India News (इंडिया न्यूज),Rajiv Gandhi, हबीब अख्तर, दिल्ली : मुझे अब भी याद है , नई दिल्ली के मंडी हाउस के पास स्तिथ श्रीराम सेंटर के मुख्य दरवाजे पर एक सौम्य शालीन और बहुत आकर्षक व्यक्तित्व को मैं देख रहा था, वह शख्स अपने किसी दोस्त के संग अपने हाथ कार के खुले दरवाजे पर रखे और और अपना दायां पांव कार के सहारे रखे बड़े आत्मीय ढंग से कुछ गुफ्तगू में तल्लीन है, ईधर उधर दूर खड़े लोग उसकी मौजूदगी को निहार रहे थे। मैं पहचान गया इस शख्स को कि वह राजीव गांधी हैं। बगल में खड़े किसी ने फुसफुसाया “ये तो राजीव गांधी लग रहा है”मैने कहा हां। वो शख्स उसी तरह से तल्लीन रहा अपने वार्तालाप में लोग वहां सहजता से आते जाते रहे। किसी ने ज्यादा करीब से उन्हें देखने या उनके पास जाकर उनसे परिचय की कोशिश करता कोई नजर नहीं आया। कुछ देर निहारने के बाद हम भी उन्हें वैसा ही छोड़कर अपने अगले काम के लिए आगे बढ़ा गए। यह बात वर्ष 1979 के आस पास के आस पास की होगी।
फिर एक दशक पर उनसे का सामना सामना और न ही कोई इनसे मुलाकात। करीब ग्यारह साल बाद उनसे एक सम्मान समारोह में उनसे मुलाकात हुई। अवसर था श्रेष्ठ साहित्यकारों को पुरस्कार वितरण का अवसर पर राजीव गांधी के साथ रहने का अवसर मिला। उस वक्त वे प्रधानमंत्री पद पर नहीं थे। यह बात 1990 के आस पास की है। तब मैं काली दाढ़ी वाला एक नौजवान पत्रकार था। राजीव गांधी को प्रधानमंत्री रहते हुए देखते सुनते और उनके भाषणों की रिपोर्टिंग करते करते इस वक्त तक मैं उनके विजन और विलक्षण प्रतिभा का कायल हो चुका था। यह वह काल अवधि थी, जब मेरे पांच वर्ष बीत रहे थे टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में रिपोर्टर रहते। मैं उन्हें सांसद भवन में बोलते खूब सुन चुका था। आम तौर पर वे अंग्रेजी में ही बोलते थे। वीपी सिंह और राजीव गांधी का संसद में वाद प्रतिवाद आज भी मन मस्तिष्क में कौंधते हैं। याद हैं।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और भारत जोड़ो यात्रा के नायक राहुल गांधी अपने शुरुआती राजनैतिक यात्रा के समय भी अपने पिता राजीव गांधी से कई गुना बेहतर हिंदी बोल लेते थे, पर राजीव गांधी की हिंदी अंग्रेजी माध्यम वाले केजी स्कूल के बच्चों की तरह थी।
यह मेरा सौभाग्य था कि नवभारत टाइम्स का रिपोर्टर होने के नाते लाल किला के परकोटे से प्रधानमंत्री राजीव गांधी का पहला भाषण नवभारत टाइम्स में मैने लिखा। अपने उस लाल किला से भाषण में उन्होंने नए भारत वर्ष बनाने की अपनी परिकल्पना बताई और नव भारत बनाने के लिए उन्होंने अपने भाषण में 41 बार बताया कि मुझे कैसा भारत बनाना है। उस समय उस भाषण का सबसे बड़ा हास्य बना मुझे बनाना है। यानि “बनाना” है। उसके बाद बनाना काफी दिनों तक व्यंग और उपहास का विषय बना रहा। यहां यह बताना भी मुझे अच्छा लग रहा है की प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 15 अगस्त की मेरी वह कवरेज हूबहू कांग्रेस पार्टी ने अपनी “कांग्रेस” पत्रिका की लीड स्टोरी के तौर पर छापा।
इस हैं परिहास के बाद उन्होंने अपनी हिंदी भाषा में खासा सुधार किया। स्वतंत्रता दिवस पर लाल किला से उनके बाकी सभी भाषणों में बड़ा बदलाव दिखा। यह कहना अतिश्योक्ति न होगी कि अपने समय में विश्व के सबसे सुंदर आकर्षक और मृदुभाषी राष्ट्रध्यक्ष थे। सुंदर माने जाने वाले गोरों को उन्होंने अपने आकर्षक व्यक्तित्व से मात दी।
