India News (इंडिया न्यूज), Same Sex Marriage, नई दिल्ली : प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध ठहराए जाने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए मंगलवार को कहा कि विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव करना संसद का काम है और न्यायालय कानून की केवल व्याख्या कर सकता है, उसे बना नहीं सकता।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह मामला संसद के अधिकार क्षेत्र का है यानि समलैंगिक विवाह पर कानून बनाना संसद का काम है। सीजेआई ने केंद्र सरकार को समलैंगिक विवाह में लोगों के अधिकार और पात्रता के निर्धारण के लिए एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह कमेटी समलैंगिकों को राशन कार्ड में एक परिवार के तौर पर दर्शाने पर भी विचार करे। इसके अलावा उन्हें जॉइंट बैंक अकाउंट, पेंशन के अधिकार व ग्रैच्युटी आदि में भी अधिकार देने को लेकर विचार किया जाए।
सीजेआई ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि समलैंगिक समुदाय के लिए वस्तुओं और सेवाओं तक पहुंच में कोई भेदभाव न हो। साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार समलैंगिक अधिकारों के बारे में जनता को जागरूक भी करे। सरकार समलैंगिक समुदाय के लिए हॉटलाइन बनाएगी, हिंसा का सामना करने वाले समलैंगिक जोड़ों के लिए सुरक्षित घर ‘गरिमा गृह’ बनाया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अंतर-लिंग वाले बच्चों को आपरेशन के लिए मजबूर न किया जाए।
चीफ जस्टिस ने कहा, समलैंगिकों के साथ में आने पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लग सकता। किसी विपरीत लिंग के संबंधों में ट्रांसजेंडर्स को मौजूदा कानून के तहत विवाह का अधिकार है। इसके अलावा अविवाहित जोड़े, यहां तक कि समलैंगिक भी साझा तौर पर बच्चे को गोद ले सकते हैं।
सीजेआई ने कहा कि यह कहना गलत है कि शादी एक अपरिवर्तनशील संस्थान है। अगर स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म कर दिया जाता है तो यह देश को आजादी से पहले वाले समय में ले जाएगा। हालांकि, स्पेशल मैरिज एक्ट को बदलना या न बदलना सरकार के हाथ में है। कोर्ट को विधायी मामलों में हस्तक्षेप से सावधान रहना चाहिए।
जस्टिस संजय किशन कौल ने भी सीजेआई के फैसले से सहमति जताई। उन्होंने कहा, कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम में बदलाव नहीं कर सकता, यह सरकार का काम है। समलैंगिक समुदाय की सुरक्षा के लिए उपयुक्त ढांचा लाने की जरूरत है। जस्टिस संजय ने कहा कि सरकार, समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव रोकने के लिए सकारात्मक कदम उठाए। समलैंगिकों से भेदभाव पर अलग कानून बनाने की भी जरूरत है। संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट ने कहा कि क्वीरनेस न तो शहरी है और न ही अभिजात्य हैं। हालांकि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश द्वारा जारी किए गए निर्देशों से असहमति जताई। कहा कि सरकार को इस मसले पर कानून बनाना चाहिए, ताकि समलैंगिकों को समाजिक और कानूनी मान्यता मिल सके।
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