इंडिया न्यूज, Himachal News: अदालती परेशानियां, घर में होने वाला कलह, प्रॉपर्टी की समस्या और ग्रहों नक्षत्रों के लिए लोग पंडितों से शांति यज्ञ या सुझाव लेते हैं। हिमाचल प्रदेश में जिला कांगड़ा में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां शत्रुनाशिनी और वाकसिद्धि जैसे यज्ञ होते हैं। इस मंदिर में होने वाले शत्रुनाशिनी यज्ञ में लाल मिर्च की आहूर्ति दी जाती है। इस मंदिर का नाम है बनखंडी स्थित मां बगलामुखी का दरबार।
हिंदू पौराणिक कथाओं में मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा की पूजा करने के बाद हुई थी। त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में माना जाता था। रावण ने शत्रुओं का नाश कर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। लंका पर विजय के दौरान जब भगवान श्रीराम को इस बात का पता लगा तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की पूजा की थी।
बगलामुखी माँ का यह मंदिर महाभारत काल का माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की थी। सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम ने युद्ध में शक्तियां प्राप्त करने और मां बगलामुखी की कृपा पाने के लिए यहां विशेष पूजा की थी।
सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा का ग्रंथ जब एक राक्षस ने चुरा लिया था और उसके बाद पाताल में छिप गया। तब उसका वध करने के लिए मां बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। बगुला का रूप धारण कर मां ने उस राक्षस का वध कर ब्रह्मा को उनका ग्रंथ वापिस लौटाया। पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान मां का मंदिर बनवाकर आराधना शुरू की। रावण और लंका पर जीत पाने के लिए श्रीराम ने शत्रुनाशिनी मां बगला की पूजा कर विजय प्राप्त की। मां बगलामुखी को पीतांबरी के नाम से भी जाना जाता है। इस कारण मां के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन से लेकर सब कुछ पीला ही होता है।
माँ बगलामुखी को उत्तर भारत में पितांबरा मां के नाम से भी जाना जाता है। कांगड़ा के निकट कोटला किले के द्वार पर बगलामुखी का मंदिर स्थित है। द्रोणाचार्य, रावण, मेघनाद इत्यादि सभी महायोद्धाओं द्वारा माँ बगलामुखी की पूजा करके अनेक युद्ध लड़े गए। नगरकोट के महाराजा संसार चंद कटोच भी इस मंदिर में आकर माँ की पूजा किया करते थे, माँ का आशीर्वाद प्राप्त कर उन्होंने कई युद्धों में विजय हासिल की।
मां बगलामुखी की पूजा करते वक़्त पीले वस्त्र पहने जाते हैं। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है। वस्त्र, प्रसाद, मौली, मंदिर का रंग भी यहां तक की पीला ही है। इनके कई स्वरूप हैं। महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि हासिल होती है। मां बगलामुखी भक्तों के भय को दूर कर शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती है।
यह भी पढ़ें : आलिया भट्ट मां बनने जा रही, इंस्टाग्राम पर दी जानकारी
शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी मंदिर में मुकदमों में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय, नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति और सर्व कष्टों के निवारण के लिए शत्रुनाश हवन करवाते हैं। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।
बड़े बड़े नेता और फिल्मी दुनिया के अभिनेता बगलामुखी मां के मंदिर में जाते हैं। राजनीति में विजय हासिल करने के लिए इस मंदिर में प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी पूजा कर चुकी हैं। वर्ष 1977 में चुनावों में हरने के बाद पूर्व पीएम इंदिरा ने मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करवाया। और उसके बाद वह फिर सत्ता में आईं और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं। बतौर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पीएम मोदी के बड़े भाई प्रह्लाद मोदी मंदिर में पूजा कर चुके हैं। नोट फार वोट मामले में फंसे सांसद अमर सिंह, सांसद जया प्रदा, मनविंदर सिंह बिट्टा, कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर, पंजाब के पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी, भूपेंद्र हुड्डा, राज बब्बर की पत्नी नादिरा बब्बर, गोविंदा और गुरदास मान जैसी हस्तियां यहां आ चुकी हैं। यहीं नहीं मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ ने अपनी पत्नी कोबिता के साथ तांत्रिक पूजा और हवन करवाया। इस साल अभिनेत्री शिल्पा शेठ्ठी ने अपने पति के साथ मंदिर पहुंच कर शुत्र नाशिनी यज्ञ करवाया।
कांगड़ा शहर से बगलामुखी मंदिर की दूरी करीब 26 किलोमीटर है। निजी वाहन में 40-45 मिनट में मंदिर पहुंचा जा सकता है। यहाँ पर बस की सुविधा भी उपलब्ध है। ऊना से इस मंदिर की दूरी 80 किलोमीटर है। आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं तो गगल कांगड़ा तक चंडीगढ़ या दिल्ली से फ्लाइट लेकर आ सकते हैं। गगल से करीब 35 किलोमीटर सड़क मार्ग से जाना होगा। वहीं रेल मार्ग से भी पठानकोट से कांगड़ा या रानीताल तक ट्रेन मिलेगी। उसके बाद आपको अपने निजी वाहन या बस से जाना पड़ेगा।
यह भी पढ़ें : हरियाणा के मौसम में 29-30 जून को दिखेगा मॉनसून