गोपेंद्र नाथ भट्ट, Rajasthan : राजस्थान में इन दिनों एक और वाटर-मेन चर्चाओं में है। वाटर हीरो के पुरस्कार से सम्मानित यह नाम है डूंगरपुर नगरपरिषद के पूर्व अध्यक्ष केके गुप्ता (Waterman KK Gupta) का, जिनका जल संरक्षण के लिए बनाया गया डूंगरपुर मॉडल बेजोड़ है। गुप्ता वर्तमान में केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तहत कार्य करने वाली स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) राष्ट्रीय योजना स्वीकृति समिति के गैर सरकारी सदस्य हैं। इसके पूर्व वे राजस्थान सरकार के स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर भी रहे हैं। उन्होंने केन्द्रीय गृह मन्त्री अमित शाह के संसदीय क्षेत्र में उनके द्वारा गोद लिए गाँवों में भी स्वच्छता जागरूकता का काम किया है जिसके फलस्वरूप गौद लिए गाँवों में से एक गाँव को देशभर के चुनिंदा आदर्श गाँवों में स्थान मिला है।
राजस्थान के सबसे प्राचीन नगरों में शामिल ऐतिहासिक शहर डूंगरपुर में रियासत काल में कई बावड़ियाँ कुएँ तालाब और एड्वर्ड समंद जैसे जल स्त्रोत बनाए गए थे। इनको लेकर कई दिलचस्प कहानियाँ भी प्रचलित थी। यें कलात्मक बहुमंज़िला बावड़ियाँ राज महलों की जनाना ड्योढ़ी से जुड़ी बताई जाती थी जहाँ राजपरिवार की महिला सदस्या रानियाँ राजकुमारियाँ सुरंग के रास्ते आया-जाया करती थी। कालान्तर में इनकी अनदेखी से यें बावड़ियाँ जीर्ण शीर्ण हो गई और नगरवासियों के लिए सुरक्षित जल स्त्रोत नहीं रहीं।
नगर परिषद डूंगरपुर के पूर्व सभापति केके गुप्ता ने अपने कार्यकाल के प्रथम वर्ष से ही सर्वप्रथम शहर ही पुरानी बावड़ियों एवं कुओं की सफाई और उन्हें गहरे करवाकर उनसे शुद्ध जल की नियमित सप्लाई की व्यवस्था शुरू कराई। जिससे शहर को प्रतिदिन 8 लाख लीटर पानी नियमित मिलने लगा और नग़रवासियों की जल की समस्या का काफी हद तक निवारण भी हुआ। इसके अलावा शहर की गेप सागर झील और अन्य तालाबों आदि को गहरा एवं साफ करवाने से वर्षा का पानी लम्बे समय एवं प्रचूर मात्रा में इनमें एकत्रित करने में सहायक सिद्ध हुआ। शहर के 100 सरकारी बिल्डिंगों एवं 500 घरों को भी वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ने का कार्य तीव्र गति से किया गया जिसमें छतों से सड़कों पर व्यर्थ गिरने वाला वर्षा का पानी वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा बोरिंग से सीधा धरती में उतारा गया। इससे एक साल में ही धरती के पानी का स्तर 20 फीट बढ़ गया एवं पानी का टीडीएस जो पहले 840 तक था वह घटकर 570 पर आ गया। इसी तरह शहर के नकारा 100 हैण्डपम्पों को भी वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ा गया जिससे वे भरपूर पानी देने लगे। साथ ही नगर के हर घर के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग कार्य को अनिवार्य कर दिया गया एवं पुराने मकानों में वाटर हार्वेस्टिंग कार्य में जहां 16 हजार रु का प्रति घर एवरेज खर्चा आता था उनके लिए नगर परिषद द्वारा वाटर हार्वेस्टिंग उपकरण लगाने के लिए 50 प्रतिशत की सब्सिडी दी गई अर्थात ऐसे घरों को मात्र 8 हजार रूपयों में ही वाटर हार्वेस्टिंग की सुविधा उपलब्ध होने लगी।
डूंगरपुर निकाय को जल संचय के इन बेहतरीन कार्यों के लिए केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की मौजूदगी में दिल्ली में आयोजित एक समारोह में सम्मानित किया गया। तत्कालीन सभापति के के गुप्ता ने प्रतिष्ठित वाटर हीरोज का सम्मान प्राप्त किया। देश के 10 निकायों को ही इस अवार्ड्स में शामिल किया गया था।
इस मौके पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने डूंगरपुर निकाय के जल संचय मॉडल को देश के लिए एक आदर्श उदाहरण बताया।
