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Prisoner Vote : प्रदेश में 20 हजार कैदी नहीं डाल सकेंगे वोट

• LAST UPDATED : April 23, 2024
  • जेल में बंद और पुलिस हिदासत में व्यक्ति को वोट का अधिकार नहीं

  • सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ भी नकार चुकी है जनहित याचिका 

India News (इंडिया न्यूज), Prisoner Vote : लोकसभा चुनावों का आगाज हो चुका है। राजनीतिक दल चुनावी तैयारियों में जुटे हैं और मतदाताओं तक पहुंच रहे हैं। अहम पहलू यह है कि प्रदेश की जेलों में बंद 20 हजार कैदी वोट नहीं डाल सकेंगे। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश पीएस नरसिम्हा और न्यायाधीश जेबी पादरीवाला की खंडपीठ वर्ष 2023 में कैदियों को वोट डालने की जनहित याचिका को खारिज कर चुकी है। दरअसल, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (आर.पी. एक्ट), 1951 की मोजूदा धारा 62(5) को चुनौती दी गयी थी जिसके अनुसार जेल/कारवास में बंद कैदियों (बंदियों) और पुलिस की वैध कस्टडी (हिरासत) में भेजे गए व्यक्ति चुनाव में मतदान ही नहीं कर सकता।

Prisoner Vote : … परंतु वह उम्मीदवार के तौर चुनाव लड़ सकता है

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और चुनावी विश्लेषक हेमंत कुमार ने बताया कि जनवरी, 1983 में सुप्रीम कोर्ट के दो जज बेंच ने और उसके बाद जुलाई, 1997 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जज बेंच ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की उपरोक्त धारा 62 (5) को कानूनन वैध घोषित किया था। मौजूदा कानूनी प्रावधानों के तहत अगर कोई व्यक्ति विचाराधीन (अभियुक्त) है और इस कारण न्यायिक हिरासत या पुलिस कस्टडी में हैं, तो उसे वोट डालने का अधिकार तो नहीं होता परंतु वह उम्मीदवार के तौर चुनाव लड़ सकता है।

जुलाई, 2013 में हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2004 में पटना हाई कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को सही ठहराते हुए यह फैसला दिया कि जब कोई व्यक्ति विचाराधीन कैदी के तौर पर जेल या पुलिस हिरासत में होने के कारण वोट देने के अधिकार से वंचित है, तो इस कारण वह चुनाव लड़ने के लिए भी अयोग्य होगा परंतु तब केंद्र में सत्तासीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए-2 सरकार ने संसद द्वारा एक संशोधन कानून पास करवा उक्त सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश को पलट दिया था। हेमंत ने बताया कि देश में चुनावों में मतदान करने का अधिकार संवैधानिक अर्थात मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राईट) नहीं है बल्कि कानूनी अधिकार (लीगल राइट) है जिस पर संसद द्वारा चुनावी कानून द्वारा उचित नियंत्रण लगाया जा सकता है।

वर्तमान में लागू कानूनी प्रावधानों के अनुसार न केवल वह व्यक्ति जिसे कोर्ट द्वारा किसी केस में ट्रायल ( कानूनन विचारण प्रक्रिया) के बाद दोषी (अपराधी ) घोषित कर कारावास (जेल ) का दंड दिया गया हो बल्कि आरोपी व्यक्ति (अभियुक्त) भी जिसे कोर्ट द्वारा पुलिस कस्टडी (रिमांड) या न्यायिक हिरासत (जेल) में भेजा गया हो, उसे भी चुनावों में वोट डालने का अधिकार नहीं है।

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