उनमें एक सबसे प्रभावी था कि वे दोस्ती और दोस्तों की हिफाजत भी बखूबी किया करते थे। वे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और एक साथ देश के प्रधानमंत्री भी थे। उन्होंने गुलाम नबी आजाद को सिविल एविएशन मंत्री बनाया फिर उनसे इस्तीफा लेकर उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का महासचिव बनाया। क्योंकि पार्टी में उन्हें एक सबसे भरोसेमंद व्यक्ति की जरूरत थी। एआईसीसी में गुलाम नबी आजाद राजीव गांधी के कक्ष में ही बैठते थे जबकि अन्य वरिष्ठ महासचिव, उपाध्यक्ष व इंदिरा गांधी व जवाहर लाल नेहरू दौर के वरिष्ठ नेता अन्य कक्षों में ही बैठते थे। उसी समय की बात है कि गुलाम नबी आजाद ने कहीं खादी के खिलाफ और पॉलिएस्टर के पक्ष में बयान दे दिया था। इसे लेकर कांग्रेस के अन्य सभी वरिष्ठ नेता खासे खफा हुए, गुलाम नबी आजाद को पार्टी के प्रमुख पद से हटाने की मांग उठने लगी। पर राजीव गांधी ने गुलाम नबी का बचाव किया और संदेश दिया नोथिंग डूइंग, तब जाकर आजाद के खिलाफ पार्टी में विरोध थमा।
उनकी विडंबना थी कि राजनीति में उनका घाघ नेताओं से पाला पड़ा, नौसिखिए होने के कारण वे इनके दांव पेंच व सांप्रदायिक दल की विषाक्त रणनीति को समझ न पाए और उनका समूल जवाब देने में अकसर विफल साबित हुए और कभी कभी उनके जल में फंसे भी। एक बार ही राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बन पाए। उसके बाद आत्मघाती आतंकवादी हमले में वे मारे गए। उनके नेतृत्व और कांग्रेस पार्टी के नाम लोकसभा में 411 सीटों का रिकॉर्ड अभी तक टूटा नहीं है।
बहरहाल अपने अल्प शासनकाल में उन्होंने जो कुछ कर दिखाया उसे भारत वर्ष सदियों याद करता रहेगा। खासकर इस देश के युवाओं और ग्रामीण जगत को उन्होंने जो राजनैतिक अधिकार प्रदान किए उनसे पहले वे उन अधिकारों से महरूम थे।
लोग भूल गए होंगे! इसलिए मैं यह जिक्र करना चाहता हूं कि उन्होंने जो अति महत्त्वपूर्ण काम किए उनमें, पंचायती राज : गांवों को सशक्त और लोकतंत्र में उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए राजीव ने पंचायती राज का बड़ा फैसला लिया। इसके माध्यम से उन्होंने पूरे देश में ग्राम सरकार की अवधारणा लागू की और पंचायतों को ज्यादा अधिकार दिए। उनका मानना था कि ग्राम पंचायतों को सत्ता में वह दर्जा मिलना चाहिए जो संसद और विधानसभा का है।
18 वर्ष के युवाओं को मतदान का अधिकार उन्होंने ही दिलवाया। इससे पहले 21 वर्ष और इससे अधिक आयु वालों को ही मतदान का अधिकार सुलभ था। उन्होंने हीअयोध्या में विवादित स्थल का ताला खुलवाया : ऐसा कहा जाता है कि हिन्दू समुदाय की नाराजी को कम करने के लिए वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने अयोध्या के विवादित स्थल का ताला खुलवा दिया और 1989 में राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास की इजाजत भी दे दी। राजीव गांधी देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री रहे। राजीव गांधी को 21 वीं सदी के भारत का निर्माता भी कहा जाता है। 40 वर्ष में प्रधानमंत्री बनने वाले राजीव गांधी ने आधुनिक भारत की नींव रखने की दिशा में अनेक काम किये। वे भारत में दूररसंचार क्रांति के जनक कहलाए। जिन्होंने भारत में दूरसंचार क्रांति लाई। आज जिस डिजिटल इंडिया की चर्चा है, उसकी संकल्पना राजीव गांधी अपने जमाने में कर चुके थे। उन्हें डिजिटल इंडिया का आर्किटेक्ट और सूचना तकनीक और दूरसंचार क्रांति का जनक कहा जाता है। राजीव गांधी की पहल पर अगस्त 1984 में भारतीय दूरसंचार नेटवर्क की स्थापना के लिए सेंटर फार डिवेलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स(C-DOT)की स्थापना हुई। गांव की जनता भी संचार के मामले में देश-दुनिया से जुड़ सकी। फिर 1986 में राजीव की पहल से ही एमटीएनएल की स्थापना हुई, जिससे दूरसंचार क्षेत्र में और प्रगति हुई।
यह भी पढ़ें : Transfer Posting: दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का मामला फिर पहुँचा सुप्रीम कोर्ट
यह भी पढ़ें : Bareilly Court: बरेली कोर्ट ने खारिज कर दी मकतूल माफिया अतीक के भाई अशरफ के साले की अग्रिम जमानत याचिका