केंद्रीय मंत्री शेखावत ने डूंगरपुर नगर परिषद द्वारा जल संचय के क्षेत्र में किए गए अभूतपूर्व कार्यों से प्रभावित होकर कहा कि आज राजस्थान और देश के कई निकाय डूंगरपुर मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं। डूंगरपुर ने जल संरक्षण के साथ ही स्वच्छता, पर्यावरण और क्षेत्र के विकास में उत्कृष्ट कार्य कर एक नजीर पेश की और नगर के पर्यटन को भी नए पंख लगे। यूनिसेफ ने भी केके गुप्ता को आमंत्रित कर हेरिटेज और पर्यटन विकास पर सुझाव लिए हैं।
वर्ष 2015 से 2020 तक डूंगरपुर नगर परिषद के सभापति रहे के के गुप्ता देश की किसी निकाय के पहले ऐसे सभापतियों में शामिल हैं जिन्होंने स्वच्छता का बेजोड़ कार्य किया। उन्होंने देश के प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी की मन की भावना को समझ कर स्वच्छ भारत मिशन के तहत डूंगरपुर को प्रदेश की पहली ओडीएफ (खुले में शौच मुक्त) निकाय का गौरव दिलाया और राजस्थान सरकार से 5 करोड़ का ईनाम भी जीता। बाद में डूंगरपुर निकाय ने ओडीएफ में हैट्रिक बनाई तथा चार बार यह शानदार उपलब्धि हासिल कर “ओडीएफ प्लस” का खिताब भी अपने नाम कर लिया। आज डूंगरपुर द्वारा स्वच्छता के क्षेत्र में किए गए काम देश-दुनिया के लिए नजीर बन गए है।
हिल सिटी के नाम से विख्यात डूंगरपुर शहर की दिशा और दशा को सुधारने और नगर को सुंदर पर्यटक स्थल बनाने में केके गुप्ता द्वारा लागू किए गए नवाचार कभी भुलाए नहीं जा सकेंगे। शताब्दी के दूसरे दशक का उत्तरार्ध शहर के लिए यादगार रहा हैं। देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायाधिपतियों , केन्द्रीय मन्त्रियों, नीदरलैण्ड और अन्य देशों की सरकारों, विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों द्वारा की गई प्रशंसा से डूंगरपुर की पहचान को नए पंख लगे और सात समंदर के पार भी यहां की शोहरत महक उठी।
अमेरिका के बिल गेट्स एंड मिलिंडा संस्था ने देश की चुनिंदा निकायों में डूंगरपुर का चयन किया। यूएसए के ब्लॉग पर डूंगरपुर छा गया और कई देशों ने इस मोडल का अनुसरण किया।इस तरह पूर्व सभापति केके गुप्ता के भागीरथी प्रयासों से डूंगरपुर विश्व पटल पर रोशन हो उठा है। गत मार्च 2020 को गोवा में स्वच्छता पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में राजस्थान और डूंगरपुर का प्रतिनिधित्व किया। उस कार्यशाला में लगभग 50 देशों के प्रतिनिधिगण शामिल थे।
डूंगरपुर के जल संचय अभियान के बेहतरीन कार्य से दिल्ली सरकार भी डूंगरपुर मोडल की मुरीद हो गई और इससे प्रेरित होकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने जल मंत्री को डूंगरपुर के वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का अवलोकन के लिए भेजा। दिल्ली सरकार के तत्कालीन जल मंत्री सहित 7 सदस्यीय टीम ने डूंगरपुर का दौरा कर डूंगरपुर के वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को दिल्ली के घरों में स्थापित करने का निर्णय लिया। साथ ही दिल्ली सरकार ने हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग करने का कार्य कराने के लिए 50 हजार रूपये प्रति घर सब्सिडी एवं पानी के बिल में 10 प्रतिशत कटौती की घोषणा भी की।
सतही और भू-जल के अभूतपूर्व अभाव से त्रस्त रेगिस्तान प्रधान राजस्थान में आजादी के बाद के अधिकांश वर्ष सूखा और अकाल से ग्रस्त रहे हैं। प्रदेश के अधिकांश भाग ब्लॉक डॉर्क ज़ोन में आते है और जिन हिस्सों में थोड़ा बहुत पानी उपलब्ध भी है तों उसकी गुणवत्ता सवालिया निशाने के घेरें में हैं। राजस्थान का एक भाग तों “बाँका-पट्टी “के नाम से कुख्यात है क्योंकि फ्लोराइड युक्त पानी पीने से वहा के अधिकांश लोगों की हड्डियों में बाँकापन आ जाया करता है। देश विदेशों में अपने व्यावसायिक कौशल के लिए मारवाड़ियों के नाम से विख्यात राजस्थानियों का प्रदेश से अन्यत्र पलायन का एक बड़ा कारण भी प्रदेश में पानी का अभाव ही रहा था।
