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शास्त्रों के अनुसार कहें या फिर हिंदू रिति-रिवाज हमेशा ही लोगों और विद्वजनों से सुना गया है, कि मरनेे के बाद जिन लोगों की अस्थियां गंगा में प्रवाहित नहीं की जाती तब तक उसे मोक्ष नहीं मिलता, गरूण पुराण में तो स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि मरने के बाद जिन लोगों की अस्थियां गंगा जी में प्रवाहित कर दी जाती है वह ब्रह्मलोक से कभी मृत्यूलोक में आकर जन्म नहीं लेते।
पिछले दिनों आई कोरोना की दूसरी लहर में कोविड प्रोटोकॉल के तहत करीब ढाई दर्जन से भी ज्यादा लोगों का मरने के बाद परिषद के कर्मचारियों ने श्मशानघाट में अंतिम संस्कार तो कर दिया, लेकिन उन लोगों की अस्थियों के विसर्जन का कोई इंतजाम न तो परिषद ने और न ही किसी और ने किया।जिसका परिणाम यह निकला कि कोविड़ प्रोटोकॉल के तहत जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया गया था,उनकी अस्थियां वहां से न उठने की वजह से श्मशानघाट में पड़ी रही, गंगा में विसर्जन न होने के चलते विभिन्न लोगों की यह अस्थियां श्मशानघाट में ही कचरे के ढेर में तबदील हो गईं।3
अक्सर कुत्तों को श्मशानघाट में पड़ी इन अस्थियों को अपना भोजन बनाते हुए देखा गया, सुबह की सैर करने वालों के संज्ञान में जब यह मामला आया तो उन्होंने इस बारे में परिषद के अधिकारियों को जानकारी दी, लेकिन ऊपरी कोई आदेश न होने के चलते परिषद के अधिकारी भी इससे पल्ला झाड़ते रहे।
लेकिन मामला जब बहादुरगढ़ की सामाजिक संस्था मोक्ष सेवा समिति के संज्ञान में आया तो समिति के सदस्यों ने झज्जर आकर इस बारे में नगरपरिषद के अधिकारियों से सम्पर्क किया, समिति की पहल पर परिषद के अधिकारियों ने अपने कर्मचारियों से इन अस्थियों को एकत्रित करवा कर उन्हें समिति के सदस्यों को सुपुर्द कर दिया। अब इन अस्थियों को समिति सदस्यों ने हरिद्वार के कंखल पहुंच कर विसर्जित कर दिया है।