इंडिया न्यूज, (Soil Health Card) : यूनाइटेड नेशंस के अनुसार न्यूट्रिशन निकालने की प्रक्रिया में मिट्टी की गिरती गुणवत्ता में ‘सॉयल न्यूट्रिशन लॉस’ का सबसे बड़ा हाथ है। फूड सिक्योरिटी और सस्टेनेबिलिटी के मामले में यह विश्वभर में सबसे गंभीर मुद्दों में से एक है। 70 से अधिक वर्षों से विटामिन्स और न्यूट्रिएंट्स की मात्रा में गिरावट आई है और यह अनुमान लगाया गया है कि दुनियाभर में 2 बिलियन लोग माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की न्यूनतम मात्रा से भी वंचित हैं, जिन्हे ‘हिडन हंगर’ के रूप में जाना जाता है और जिनका पता लगाना बेहद मुश्किल है।
इसकी गंभीरता को समझते हुए वर्ल्ड सॉयल डे, हेल्थ इकोसिस्टम और मानव स्वास्थ्य की महत्ता को बनाए रखने के प्रति जागरूकता बढ़ाने के मकसद से चलाया गया अभियान है, जो मिट्टी का प्रबंधन, मिट्टी के प्रति जागरूकता और समाज को मिट्टी के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए जागृत और साहसी बना रहा है। वर्ल्ड सॉयल डे का उद्देश्य स्वस्थ मृदा और सॉयल रिसोर्सेज के सस्टेनेबल मैनेजमेंट को संरक्षित करना है।
भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (एग्रीकल्चर और फार्मर्स वेलफेयर डिपार्टमंट) ने साल 2015 में सॉयल हेल्थ को ध्यान में रखते हुए सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम की शुरूआत की थी। इस स्कीम की मुख्य बात यह है कि इसमें हर दो साल पर किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड जारी किया जाता है, जिससे फर्टिलाइजेशन प्रक्टिसेस में न्यूट्रिशनल कमी का पता लगाया जा सके। मृदा की टेस्टिंग, सस्टेनेबल फार्मिंग को प्रमोट करने की दृष्टि से फर्टिलाइजर की सही मात्रा और किसानों को फसल उत्पादकता के साथ, एक्स्ट्रा इनकम बढ़ाने में भी मदद कर रहा है। सॉयल हेल्थ कार्ड क्या है? यह भारतीय किसानों को कैसे लाभ पहुंचा रहा है? पश्चिम बंगाल के अशोकनगर से आने वाले मृदा विशेषज्ञ, डॉ. कौशिक मजूमदार ने इसके बारे में हमें शिक्षित करने के लिए सीएसआर जर्नल खोला है।
14 वर्षों का अनुभव रखने वाले डॉ. मजूमदार (Dr. Mazumdar) वर्तमान में वेस्ट बंगाल सरकार में पश्चिम बंगाल के एग्रीकल्चर सर्विस (रिसर्च), राइस रिसर्च स्टेशन, चिनसुराह, हुगली, में कार्यरत हैं। इससे पूर्व उन्होंने भारत सरकार की सॉयल हेल्थ कार्ड स्कीम में 2015 से 2018 तक काम किया था।
सॉयल हेल्थ कार्ड क्या है? इसे जारी करने का उद्देश्य क्या है? इसके बारे में सीएसआर जर्नल से बात करते हुए डॉ. मजूमदार ने कहा कि जब हम बीमार होते हैं तो डॉक्टर हमें ब्लड टेस्ट के लिए भेजता है, जिससे वह सही बिमारी का पता लगा सके। सॉयल हेल्थ कार्ड सेवा का उद्देश्य कृषि भूमि के लिए ब्लड टेस्ट करने जैसा है। जब भी हम बीमार होते हैं हम अचानक से कोई भी दवा नहीं खा लेते, जो हमारी बिमारी से मेल नहीं करते , लेकिन किसानों को अपनी मिट्टी में अधिक न्यूट्रिएंट जोड़ने की आदत रही है, जो मिट्टी में पहले से ही मौजूद रहते हैं।