राजस्थान के लोगों के लिए पानी अनमोल है। यहाँ पानी की कीमत घी से भी अधिक मानी जाती है। राज्य में पानी के मोल का अन्दाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि कभी पश्चिम राजस्थान में पानी को बचाने के लिए लोग खटियाँ पर बैठ कर स्नान किया करते थे और नीचे रखें बर्तन में इकट्ठे होने वाले पानी का उपयोग पशुओं के लिए या अन्य कार्यों में लिया जाता था।
राजस्थान क्षेत्रफल के लिहाज़ से देश का सबसे बड़ा प्रदेश है जोकि भारत के कुल क्षेत्रफल का 10.43 प्रतिशत हिस्सा है जबकि राज्य में मात्र एक प्रतिशत जल ही उपलब्ध है। प्रदेश में चम्बल को छोड़ बारह मास बहने वाली कोई नदी भी नहीं है।
आजादी के बाद से राजस्थान में पानी को बचाने के लिए अथक प्रयास किए गए है। पश्चिम राजस्थान में विश्व की सबसे बड़ी राजस्थान केनाल-इन्दिरा गाँधी नगर परियोजना (आईजीएनपी) के निर्माण से वहाँ का भूगोल बदला है। पूर्वी राजस्थान के तेरह जिलों के लिए पेयजल और सिंचाई की महत्वाकांक्षी परियोजना ईस्टर्न राजस्थान केनाल प्रोजेक्ट के लिए जद्दोजेहद जारी है। राज्य की राजधानी जयपुर को बिसलपुर और दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर को पहले जवाई बाँध और अब आईजीएनपी का पानी लिफ़्ट कर तथा झीलों की नगरी के नाम पहचानी वाली विश्व प्रसिद्ध नगरी उदयपुर में जयसमन्द झील और मानसी वाकल परियोजना से पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है।ऐसे ही अन्य नगरों को भी निकटवर्ती छोटे बड़े बाँधों से जलापूर्ति होती है।
आज आजादी के 75 वर्षों के बाद भी पानी की कमी के कारण राजस्थान के अधिकांश शहरों में एक दिन और कही कही दो दिन छोड़ कर पेयजल आपूर्ति होती हैं। गर्मियों में कई शहरों और क़स्बों को पानी के टेंकरों और विशेष वाटर ट्रेन से जलापूर्ति करनी पड़ती है। ग्रामीण इलाक़ों में ट्यूब वेल और हेंडपम्प ही पानी की सप्लाई का विकल्प हैं। ग्रामीण भारत में जल जीवन मिशन के अंतर्गत प्रधानमंत्री की हर घर नल से जल योजना का पूरा लाभ भी मिलना अभी बाकी है। ऐसी परिस्थिति में जल संरक्षण और जल संचय में अव्वल रहें डूंगरपुर मोडल जैसे उपायों को आत्मसात करना आज के समय की जरुरत है।
गत दिनों उदयपुर में राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड विश्वविद्यालय और विश्व जल आयोग स्वीडन के तत्वाधान में भारत में पहली बार आयोजित अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन की चर्चा करते हुए के के गुप्ता ने कहा कि इस सम्मेलन में जल संरक्षण के डूंगरपुर मॉडल की चर्चा होनी चाहिए थी । इस सम्मेलन में विश्व जन आयोग, स्वीडन के अध्यक्ष वाटर मैन ऑफ इंडिया डॉ राजेंद्र सिंह, राजस्थान लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ शिव सिंह राठौर, महाराणा प्रताप कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एनएस राठौड, जनार्दन राय नागर डीम्ड विश्वविद्यालय उदयपुर के कुलपति प्रोफेसर एस एस सारंगदेवोत आदि ने शिरकत की थी।
के के गुप्ता ने अपने एक बयान में कहा कि यदि इस सम्मेलन में डूंगरपुर निकाय द्वारा जल संरक्षण के लिए किए गए अभूतपूर्व कार्यों और एवं डूंगरपुर मॉडल के तहत अपनाए गए नवाचारों के संबंध में भी चर्चा होतीं तों संभागियों को यह जानकारी मिलती कि जल संरक्षण का डूंगरपुर मॉडल कैसे काम करता है?
डूंगरपुर में सर्वप्रथम ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ाने का कार्य युद्ध स्तर पर शुरू किया गया था। जिसके तहत वर्षा के जल को जमीन में उतारने की तकनीक रेन वाटर हार्वेस्टिंग पद्धति अनुभवी विशेषज्ञ के पर्यवेक्षण में लागू की गई। इसके सुखद परिणाम यह हुए कि डूंगरपुर में जमीन में पानी का स्तर बहुत ऊंचा हो गया और डूंगरपुर डॉर्क जोन के अभिशाप से बाहर आ गया।
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