डॉ. रविंद्र मलिक, India News (इंडिया न्यूज़), Haryana Lok Sabha Elections 2024 : हरियाणा में छठे चरण में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर सत्ताधारी और विपक्षी दल ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। भाजपा जहां पिछली बार की तरह सभी 10 लोकसभा सीट जीतकर इतिहास दोहराने और मिशन 2024 को पूरा करने की जुगत में है तो वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की कोशिश है कि हर हाल में भाजपा को रोका जाए।
राजनीतिक जानकारों का भी मानना है कि लोकसभा चुनाव में मुकाबला मुख्य रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। वहीं दूसरी तरफ इस बात से भी हर कोई इत्तेफाक रखता है कि लोकसभा नतीजों का असर अक्टूबर माह में संभावित विधानसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है।
चूंकि हरियाणा 10 लोकसभा सीटों के लिहाज से छोटा राज्य है लेकिन देश की राजधानी दिल्ली से सटा होने और कई अन्य पहलुओं के चलते इसका अपना राजनीतिक महत्व है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस इस बात से काफी वाकिफ हैं कि लोकसभा चुनाव में नतीजे उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे तो दोनों की विधानसभा चुनावों की जीतने की उम्मीदों को झटका लग सकता है।
वहीं भाजपा ने दिसंबर 2022 में गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले सरकार में बड़ा फेरबदल किया था जिसके नतीजे पार्टी के लिए चुनाव में उम्मीदों के अनुरूप रहे। दिसंबर 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सितंबर 2021 में पीएम नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने गुजरात में बड़ा बदलाव करते हुए वहां सीएम को रिप्लेस कर दिया था। इसके अलावा पार्टी ने उत्तराखंड में भी सीएम बदला था, इसका नतीजा ये रहा कि पार्टी यहां सरकार बनाने में सफल रही।
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने बिना किसी कारण का हवाला दिए पद से इस्तीफा दे दिया था। ऐसा ही तर्ज हरियाणा में किया गया और पार्टी को उम्मीद है कि इसका लाभ लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में पार्टी को मिलेगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव से पहले सीएम बदलकर भाजपा ने सबसे पहले तो पार्टी के दस साल के राज के एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को खत्म करने की कोशिश तो साथ में दूसरे नए चेहरों को शामिल कर कैडर और आम जनता को यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी का मकसद सबका ओवरऑल विकास और सबको साथ लेकर चलना है।
भाजपा साल 2014 में विधानसभा चुनाव में 47 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही है लेकिन उम्मीदों के विपरीत पार्टी 2019 के विधानसभा चुनाव में महज 40 सीट पर सिमट गई और फिर सरकार बनाने के लिए पहली बार चुनावी रण में उतरी नवागंतुक जननायक जनता पार्टी, जिसने 10 सीट पर जीत दर्ज की थी, की बैसाखी का सहारा लेना पड़ा। चूंकि अब दोनों गठबंधन में भी नहीं हैं और भाजपा की कोशिश है कि हर हाल में पूर्ण बहुमत हासिल किया जाए और ये तभी संभव है जब पार्टी लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन कर पाए।
वहीं दूसरी तरफ पिछले करीब एक दशक से हरियाणा में सत्ता से दूर कांग्रेस भी सत्ता में आने की हरसंभव कोशिश कर रही है, लेकिन पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच फूट पार्टी के लिए एक बड़ी दिक्कत के रूप में सामने आ रही है। कांग्रेस दिग्गजों भूपेंद्र सिंह हुड्डा और एसआरके गुट के नेताओं कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी को भी इस बात का काफी इलम है कि लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन खराब रहा तो फिर विधानसभा चुनाव में जीत का सपना दूर हो जाएगा।
प्रदेश में बड़ा बदलाव करते हुए 12 मार्च को सीएम मनोहर लाल को नायब सैनी से रिप्लेस किया गया था। पहले, 12 मार्च को शपथ लेने वाले पांच मंत्रियों में यमुनानगर के जगाधरी से विधायक कंवरपाल, फरीदाबाद के बल्लभगढ़ से विधायक मूलचंद शर्मा, महेंद्रगढ़ के लोहारू से विधायक जय प्रकाश दलाल और रेवाड़ी के बवाल से विधायक बनवारी लाल तथा सिरसा के रानियां से निर्दलीय विधायक रणजीत सिंह चौटाला शामिल थे।
इसके बाद कैबिनेट विस्तार में फरीदाबाद के बड़खल से विधायक सीमा त्रिखा को शिक्षा मंत्री बनाया गया। इनके अलावा अंबाला सिटी से विधायक असीम गोयल, महेंद्रगढ़ के नांगल चौधरी क्षेत्र से विधायक अभय सिंह यादव, पानीपत ग्रामीण से विधायक महिपाल ढांडा, कुरुक्षेत्र के थानेसर से विधायक सुभाष सुधा, भिवानी के बवानी खेड़ा से विधायक बिशंबर सिंह वाल्मीकि और गुरुग्राम के सोहना से विधायक संजय सिंह शामिल को भी मंत्री बनाया गया है। सीएम समेत कुल 14 लोगों में 8 नए चेहरे हैं, जो कैबिनेट में 50 फीसदी से ज्यादा बदलाव है। इसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव में चुनावी फायदे लिए जातीय समीकरणों का भी ध्यान रखा गया।
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