कुछ डीलर्स, कंपनियां और मिडिलमैन अपने फायदे के लिए किसानों को अपने प्रोडक्ट्स देने की कोशिश में जुटे हुए हैं। आज न्यूट्रिएंट मिट्टी में लगातार कम होते जा रहे हैं, जबकि अन्य चीजें सरप्लस में बनी हुई हैं। 2015 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत जमीनें ग्रिड्स में बटीं हुई थी और मिट्टी का सैंपल हर ग्रिड पॉइंट की जगह से लिया जाता था, जिसे टेस्टिंग लैब में भेजा जाता था और फिर रिपोर्ट को किसानों के साथ शेयर किया जाता था, जिससे वह जान पाते थे क्या कम है और क्या पर्याप्त है। साथ ही उनकी मिट्टी में कितने बड़े-बड़े न्यूट्रिएंट हैं और हर न्यूट्रिएंट अपनी आखिर कितनी कीमत रखता है, इस बारे में भी जानकारी मिलती थी। यह सभी चीजें सॉयल हेल्थ कार्ड में बताई गई हैं।
वह कहते हैं, सिर्फ यही नहीं, यदि एक किसान अपनी मिट्टी के लिए निश्चित कमी वाले न्यूट्रिएंट के लिए फर्टिलाइजर खरीदने जाता है तो वह इसे सब्सिडी के तहत खरीद सकता है, यह लाभ भी स्कीम का एक हिस्सा थी। हालांकि मैं इस सुविधा के स्टेटस को लेकर फिलहाल में बहुत आस्वस्त नहीं हूं। मैं इस स्कीम के साथ 2018 तक, साइंटिस्ट के रूप में जुड़ा रहा हूं। यह बहुत ही बढ़ियां प्रोजेक्ट है, जो किसानों के लिए अत्यन्त लाभकारी है।
कृषि शास्त्री पहले फर्टिलाइजर के मुद्दे और कैसे खेत में खड़े खूंटों के जलने से मिट्टी की सेहत पर प्रभाव पड़ता है, जैसे मुद्दों पर बता चुके हैं। वायु गुणवत्ता के इतर, खर पतवार, या पराली जलाना भी सॉयल फर्टिलिटी पर उसके न्यूट्रिएंट को समाप्त कर भारी असर डालता है।
डॉ. मजूमदार ने कहा, सॉयल हेल्थ कार्ड, मृदा प्रदुषण के समाधान के रूप में बनाया गया था। मिट्टी को प्रदूषित करने में फर्टिलाइजर्स का बहुत बड़ा योगदान है और यह मिट्टी की समूचित स्वास्थ्य को कमजोर करने का काम करती है। वर्टिकल लीचिंग, धरातल के पानी को प्रदूषित करने का काम करता है, और ऐसे ही साथ के लगे हुए भूमि मालिकों के खेतों का भी नुकसान होता है।
उत्तर भारत में पराली जलाने का मुद्दा, जो उच्च स्तर का प्रदुषण करने का जिम्मेदार माना जाता है, असल में खेतों के मशीनीकरण का साइड इफेक्ट कहा जा सकता है। मौजूदा समय में, मशीनें आटोमैटिक ट्रांसप्लांटर बन गई हैं और खेत जोतने के मामले में हार्वेस्टर्स ने बैल-भैसों को तेजी से किनारे कर दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह मशीनें किराए पर भी ली जा सकती हैं, जो किसानों के लिए घरेलु या पालतू जानवरों से जुताई की तुलना में अधिक सस्ता विकल्प होता है। हार्वेस्टर मशीनें, भूसे को बहुत बारीक और नुकीले पीसेज में काटती हैं, जो गाय जैसे जानवरों के खाने पर उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं, क्योंकि यह शार्प नोक, जानवरों की जीभ काट देती हैं और मुंह के दूसरे हिस्से में भी नुकसान पहुंचाती है। जाहिर है पैसे के लिए पराली जलाना, वायु प्रदुषण को बढ़ावा दे रहा है, जिसने दिल्ली और आस-पास के इलाकों को, सालाना रूप से कुछ निश्चित समय के लिए सांस लेने लायक भी नहीं छोड़ा।
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