चंडीगढ़ पंजाब को देने का प्रस्तावा पास किए जाने के बाद से ही दोनों राज्यों में गरमाई सियासत अब पांच अप्रैल को और बढ़ेगी। मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने रविवार को मीटिंग के बाद एकाएक पांच अप्रैल को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिया है। इतना ही नहीं सत्र के बाद कैबिनेट की बैठक भी होगी। किसान आंदोलन के दौरान हरियाणा पंजाब के किसानों में दिल्ली में काफी भाईचारा देखने को मिला था। इतना ही लोग पंजाब को बड़ा भाई तक का दर्जा तक दे रहे थे।

मगर राजधानी चंडीगढ़ का मामला हो या एसवाईएल के निर्माण का पंजाब हमेशा ऐसे ही गेम खेलते आया है। पिछले सप्ताह एकाएक पंजाब के सीएम भगवंत मान ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर चंडीगढ़ पर पंजाब का हक जता दिया। पंजाब इससे पहले भी छह बार ऐसे प्रस्ताव पारित कर चुका है। जिसमें केंद्र सरकार को भेजे प्रस्ताव में चंडीगढ़ को पंजाब के हवाले करने की मांग की गई है।

पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी की कांग्रेस विधायकों की बैठक The Resolution Has Been Passed in The Assembly Seven Times Regarding The Capital Issue.

जैसे ही यह नाटकीय घटनाक्रम हुआ तो एकाएक दोनों राज्यों की राजनीति में उबाल आ गया। भाजपा के साथ साथ पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों की भी बैठक आयोजित की गई जिसमें पंजाब सरकार के फैसले की निंदा की गई। हरियाणा पंजाब में इस तरह की तल्खी पैदा कोई पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी एसवाईएल को लेकर पंजाब सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था। उस समय भी कुछ ऐसे ही हालात बने थे। दर्जनों मामले हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में लंबित पड़े हैं।

सबसे बड़ा विवाद एसवाईएल का पानी

हरियाणा गठन के समय से ही समान पानी के बंटवारे को लेकर विवाद रहा है। 1966 में हरियाणा के विभाजन के बाद भारत सरकार ने पुनर्गठन एक्ट, 1966 की धारा 78 का प्रयोग किया। पंजाब के पानी (पेप्सू सहित) में से 50 प्रतिशत हिस्सा (3.5 एमएएफ) हरियाणा को दे दिया गया जो 1955 में पंजाब को मिला था। मगर पंजाब ऐसा करने से मना कर दिया था। इस मामले में पंजाब का कहना है कि तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा पुनर्गठन एक्ट की धारा 78 का प्रयोग करना गैर संविधानिक था।

शुरू हो गया था एसवाईएल का निर्माण

पंजाब ने हरियाणा से 18 नवंबर,1976 को 1 करोड़ रुपये लिए और 1977 को पंजाब ने एसवाईएल के निर्माण को स्वीकृति दी। मगर देखते ही देखते पंजाब अपने निर्णय से एकाएक पलट गया अ‍ैर एसवाईएल के निर्माण को लेकर आनाकानी शुरू कर दी। इस पर 1979 में हरियाणा ने एसवाईएल के निर्माण की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पंजाब ने 11 जुलाई, 1979 को पुनर्गठन एक्ट की धारा 78 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी।

1980 में पंजाब सरकार बर्खास्त होने के बाद 1981 में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री भजनलाल और राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौजूदगी में दिसंबर 1981 को एसवाईएल के निर्माण का समझौता किया । 1982 में इंदिरा गांधी ने पटियाला के गांव कपूरी में टक लगाकर नहर का निर्माण शुरू किया। इसके विरोध में शिरोमणि अकाली दल ने एसवाईएल की खुदाई के विरुद्ध मोर्चा खोला और गिरफ्तारियां दीं। 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ। जिसके तहत पंजाब के दरियाओं के पानी के बंटवारे के लिए नहर के निर्माण पर भी सहमति जताई गई। 1988 में आतंकवाद के दौर में एसवाईएल नहर के निर्माण में

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