इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Amarbel : यह एक ही वृक्ष पर प्रतिवर्ष पुनः नवीन होती है तथा यह वृक्षों के ऊपर फैलती है, भूमि से इसका कोई सम्बन्ध नहीं रहता अतः आकाशबेल आदि नामों से भी पुकारी जाती है। अमरबेल एक परजीवी और पराश्रयी लता है जो रज्जु [रस्सी ] की भांति बेर, साल, करौंदे आदि वृक्षों पर फ़ैली रहती है। इसमें से महीन सूत्र निकलकर वृक्ष की डालियों का रस चूसते रहते हैं, जिससे यह तो फलती फूलती जाती है, परन्तु इसका आश्रयदाता धीरे धीरे सूखकर समाप्त हो जाता है। (Amarbel)
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(1)- अमरबेल को तिल के तेल में या शीशम के तेल में पीसकर सर पर लगाने से गंजेपन में लाभ होता है तथा बालों की जड़ मज़बूत होती हैं। यह प्रयोग धैर्य पूर्वक लगातार पांच से छह सप्ताह करें।
(2)- लगभग 50 ग्राम अमरबेल को कूटकर 1 लीटर पानी में पकाकर, बालों को धोने से बाल सुनहरे व चमकदार बनते हैं तथा बालों का झड़ना व रुसी की समस्या इत्यादि भी दूर होती हैं।
(3)- अमरबेल के 10-20 मिलीलीटर रस को जल के साथ प्रतिदिन प्रातःकाल पीने से मस्तिष्कगत तंत्रिका या नर्वस सिस्टम रोगों का निवारण होता है।
(4)- अमरबेल के 10 मिली लीटर स्वरस में 5 ग्राम पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर खूब घोटकर नित्य प्रातः काल ही रोगी को पिला दें। तीन दिन में ही ख़ूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में विशेष लाभ होता है।
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(5)- अमरबेल को पीसकर थोड़ा गर्म कर लेप करने से गठिया की पीड़ा में लाभ होता है तथा सूजन शीघ्र ही दूर हो जाती है। अमरबेल का काढ़ा बनाकर स्नान करने से भी वेदना में लाभ होता है।
(6)- अमरबेल के 2-4 ग्राम चूर्ण को या ताज़ी बेल को पीस कर थोड़ी सी सोंठ और थोड़ा सा घी मिलाकर लेप करने से पुराना घाव भी भर जाता है।
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